Wednesday 22 June 2011

सही कानून का अनुसरण हो


सुप्रीम कोर्ट ने सैयद दस्तगीर बनाम गोपालकृश्ण षेट्टी (1999 (6) एससीसी) में कहा है कि यदि अभिवचन के निर्वचन से दो व्याख्याएं संभव हो तो वह व्याख्या जिससे न्याय विफल होता हो को छोड़कर उसे अपनाना चाहिए जिससे न्याय का उद्देष्य फलित होता हो।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब नेषनल बैंक बनाम आर.एल. वैध (एआईआर 2004 एससी 4269) में कहा है कि इस प्रकार की कार्यवाही में न्यायालय को अंधेरे में नहीं रखा जाना चाहिए, न्याय प्रषासन की पहुंच यथा संभव हर सुसंगत विशय वस्तु तक होनी चाहिए। मात्र एक निर्णय पर निर्भर होते हुए निपटान देना ठीक नहीं। दृश्टान्त का अनुसरण तब तक ही होना चाहिए जब तक कि वह न्याय पथ को आलोकित करे लेकिन आपको सूखी लकड़ियां तथा आस पास की षाखाएं काट देनी चाहिए अन्यथा आप घने जंगल और षाखाओं में खो जाओगे।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने वाणिज्यिक कर अधिकारी बनाम अलायड इलेक्ट्रोनिक्स एण्ड मेगनेटिक्स लि0 (आरएल डब्ल्यू (4) राज. 2650) में कहा है कि मैं यह समझता हूं कि यदि एक मद दो अधिसूचनाओं के अन्तर्गत आता है तो जो अधिसूचना कर-निर्धारिती के लिए लाभप्रद है वह लागू की जानी चाहिए। इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने मैसूर मिनरलस लि0 बनाम कमीषनर आयकर (एआईआर 1999 एस सी 3185) में कहा है कि यदि कराधान के एक प्रावधान के दो अर्थ निकलते हों तो जो कर-निर्धारिती के पक्ष में हो उसे लागू किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रीतमपाल बनाम मध्यप्रदेष उच्च न्यायालय (1992 एआईआर 904) में बल दिया है कि लोगों का कल्याण ही सर्वोपरि कानून है में कानून के विचार की पर्याप्त झलक मिलती है।
उड़ीसा उच्च न्यायालय ने अजन्ता एन्टरप्राईजेज बनाम हेक्सट फार्मास्यूटिक्लस (एआईआर 1987 उड़ीसा 34) में कहा है कि निश्कर्श रूप में जब प्रस्तुत करने के पांच वर्श बाद वाद परीक्षण हेतु तैयार है तो ऐसी कोई विशय वस्तु नहीं है जिससे प्रत्यर्थी यह स्थापित कर सके कि वह पूर्वाग्रह से ग्रसित होगा ।न्यायालय द्वारा वाद पत्र लौटाना न्यायोचित नहीं है।
गौहाटी उच्च न्यायालय ने वाई आबोयामा सिंह बनाम मणीपुर स्टेट कॉपरेटिव ट्राईब्यूनल (एआईआर 1985 गोहाटी 88) के मामले में निर्णय दिनांक 22.02.1984 में कहा है कि यह सुस्थापित तथ्य है कि व्याकरण पर आधारित अर्थ लगाते समय उदार अर्थ लगाया जाना चाहिए ताकि अधिनियम के उद्देष्य एवं अन्य प्रावधानों से आने वाला प्रकाष प्रावधानों के छिपे हुए उद्देष्यों को आलोकित कर सके। ट्राईब्यूनल का कोई विषेश उद्देष्य है। न्यायालय, जोे कई विपरीत प्रकृति के हैं कि, तुलना में इसके कई लाभ है। वास्तव में ट्राईब्यूनल के समक्ष की कार्यवाहियां सस्ती एवं त्वरित है। इस प्रकार अधिनियम की धारा 97 के प्रसंग में सहकारी समितियां सामान्यतया छोटे व्यक्तियों की सस्थायें है। विधायिका ने छोटे व्यक्ति को लम्बे एवं खर्चीले मुकदमेबाजी से रक्षा करने का आषय रखा था।

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