Tuesday 28 June 2011

शब्दजाल हटायें


राजस्थान उच्च न्यायालय ने डी.पी. मेटल्स बनाम राजस्थान राज्य (2000 (3) डब्ल्यू एल एन 445) में कहा है कि दस्तावेज प्रस्तुत नहीं करने या अपूर्ण प्रस्तुत करने पर अर्थदण्ड लगाने से पूर्व नोटिस देना महज एक औपचारिकता नहीं है, अपितु यह इस बात का प्रभावी अवसर देना है कि वह दर्षा सके कि कोई अर्थदण्ड देय नहीं है। यह तर्कसंगत है कि ऐसी चूक कोई कर-अपवंचना या कर चोरी के उद्देष्य से नहीं अपितु सद्भाविक है। यह उल्लंघन तकनीकी उल्लंघन से आगे कुछ नहीं है जिसके लिए अनिवार्य रूप से अर्थदण्ड लगाया जा सके। ऐसे प्रष्न का विनिष्चय स्वयं के तथ्यों एवं परिस्थितियों में किया जाना है।
सुप्रीम कोर्ट ने षिवसागर तिवाड़ी बनाम भारत संघ (एआईआर 1997 एस सी 2725) में कहा है कि जब बारी से बाहर कोई किसी प्रकार का क्वार्टर आवंटित किया जाता है तो कारण सहित बोलता हुआ आदेष पारित किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने नागेन्द्र नाथ बोड़ा बनाम कमीष्नर ऑफ हिल्स डिवीजन (1958 एआईआर 398) में स्पश्ट किया है कि यदि कानून द्वारा सृजित प्राधिकारी में अन्तर्दिश्ट अधिकारों, चाहे वे प्रषासनिक या अर्द्ध न्यायिक हो, अपील एवं पुनरीक्षण को सुनना हो, उसका कर्त्तव्य बनता है कि वह न्यायिकतः सुने। कहने का अभिप्राय यह है कि उद्देष्य पूर्ण तरीके से, निश्पक्ष, सम्बन्धित विवादग्रस्त पक्षकारों को तर्कसंगत अवसर देकर सुने। यह सत्य ही कहा जाता है कि स्थानीय सरकार को ऐसी अपील में मात्र न्यायिक संतुलन संरक्षित करते हुए और अन्तरात्मा से दायित्व की उचित अनुभूति यह दृश्टिगत रखते हुए कि यह लोगों की सम्पति तथा अधिकारों को प्रभावित करता है न्यायिकतः कार्य करना चाहिए। संसद ने इस प्रकार के कार्य निश्पादन हेतु बुद्धिमतापूर्वक ही कुछ नियम बनाये हैं और इन नियमों को अपने समक्ष मामले में लागू करना चाहिए क्योंकि ये कानून द्वारा अधिरोपित है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात स्टील ट्यूब्स लि0 बनाम गुजरात स्टील टू मजदूर सभा (1980 एआईआर 1896) में कहा है कि तथ्य दिमाग का सूचक है तथा एक उचित आदेष जैसा दिखता है वैसे ही ग्रहण किया जाना चाहिए। लेकिन इससे भी अधिक यह है कि कई बार षब्द इस प्रकार गढे जाते हैं कि कृत्यों को ढांकने के लिए षब्दजाल (षाब्दिक इंजीनियरी) का प्रयोग होता है। जिस रूप में भाशा बनाई जाती है वह अंतिम व विनिष्चय नहीं होती। न्यायालय आदेष की प्रकृति को देखने के लिए पर्दा उठायेगा। स्वामी तथा सेवक को बर्खास्तगी के आदेष के साथ आंखमिचौनी खेलने नहीं दी जा सकती और षब्दों के आवरण में स्पश्ट और उचित मानदण्डों को दिषा निर्दिश्ट नहीं करते दिया जा सकता और अपील सारभूत आदेष पर चाहे वह प्रकट हो या अप्रकट पर आधारित होनी चाहिए। न्यायालय अन्य कार्यवाहियों या प्रलेखों से जिनका सम्बन्ध बर्खास्तगी आदेष से हो से आधार पर पता लगायेगा। यदि दण्ड देना उद्देष्य है अर्थात सुधारना है तो आदेष को बर्खास्तगी का आदेष माना जा सकता है और आषय का निर्णयन करने के लिए दुर्भावना (जो कि षक्ति का रंगीन प्रयोग के समान है) महत्वपूर्ण हो जाती है।
पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने रमेष कपूर बनाम पंजाब विष्वविद्यालय (एआईआर 1965 पंजाब 120) में कहा है कि एक परिस्थिति के सही आकलन के लिए यह दोहराना आवष्यक है कि ट्राईब्यूनल जो कि अर्द्धन्यायिक षक्तियों का प्रयोग करते है, न्यायालय नहीं है और वे न्यायालयों के लिए निर्धारित प्रक्रिया का अनुसरण करने के लिए बाध्य नहीं है, वे साक्ष्य के कड़े नियमों से बाध्य नहीं है। उन पर कानून मात्र यह दायित्व डालता है कि वे ऐसी सूचना पर कार्यवाही नहीं करे जो कि जिस पक्षकार के विरूद्ध प्रयोग की जाती है उसे उस पर स्पश्टीकरण देने के लिए उपयुक्त अवसर नहीं दे दिया जाता। जैसा कि न्यायालय की पूर्ण पीठ ने धारित किया है कि उम्मीदवार को दिया जाने वाला अवसर झूठ मूठ में ही न हो और वास्तविक हो तथा उपयुक्त स्पश्टीकरण दे उसे मात्र यही नहीं बताया जाना चाहिए कि उसके विरूद्ध क्या जा रहा है बल्कि वे व्यक्ति भी जो उसके विरूद्ध सूचना दे रहे है। वह यह दर्षाने में समर्थ हो सकता है कि किसी व्यक्ति विषेश का कथन कुछ कारणों से विष्वसनीय नहीं है यह दर्षाने के अतिरिक्त कि कथन षुद्ध नहीं है। प्रस्तुत प्रकरण में जब अपीलार्थी की पीठ पीछे कथन दर्ज किये गये जो कि उसके हित के विपरित है उसके ध्यान में नहीं लाये गये तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसे पर्याप्त अवसर मिला।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जोडियक डॉट कॉम बनाम भारत संघ के निर्णय दिनांक 19.12.08 में कहा है कि सेबी कुछ कम्पनियांे की प्रतिभूतियों में हेराफेरी की जांच कर रहा था और याची को नोटिस दिया गया क्योंकि यह हेराफेरी का संभावित कारक था। यदि ऐसे पक्षकार को उच्च सुरक्षा योजना में भाग लेने दिया जावे तो यह पर्याप्त संभव है कि वे उद्देष्य बुरी तरह प्रभावित हांेगे।


No comments:

Post a Comment