Wednesday 14 September 2011

इतिहास के झरोखे से भारतीय न्याय तंत्र

हिंदी अपनाएँ राष्ट्र का मान बढ़ाएं ...!
भारतीय न्याय प्रणाली के विकास में  आदि काल से मनुस्मृति, मृछ्कटीकम का उल्लेख किया जा सकता है यद्यपि विधि व्यवसाय की वर्तमान शिक्षा में इनका कोई अध्ययन शामिल नहीं है| ये ग्रन्थ मात्र विधि के प्रामाणिक ग्रन्थ ही नहीं हैं अपितु नीति पर व्याख्याएं भी हैं| महाभारत को भी आदर्श नीति ग्रन्थ मना गया है और कहा गया है कि महाभारत पांचवां वेद है| कालांतर में मुस्लिम शासकों ने कुरान व हिदाया आदि पर आधारित मुस्लिम विधि को भारत में लागू किया| मुगलों के बाद देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन स्थापित हो गया और उसने भारत के संसाधनों का अधिकाधिक दोहन  करने के अनुकूल कानून बनाये औए उनको इस देश की जनता पर थोपा गया| हमारी न्यायप्रणाली पर आज भी उर्दू व अंग्रेजी  भाषाओं का प्रभाव है| जिन न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी नहीं है उनमें परिपाटी के आधार पर प्रायः उर्दू शब्दावली का प्रयोग होता है| यद्यपि इन न्यायालयों के कार्मिकों, न्यायाधीशों अथवा वकीलों किसी- ने भी उर्दू भाषा की शिक्षा नहीं ले रखी है|

सन 1857 में हुई क्रांति ने इस दिशा में परिवर्तन किया और देश के शासन की बागडोर को ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथ में ले लिया व अब कानून बनाने का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था| भारत के लिए कानून बनाते समय विद्रोह की उठाने वाली आग  या स्वतंत्रता के पक्ष में उठने वाले प्रत्येक स्वर को दबाना लक्ष्य समक्ष रहता था| इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लोर्ड मैकाले ने भारतीय दण्ड संहिता, 1860 का निर्माण किया जिसमें लोक सेवकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई विशेष प्रावधान शामिल किये गए| लोक सेवकों के विरुद्ध अपराध आदि विशेष अध्याय इसी कड़ी का एक भाग हैं| लोक सेवकों पर हमला आदि को अलग से परिभाषित किया गया और इन अधिकांश अपराधों को संज्ञेय घोषित किया गया| इसी प्रकार राज कार्य में बाधा जैसे अस्पष्ट किन्तु संज्ञेय अपराध भी इसमें शमिल कर पुलिस सहित समस्त लोक सेवकों की सुरक्षा की सुनिश्चित व्यवस्था की गयी| यही नहीं इन राजपुरुष-लोक सेवकों के अभियोजन से पूर्व स्वीकृति का प्रावधान जोड़कर उन्हें पूर्ण अभय दान दे दिया गया जो आज लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भी बदस्तूर जारी है| आज विकसित राष्ट्रों में इस प्रकार के मनमाने कानूनों को कोई स्थान नहीं हैं और वहाँ लोक सेवकों के अधिकारों के बजाय उनके कर्तव्यों पर बल दिया जाताहै | हमारी शासन और न्याय व्यवस्था में आज भी राजतन्त्र की बू आती है और नागरिकों को आहूत करने के लिए पुलिस और अन्य राज्याधिकारी सुनिश्चित करने के स्थान पर पाबंद करें जैसे अनधिकृत शब्दों का प्रयोग करते हैं| वे सम्भवतया  भूल जाते हैं कि वे इस लोकतान्त्रिक  व्यवस्था के स्वामी न होकर सेवक ही हैं|

कालांतर में ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 पारित किया था जो कि मूलतः हमारे वर्तमान संविधान से मिलता जुलता ही है चाहे हम हमारे संविधान पर गर्व करते हों किन्तु वास्तिविक स्थिति यही है| यह अधिनयम भी हमारी सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है| अब ब्रिटिश संसद ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 को हाल ही दिनांक 19.11.1998 को निरस्त कर दिया है| इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता को मात्र एक सत्ता हस्तांतरण ही कहा जाय तो ज्यादा सही व उपयुक्त है| वर्तमान में देश में पांच शक्तिशाली तत्वों धनाढ्य वर्ग, बाहुबलियों, राजनेताओं, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों तथा न्यायिक अधिकारियों का वर्चस्व है और इस लोक तंत्र में इन पांच समानांतर सरकारों के मध्य लोक का कोई स्वर सुनाई नहीं देता| आधी रात रामलीला  मैदान में आज भी प्रशासन के इशारे पर पुलिस रावणलीला खेल सकती है और न्यायालय भी उन खिलाडियों का अंततोगत्वा कुछ भी नहीं बिगाडेंगे| यद्यपि लोकप्रदर्शन के लिए यह न्यायिक अभ्यास कुछ समय के लिए जारी रह सकता है किन्तु इतिहास साक्षी है कि स्वतंत्र भारत में यद्यपि शक्तिसम्पन्न लोगों द्वारा अपराध के कई मामले प्रकाश में आये किन्तु मुश्किल से ही  किसी को कोई सजा हुई है| न्यायतंत्र से जुड़े लोग इस स्थिति के लिए विद्यमान  प्रक्रिया को व एक दूसरे को इसके लिए दोषी ठहराते रहते हैं और मिलीभगत की कुश्तियां इन दंगलों में चलती रहती हैं|

कालांतर में राजशाही के कारण आई इन विकृतियों को दूर करने के लिए आवश्यक है कि हम हमारी सांस्कृतिक विरासत को संभालें और मनुस्मृति, मृछ्कटीकम, महाभारत जैसे नीतिग्रंथों के  चुनिदां अंशों को विधि शिक्षा में शामिल करें| जो कानून एक नागरिक पर हमले पर लागू होता है वही कानून एक लोक सेवक पर हमले का भी उपचार प्रदान कर सकता है| देश में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना के लिए आवश्यक है कि राजतान्त्रिक शब्दावली और कानूनों का पूर्ण सफाया कर जनता के लिए अनुकूल कानूनों का निर्माण करें तथा समस्त  राजशाही कानूनों को (तुर्की की तरह) निरस्त कर उनके अवशेषों को समाप्त करें| हमारी आने वाली पीढ़ियों को यह सन्देश नहीं मिलना चाहिए कि हम 500 वर्षों तक मुगलों और अंग्रेजों के गुलाम रहे थे| लोकतंत्र मात्र तभी मजबूत बन सकेगा|

जय भारत !

जय भारत !

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