Thursday 23 June 2011

राहत के लिए प्रारूप महत्वपूर्ण नहीं


सुप्रीम कोर्ट ने रामचन्द्र गणपत षिंदे बनाम महाराश्ट्र राज्य (एआईआर 1994 एस सी 1673) में कहा है कि दुःसंधि न्यायिक प्रक्रिया को अग्रसर करने का एक रूप है और मुकाबले का बहाना है जिसमें अवास्तविक बल और डिक्री या आदेष प्राप्त किया जाता है। यह न्यायालयों का प्राथमिक कर्त्तव्य एवं सर्वोच्च दायित्व है कि इस प्रकार के आदेषों को यथा षीघ्र ठीक करे तथा विवाद्यकों के विष्वास को पुनर्स्थापित करे, न्याय के स्रोतों की षुद्धता में न्यायिक दक्षता पर लगे धब्बों को हटाये, विधि के षासन के प्रति सम्मान ताकि लोग न्यायालयों में विष्वास न खोयें तथा संविधानेतर उपचार अपनाये जिससे विधि के षासन की मृत्यु की आवाज हो।यदि एक प्रत्यर्थी मामले में मुकाबला नहीं कर रहा हो तो सामान्यतया खर्चे नहीं लगाये जाने चाहिए। किन्तु अपवाद स्वरूप ऐसे व्यक्ति पर खर्चे लगाये जाने चाहिए जिसने कानून को गतिमान किया, उसका लाभ लिया और उसने एक तरफा रहने दिया। इस न्यायालय को अनुच्छेद 142 के अन्तर्गत ऐसी षक्तियों है जिसके अन्तर्गत किसी हेतुक में पूर्ण न्याय के लिए कोई आदेष पारित करने की षक्ति है।
बम्बई उच्च न्यायालय ने जोगानी एण्ड सचदेव डेवलेपमेन्ट्स बनाम लारेंस डिसूजा (2006 (2) एम एच एल जे 369) में कहा है कि राहत के लिए प्रार्थना का प्रारूप या प्रयुक्त षब्दावली असंगत तथ्य है जो कुछ देखने योग्य है वह साररूप में राहत है जो स्वीकृत करने की याचना की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कारबाईड कॉरपोरेषन बनाम भारत संघ (1992 एआईआर एससी 248) में कहा है कि बाद के चरण में प्राकृतिक न्याय पूर्ववर्ती स्तर पर विनिष्चय में जान नहीं डाल सकता जो प्रारम्भ से ही व्यर्थ था। किसी भी व्यक्ति के विचारों को सुने बिना उसके अधिकार प्रभावित नहीं होने चाहिए। हमें यह भी ध्यान है कि न्याय एक मनोवैज्ञानिक उत्सुकता है जिसमें कि लोग अपना दृश्टिकोण प्रस्तुत कर उसकी स्वीकृति चाहते हैं। एक मंच या अधिकारी के समक्ष जो कि उनके अधिकारों के विनिष्चय के दायित्वाधीन हो। फिर भी एक व्यक्ति को विषेश परिस्थितियों में यह ध्यान रखना होता है कि इसका उल्लंघन न्याय के अनुसार किस प्रकार दूर किया जाय। जब सूचना पर पुनरीक्षण आवेदन सुना जावे तो तथ्य व परिस्थितियांे में जैसा कि न्यायालय द्वारा निर्देष दिया गया पर्याप्त अवसर उपलब्ध था कोई और आगे अवसर देना आवष्यक नहीं है और यह नहीं कहा जा सकता कि अन्याय हुआ। आखिरकार बड़ा ठीक कार्य करने के लिए छोटा गलत करना अनुमत है। इन तथ्यों व परिस्थितियों में यह दुर्लभ मामलों में से एक है।

No comments:

Post a Comment