Tuesday 21 June 2011

रक्षक भक्षक की भूमिका न निभाएं


सुप्रीम कोर्ट ने टी. अरिवन्ददम बनाम टी.वी. सत्यपाल (एआईआर 1977 एससी 2421) में कहा है कि हमें यह कहने में लेषमात्र भी संकोच नहीं है कि याची ने न्यायालय की प्रक्रिया का बिना किसी पष्चाताप के बार-बार दुरूपयोग किया हैे। उच्च न्यायालय के निर्णय में समाविश्ट तथ्यों के कथन से स्पश्ट है कि वाद प्रथम मंुसिफ कोर्ट बैंगलोर के समक्ष बकाया है यह कानून की दया का घोर दुरूपयोग है। यदि वाद पत्र का औपचारिक पठन भी किया जावे तो स्पश्टतया, तंग करने वाली और गुणहीन है, अर्थ यह है कि वाद संस्थित करने का कोई स्पश्ट अधिकार भी नहीं देती है। अन्वीक्षण न्यायालय को आदेष 7 नियम 11 सिविल प्रक्रिया संहिता का ध्यान रखते हुए अपनी षक्तियों का प्रयोग करना चाहिए कि उसके द्वारा वांछित आधारों की पूर्ति हुई है और यदि चालाकीपूर्ण अभिवचनों से हेतुक के लिए भ्रमजाल उत्पन्न किया हो तो सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेष 10 के अन्तर्गत षोध करते हुए पहली सुनवाई में ही प्रारम्भ में ही पकड़ लेना चाहिए।
मध्यप्रदेष उच्च न्यायालय ने विनोद कुमार षुक्ल बनाम मध्य प्रदेष राज्य (1999(2) एमपीएलजे 374) में कहा है कि यह सुनिष्चित सिद्धान्त है कि साक्ष्य का वजन देखा जाता है न कि गिनती की जाती है। साक्ष्य की गुणवता अधिक महत्वपूर्ण है बजाय उसकी मात्रा महत्व रखे। यदि पुलिस अधिकारी अखण्डनीय चरित्रवाला, ईमानदार और सच्चा हो तो बिना स्वतन्त्र साक्षी के समर्थन के उसे स्वीकार किया जा सकता है।
पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने चर्चित प्रकरण एस.पी.एस. राठौड़ बनाम केन्द्रीय अन्वेक्षण ब्यूरो के परिवीक्षा के मामले में निर्णय दिनांक 01.09.10 में कहा है कि सबसे सुसंगत तथ्य इस सम्बन्ध में याची का जो पद था का कर्त्तव्य मात्र स्वयं के परिवार के संरक्षक के तौर पर कार्य करने की अपेक्षा नहीं थी। अपितु समस्त समाज के रक्षक की जिम्मेवारी था। न्याय प्रदानगी निकाय को यहां दायित्व लेना है और न्याय प्रदानगी निकाय में पीड़ितों और आम व्यक्ति का बढ़ता विष्वास और आस्था अर्जित करनी है। जोखिमपूर्ण वर्ग के साथ विषेश कर स्त्रियों के साथ अपराधों के साथ कड़ाई से निपटना समय की आवष्यकता है और यदि इसकी सुसंगतता को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो लोगों को राज्य संस्थाओं विषेशकर न्यायिक निकायों में आम आदमी का विष्वास खो जायेगा। विषेशाधिकार एवं षक्ति सम्पन्न लोगों को अपने प्रतिश्ठा के प्रति सचेत होना चाहिए। निकाय द्वारा जो दायित्व याची पर डाला गया था, उसने महत्वपूर्ण कार्यकारी होते हुए पूर्णतया नकार दिया । परिवीक्षा के लाभ के लिए उसकी प्रार्थनाओं पर निचले न्यायालयों ने विस्तार से विचार किया है तथा सुसंगत तथ्यों के ध्यानपूर्वक विचारण के बाद निरस्त किया गया है।

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