Friday 16 September 2011

अवमान में मियाद बाधक नहीं है

सुप्रीम कोर्ट ने पल्लव सेठ बनाम कस्टोडियन के निर्णय दिनांक 10.08.01 में कहा है कि शब्द और शब्द समूह मानसिक संदर्भ को प्रेरित करने के प्रतीक हैं। एक कानून की व्याख्या करने का उद्देश्य उसे बनाने वाली विद्यायिका का आशय जानना है। विधायिका का प्राथमिक उद्देश्य  प्रयुक्त भाषा से लेना है जिसका अर्थ है कि जो कुछ कहा गया है वही नहीं अपितु जो कुछ नहीं कहा गया उसकी ओर भी ध्यान देना। हम विशेष  न्यायालय के निष्कर्षों की परीक्षा करना आवश्यक नहीं समझते कि यह सतत् गलती है या अवमान। इसलिए धारा 20 अवमान की कार्यवाही में अवरोध नहीं है। धारा 20 की व्याख्या जैसे कि अपीलार्थी ने की है जिससे कि न्यायालय की संवैधानिक शक्ति सकल अवमान के प्रकरण में कार्यवाही करने के लिए शून्य हो जायेगी और अवमानकारी द्वारा जालसाजी करके एक वर्ष तक छुपा कर धारा 20 को अनुच्छेद 129 तथा 215 के साथ टकराव में ठहराये जाने का दायी बना दिया गया। इस प्रकार की कठोर व्याख्या टाली जानी चाहिए। ये प्रावधान न्याय तथा समता के मौलिक प्रावधान रखते हैं अर्थात् एक पक्षकार को इस बात के लिए दण्डित नहीं किया जाना चाहिये कि वह कार्यवाही प्रारम्भ करने में असफल रहा क्योंकि आवश्यक तथ्यों को उससे छुपाया गया और एक पक्षकार जिसने जालसाजीपूर्वक कार्य किया हो उसके पक्ष में इस प्रकार की जालसाजी का मियाद  बीतने के कारण लाभ नहीं दिया जाना चाहिये।

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