Thursday 9 June 2011

साक्षात्कार सीमित अंक का ही हो


सुप्रीम कोर्ट ने मिराह एक्सपोर्ट प्रा. लि. बनाम कस्टम कलेक्टर (1998 3 एससीसी 292) में कहा है कि यह सुनिष्चित है कि एक कम मूल्यांकन के आरोप को सिद्ध करने का भार राजस्व पर है और राजस्व को उक्त आरोप सिद्ध करने के लिए आवष्यक साक्ष्य प्रस्तुत करना है। सामान्यतया न्यायालय को इकरारनामे के प्रथम दृश्टया आधार पर चलना चाहिए और जिसकी परीक्षा होनी है वह यह है कि क्या राजस्व यह स्थापित करने में सफल रहा है कि दिखायी देने वाला वास्तविक नहीं है और बीजक में दर्षित कीमत वास्तविक विक्रय मूल्य को प्रदर्षित नहीं करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराश्ट्र राज्य बनाम धनेन्द्र श्रीराम भूरले के निर्णय दिनांक 11.02.09 में कहा है कि हम अन्वीक्षण न्यायालय से आग्रह करते है कि अन्वीक्षण यथाषीघ्र अर्थात् इस न्यायालय के आदेष की प्राप्ति से 6 माह के भीतर पूर्ण करे।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य बनाम इन्द्रमोहन चोपड़ा के निर्णय दिनांक 12.02.09 में कहा है कि न्यायिक प्रक्रिया असंदिग्ध रूप से उत्पीड़न या अनावष्यक हैरानगी का साधन नहीं होना चाहिए। विवेकाधिकार का प्रयोग करने में न्यायालय के सावधान और न्यायप्रिय होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने राजकिषोर पाण्डे बनाम उत्तरप्रदेष राज्य के निर्णय दिनांक 27.01.09 में कहा है कि पर्याप्त हेतुक की उपस्थिति का विचारण न्यायालय का विवेकाधिकार है किन्तु ऐसा विवेकाधिकार सषक्त सिद्धान्तों पर प्रयोग किया जाना चाहिए और न कि मात्र तकनीकी बातों पर ऐसे मामलों में न्यायालय का दृश्टिकोण न्याय हेतुक को आगे बढ़ाना होना चाहिए न कि तकनीकी बारिकियों को। एक मामले को जहां तक हो सके गुणावगुण पर निर्धारित करने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। हम उच्च न्यायालय से आग्रह करते हैं कि रिट याचिका को सभी सम्बन्धित पक्षकारों को नोटिस जारी करके फिर भी किसी भी स्थिति में इस आदेष की प्राप्ति से छःमाह के भीतर,यथाषीघ्र निर्धारित करे ।
सुप्रीम कोर्ट ने असीत भट्टाचार्य बनाम हनुमान प्रसाद ओझा के निर्णय दिनांक 15.05.07 में कहा है कि यदि किसी कार्य के हेतुक का अंष भी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 190 (1) के अन्तर्गत प्रसंज्ञान लेने के लिए सक्षम मजिस्ट्रेट के क्षेत्राधिकार में स्थित पुलिस थाने में घटित हुआ है तो अनुसंधान के लिए क्षेत्राधिकार होगा। इसके सामान्य अर्थ में हम यह समझ सकते हैं कि अनुच्छेद 226 के उप अनुच्छेद 2 के अन्तर्गत सख्त रूप से आपराधिक आरोप के लिए लागू नहीं है। कार्य हेतुक का बड़ा भाग उत्तर प्रदेष में घटा हो सकता है जिसका यह अर्थ नहीं है कि कलकता के न्यायालय को कोई क्षेत्राधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने अषोक कुमार यादव बनाम हरियाणाा राज्य (1987 एआईआर एससी 454) में कहा है कि न्याय देना अकेले न्यायालयों का कर्त्तव्य नहीं है। यह उन सबका कर्त्तव्य है जिनसे मुकाबला करने वाले पक्षकारों के मध्य उचित रूप से निर्णय करने की अपेक्षा है। न्यायिक षक्तियों का प्रयोग करने वाले अधिकारियों द्वारा अपनाये जाने वाले कड़े मानकों को बढ़ते हुए प्रषासनिक क्षेत्रों में लगाये जाने से यह अपेक्षा हुई है कि ये उपकरण भी अपने कृत्यों को उन्मोचन उचित एवं न्यायसंगत ढंग से करे। किसी भी उपयोगी और दक्ष लोक सेवा की आवष्यक नींव गुणाधारित चयन, जिसकी निश्पक्षता और उद्देष्यपरक जांच हो है। मौखिक जांच की कुछ हानियां है जैसे कि वैध एवं विष्वसनीय मौखिक जांच विकसित करने में कठिनाई, पुनरीक्षा योग्य मौखिक जांच का रिकॉर्ड प्राप्त करने में कठिनाई, राजनैतिक प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए मार्ग के रूप में मौखिक जांच पर जन संदेह और जैसा कि इस न्यायालय द्वारा अजय हासिया के मामले में कहा गया था कि दूसरे भ्रश्ट, भाई भतीजावादी या अन्य कारणों से यह पूर्णतया आवष्यक है कि सर्वोतम व सर्वोत्कृश्ट प्रतिभा को प्रषासन में व प्रषासनिक सेवाओं में उन लोगों से बननी चाहिए जो कि ईमानदार, स्पश्ट, स्वतन्त्र तथा जो देष में बहने वाली राजनैतिक हवा के झोंको से बह नहीं जावे। पक्षपात की एक ‘तर्क संगत’ संभावना होनी चाहिए। पक्षपात के प्रष्न का निर्धारण करते समय हमें मानवीय संभावनाओं तथा मानव के सामान्य स्वभाव का ध्यान रखना चाहिए। भविश्य में हरियाणा राज्य सेवा आयोग द्वारा जो भी चयन किया जाये उनमें मौखिक जांच के लिए 12.2 प्रतिषत से अधिक अंक सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए नहीं होेंगे।

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