Friday 17 June 2011

न्यायालय सभी प्रश्नों का पक्षपातहीन निर्णय करें


सुप्रीम कोर्ट ने न्यू प्रकाष ट्रांसपोर्ट कम्पनी बनाम न्यू स्वर्ण ट्रांसपोर्ट कम्पनी के निर्णय दिनांक 30.09.56 में कहा है कि सुविधा और न्याय की प्रायः आपस में बनती नहीं है। जिन लोगों का कर्त्तव्य अपील का निर्णय करना हो उन्हें यह न्यायिकतः करना चाहिए। उन्हें संदर्भित किये गये प्रष्न बिना पक्षपात के विरचित करने चाहिए और उन्हें प्रत्येक पक्षकार को अपना मामला प्रस्तुत करने के लिए पूर्ण अवसर देना चाहिए। निर्णय इसी भावना और अर्थ में दिया जाना चाहिए जिस ट्राईब्यूनल का कर्त्तव्य है वह न्याय करे।
सुप्रीम कोर्ट ने एस.जी. जयसिंघानी बनाम भारत संघ (1967 एआईआर 1427) में कहा है कि विधि के षासन का प्रथम तत्व मनमानी षक्तियों का अभाव है और जब कभी भी कार्यपालिका के अधिकारी को विवेकाधिकार दिया जाये तो वह स्पश्ट रूप से परिभाशित सीमाओं के भीतर बन्धा हुआ होना चाहिये और उनके निर्णय सुज्ञात सिद्धान्तों और नियमों के प्रयोग द्वारा लियो जाने चाहिये।
सुप्रीम कोर्ट ने द्वारिकेष षुगर इण्डस्ट्रीज बनाम प्रेम हैवी इंजीनियरिंग वर्क्स (1997 एसएससी 450) में कहा है कि जब इस न्यायालय द्वारा घोशित कानून के परिणामस्वरूप कानूनी स्थिति स्पश्ट हो तो उच्च न्यायालय सहित अधिनस्थ न्यायालयों के लिए न्यायिक अनौचित्य होगा कि वे निर्णित निर्णयों की अनदेखी करें और तब वे कानूनी स्थिति से विपरीत निर्णय पारित करें। इस प्रकार के न्यायिक साहस की अनुमति नहीं दी जा सकती और हम अधीनस्थ न्यायालयों की सुनिष्चित सिद्धान्तों के लागू न करने और उन्मादी निर्णय देने जिसका आवष्यकीय प्रभाव यह होता है कि एक पक्षकार को गलत एवं अनुचित लाभ मिलता है की हम कड़ी भर्त्सना करते हैं ।अब उपयुक्त समय है कि यह प्रवृति रूके।
सुप्रीम कोर्ट ने भारत संघ बनाम माजी जंग माया (एआईआर 1977 सुको 757) में कहा है कि वास्तव में प्रषासनिक निर्देषों के माध्यम से इस प्रकार के तर्क को निरस्त करके जो कि केन्द्रीय राजस्व बोर्ड द्वारा प्रेशित किया गया था कि यह तय किया जाता है कि प्रषासनिक निर्देष अथवा आदेष कोई कानूनी नियम नहीं है।

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