Tuesday 7 June 2011

क्षेत्राधिकार का विस्तृत दायरा


राजस्थान उच्च न्यायालय ने ज्ञानसिंह बनाम राजस्थान राज्य (1999 क्रि.ला.री.राज0 108) में कहा है कि इस चरण पर केवल यही सुसंगत है कि याची ने रंजुबाला को सम्पति लौटाने से मना कर दिया। यह हो सकता है कि संपति की मांग और मनाही पंजाब में की किन्तु जब सम्पति जिसके दुरविनियोग का आरोप है तो जिस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में अपराध हुआ था सम्पति का कोई भाग रोका या प्राप्त किया गया या लौटाया जाना या दोशी व्यक्ति द्वारा हिसाब दिया जाना था। द.प्र.सं. की धारा 181 (4) के अन्तर्गत रायसिंहनगर पुलिस के क्षेत्राधिकार से बाहर नहीं करती। यह बड़ा स्पश्ट है कि जिस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में सम्पति प्राप्त की गई को अपराध की अन्वीक्षा करने का क्षेत्राधिकार है। बहस के समय यह भी विवादित रहा कि बख्तावरसिंह के साथ रंजूबाला का विवाह रायसिंहनगर में हुआ । जैसे कि संपति का एक भाग प्रार्थी द्वारा रायसिंहनगर न्यायालय के स्थानीय क्षेत्राधिकार में हुआ अतः मामले में रायसिंह नगर पुलिस थाने को जांच करने का क्षेत्राधिकार है। धारा 178 (बी) के संदर्भ में यदि घटना का छोटा सा हिस्सा भी रायसिंहनगर न्यायालय के क्षेत्राधिकार में घटित होता है तो रायसिंहनगर पुलिस जांच कर सकती है।
राजस्थान उच्च न्यायालय रामदेव बनाम राजस्थान राज्य 2006 (1) (क्रि.ला.री.राज. 594) में कहा है कि यदि दूसरे नमूने की जांच से सकारात्मक रिपोर्ट प्राप्त की जा सकती है तो न्यायालय को हस्तलेख के दूसरे नमूने के लिए निर्देष देना चाहिए था। आखिरकार न्यायालय को सत्य का पता लगाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिये थी। इसलिए आदेष दिनांक 11.11.05 स्पश्टतया टिकने योग्य नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुरजीत बनाम भारत संघ (1981 ए.आई.आर. 1153) में कहा है कि जैसा कि पहले बताया गया याचीगणों केा निरूद्ध करने के आधार अंग्रेजी में दिये गये- ऐसी भाशा जिसे वे जानते नहीं थे। जिन परिस्थितियों में उन्हें आधार तामिल किये गये उसे प्रभावी संचार नहीं माना जा सकता कि जिससे कि वे निरूद्ध करने के आदेष के विरूद्ध वास्तव में प्रतिवेदन करने का अवसर हो।
सुप्रीम कोर्ट ने त्रिषून केमिकल इंडस्ट्री बनाम राजेष अग्रवाल (एआईआर 1999 सु.को. 3499) में कहा है कि क्षेत्राधिकार का प्रष्न जांच या अन्वीक्षा के समय ही सुसंगत है। इस प्रकार यह एक मिथ्या धारणा है कि अन्वीक्षा के लिए क्षेत्राधिकार रखने वाला मजिस्ट्रेट ही संज्ञान देने के लिए षक्ति रखता है। यदि वह प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट है तो उसे संज्ञान लेने की षक्ति क्षेत्राधिकार द्वारा प्रतिबंधित नहीं है। संज्ञान लेने के बाद वह यह निष्चय कर सकता है कि किस न्यायालय को उस अपराध का अन्वीक्षण या जांच करने का अधिकार है और उस स्थिति में वह प्रसंग ज्ञान के बाद ही पहुंचेगा उससे पहले नहीं। ़़़़़

No comments:

Post a Comment