Sunday 25 September 2011

सिर्फ उचित ढंग की साक्ष्य ही स्वीकार्य

सुप्रीम कोर्ट ने (एआईआर 1998 सु.को. 201) में कहा है कि पदनामित न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश  द्वारा कथित पत्रों के  किसी भाग को प्रयोग में लेना विशेष रूप से तब जब कि वे पत्र विधि को ज्ञात किसी भी प्रक्रिया द्वारा मामले में साक्ष्य की तरह प्रस्तुत किये गये थे अवैध था| किसी के द्वारा भी एक शपथ पत्र भी कम से कम औपचारिक रूप से उन पत्रों  को साक्ष्य में साबित करने के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया था। यह सुस्थापित है कि अभियुक्त को जो कुछ साक्ष्य में नहीं था के बारे में प्रश्न करके टकराया नहीं जा सकता। संहिता की धारा 313 प्रश्न पूछने के लिए काम में लेने के आशयित  नहीं है। कोई भी अन्वीक्षण न्यायालय साक्ष्य के बाहर से कोई प्रलेख या कागज से अभियुक्त पर थप्पड़ की तरह चस्पा नहीं  सकता और उसे पक्ष या विपक्ष में जवाब देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। विद्वान न्यायाधीश  द्वारा कथित दो पत्रो को काम में लेने के लिए अपनायी गई प्रक्रिया कानून द्वारा अनुमत नहीं है। हम इसलिए उक्त तरीके को नामंजूर करते है और कथित पत्रों को बाहर करते हैं।

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