सुप्रीम कोर्ट ने बाजेश्वर प्रसाद मिश्रा बनाम प. बंगाल राज्य (1965 एआईआर सुको 1887) में कहा है कि संहिता में प्रावधान है कि यदि पहले से हुई अन्वीक्षा असंतोषजनक है या न्याय विफल हो गया हो तो एक पुनः अन्वीक्षण दोष सिद्धि या दोषमुक्ति या जैसी भी स्थिति हो को अपास्त कर आदेशित की जा सकती है। इसी प्रकार संहिता अपील न्यायालय को अतिरिक्त साक्ष्य लेने के लिए सशक्त करती है जिनको कि वह लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से आवश्यक समझता है। चूंकि अपील न्यायालय को विस्तृत शक्तियां दी गई है अतः न्यायालय का क्षेत्राधिकार सीमा परिस्थितियों की आवश्यकतानुसार होनी चाहिए और अच्छी समझ ही मात्र सुरक्षित दिग्दर्शिका है। अतिरिक्त साक्ष्य कई कारणों से आवश्यक हो सकते हैं जो कि यहां सूचीबद्ध करना मुश्किल से आवश्यक है। अतिरिक्त साक्ष्य इसलिए आवश्यक नहीं होने चाहिये कि इसके बिना निर्णय नहीं सुनाया जा सकता बल्कि इसलिए कि इसके बिना न्याय विफल हो जायेगा। इस शक्ति का प्रयोग यदा-कदा और उपयुक्त मामलों में किया जाना चाहिए। ऐसा आदेश सामान्यतः नहीं किया जाना चाहिए यदि न्याय की आवश्यकताएं अन्यथा ऐसी अपेक्षा नहीं करती हो। यदि अभियोजन को उचित अवसर दिया गया था और उसने उसे प्रयोग नहीं किया।
वास्तविक लोकतंत्र की चिंगारी सुलगाने का एक अभियान - (स्थान एवं समय की सीमितता को देखते हुए कानूनी जानकारी संक्षिप्त में दी जा रही है | आवश्यक होने पर पाठकगण दिए गए सन्दर्भ से इंटरनेट से भी विस्तृत जानकारी ले सकते हैं|पाठकों के विशेष अनुरोध पर ईमेल से भी विस्तृत मूल पाठ उपलब्ध करवाया जा सकता है| इस ब्लॉग में प्रकाशित सामग्री का गैर वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए पाठकों द्वारा साभार पुनः प्रकाशन किया जा सकता है| तार्किक असहमति वाली टिप्पणियों का स्वागत है| )
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