Sunday 4 September 2011

न्यायालयों के मशीनीकरण से उत्कर्ष्ट न्यायतंत्र की ओर

न्यायालयों में सुनवाई के सार का  सही एवं विश्वसनीय रिकार्ड ,फाइलिंग एवं सक्रिय सहभागिता  एक सशक्त , पारदर्शी  और विश्वसनीय न्यायपालिका की कुंजी है | 1960 के दशक से ही पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के विकसित देशों में आंतरिक रिकोर्ड रखरखाव की प्रक्रिया की प्रभावशीलता में सुधार के लिए मांग उठी| सामान्यतया अधिक लागत वाली श्रम प्रधान (हाथ से संपन्न होने वाली) प्रक्रिया की तुलना में स्वचालित रिकार्ड करने और स्टेनोग्राफी के उपकरणों की ओर परिवर्तन को उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के बाहर एक चुनौती के रूप में देखा जाता है| विकसित राष्ट्रों में  न्यायालयों को सशक्त सूचना संचार तकनीक ढांचे और कुशलता का लाभ मिलता है जिससे रोजमर्रा की कार्यवाहियों का ऑडियो वीडियो रिकार्ड, स्टेनो मशीन और बहुत से अन्य कार्य कंप्यूटर प्रणालियाँ के माध्यम से करना अनुमत है |

विकासशील और संघर्षरत राष्ट्रों में तकनीकि ढांचे का सामान्यतया अभाव है| इसलिए स्वस्थ न्यायिक तंत्र के निर्माण या पुनर्निर्माण में अन्तर्वलित महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों के अतिरिक्त विकासशील और संघर्षरत राष्ट्रों को न्यायसदन में रिकार्डिंग प्रणाली में सुधारों को प्रभावी बनाने हेतु तकनीकि ढांचे में भी सुधार करने चाहिए| आज अमेरिकी राज्यों सहित नाइजीरिया, बुल्गारिया, कजाखस्तान और थाईलैंड में मशीनीकरण पर भूतकालीन और चालू अनुभव  के आधार पर अध्ययन करने वाले निकाय हैं| मशीनीकृत रिकार्डिंग प्रणाली वाले न्यायसदन स्थापित करने और विकसित करने का ज्ञान रखने  वाले  निकाय दिनों दिन बढ़ रहे हैं| इन अध्ययनों में पश्चिमी विकसित  और विकासशील -दोनों- देशों में कुशल न्यायसदन रिकार्डिंग प्रणालियाँ स्थापित करने में चुनौतियाँ उभरकर सामने आई हैं | इन अध्ययनों में विकासशील राष्ट्रों की न्यायसदन में हाथ से  रिकार्डिंग की प्रणाली से अधिक दक्ष स्वचालित रिकार्डिंग प्रणाली की ओर परिवर्तन में सहायता करने के महत्त्व की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है और इससे होने वाले लाभों की सूची भी दी गयी है|

विकसित, विकासशील और संघर्षरत राष्ट्रों में इस उच्च तकनीकि परिवर्तन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जैसे लागत में वृद्धि, सामान्य कानून एवं सिविल कानून में साक्ष्य रिकार्डिंग के भिन्न भिन्न मानक, उपकरणों के उपयोग के लिए प्रारंभिक एवं उतरवर्ती प्रशिक्षण, सुविधाओं का अभाव और मशीनीकरण के कारण बेरोजगारी| उच्च तकनीकि रिकार्डिंग प्रणालियाँ स्थापित करने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ साथ पर्याप्त वितीय संसाधनों की आवश्यकता है| दूसरे राष्ट्र  ऊँची लगत वाली उन्नत रिकार्डिंग मशीनों की लागत वसूली के लिए संघर्ष करते रहते हैं| अमेरिका में मेरीलैंड राज्य में और कजाखिस्तान गणतंत्र में  राजनैतिक इच्छाशक्ति और  वितीय संसाधन दोनों ही विद्यमान थे तथा वहाँ परंपरागत रिकार्डिंग प्रणाली से नई उन्नत तकनीक की ओर  परिवर्तन सफल रहा |
मेरीलैंड के अध्ययन से प्रदर्शित होता है कि नई रिकार्डिंग मशीन प्रणाली लगाने की एकमुश्त लागत प्रतिपूर्ति करने वाले दीर्घकालीन लाभों- वेतन भत्तों में कमी  आदि - को देखते हुए न्यायोचित है| अन्यथा एकमुश्त लागत एक चुनौती ही रहती है| कजाखिस्तान जैसे कई राष्ट्रों ने वितीय चुनौतियों पर विजय पाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से साझेदारी भी की गयी है| दीर्घकालीन लाभों को देखते हुए मुख्य न्यायालयों में उच्च तकनीक वाली रिकार्डिंग प्रणाली लगाया जाना तुलनात्मक रूप में वहनीय हो सकता है| किसी भी सूरत में  समस्त विकासशील या संघर्षरत देशों में राजनैतिक इछाशक्ति, आधारभूत ढांचा और या साझी संस्थाओं के साथ नवीन प्रणाली स्थापित करने के संबंधों का अभाव है| वर्तमान में युद्धजर्जरित लाइबेरिया में न्यायाधीश सुनवाई हेतु  बैठने के लिए स्थान पाना मुश्किल पा रहे हैं| ढांचे विद्युत शक्ति सहित- को स्थिर करना भी एक समस्या है|

वितीय पहलू के अतिरिक्त न्यायालय अपने ऐतिहासिक परम्पराओं के कारण भी एक चुनौती का सामना कर सकते हैं| परंपरागत आपराधिक कानून मौखिक साक्ष्य और मौखिक रिकार्ड को उच्च प्राथमिकता देता है जबकि सिविल न्याय मौखिक रिकार्ड को कम महत्त्व देता है| गवाह न्यायाधीश के सामने साक्ष्य देते हैं (भारत में व्यवहार में न्यायाधीश की अनुपस्थिति में भी साक्ष्य चलता रहता है), और न्यायाधीश इसका सार  रजिस्ट्रार को देता है जोकि इसे टाइप करता है| पक्षकार/साक्षी को समय-समय पर इसे पुष्ट करने के लिए कहा जाता है कि क्या  यह सही है और पक्षकार को जहाँ कहीं वह उचित समझे दुरुस्त कराने के लिए प्रेरित किया जाता है| आडियो वीडियो प्रणाली से अवयस्कों और उन लोगों का भी परीक्षण संभव है जो मुख्य न्यायालय में सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सकते हैं|

फ़्रांस में न्यायालय क्लर्क न्यायाधीश और पक्षकारों के मध्य विनिमय किये गए समस्त रिकार्ड का लेखाजोखा रखने के दयित्वधीन है| वहाँ कोई मौखिक रिकार्ड नहीं रखा जाता है |इस प्रकार फ़्रांसिसी सिविल मामलों में मौखिक परीक्षण का रिकार्ड रखने के बजाय परीक्षण कार्यवाही के सार पर बल दिया जाता है | आपरधिक मामलों में फ़्रांस में दृष्टिकोण थोडा भिन्न है| इन मामलों में न्यायाधीश ऑडियो वीडियो रिकार्ड की अपेक्षा कर सकता है | फ़्रांस में आपराधिक मामलों में ऑडियो वीडियो रिकार्डिंग स्वतः नहीं है अपितु न्यायाधीश के विवेक पर है| ऐसी रिकार्डिंग जो स्पष्टतया अनुमोदित नहीं हो मुख्य न्यायाधीश द्वारा 18000 यूरो से अन्यून दंडनीय है| ऐतिहासिक मामलों में ऑडियो वीडियो रिकार्डिंग संग्रहालय में भी संधारित की जाती हैं| उदाहराणार्थ  उक्रेन में मामले  के दोनों अथवा एक पक्षकार द्वारा आवेदन करने या न्यायाधीश द्वारा पहल करने के अतिरिक्त कार्यवाही की रिकार्डिंग नहीं की जाती है| परिणामस्वरूप अधिकांश कार्यवाही पुराने परंपरागत ढंग से स्टेनो, टाइप आदि द्वारा जारी रहती है| सामान्यतया न्यायाधीशों द्वारा भी इस नवीन प्रणाली का प्रतिरोध किया जाता है| जहाँ कहीं भी नए कानूनी प्रावधान मौखिक रिकार्डिंग के पक्ष में हैं न्यायाधीश परिवर्तन का विरोध करते हैं|
भारत में भी सिविल मामलों में यद्यपि गवाह  द्वरा बयान शपथ पत्र द्वारा वर्ष 1999 से ही अनुमत किया जा चुके हैं किन्तु अभी भी गवाहों को बयान के लिए कठघरे में बुलवाने की परमपरा जारी है| मार्क्स ज़िमर के अनुसार सिविल न्यायाधीश ऐसी पारदर्शिता से भयभीत हैं जो  मौखिक परीक्षण रिकार्डिंग से उद्भूत होती हो और वे मामले के पक्षकारों को ऐसी पारदर्शिता से होने वाले  सामाजिक लाभों  को ही विवादित करते हैं| सिविल न्यायाधीश मानते हैं कि पारदर्शिता से अपीलों की संख्या और न्यायाधीशों के विरुद्ध अनाचार के व्यक्तिगत मामले दोनों में वृद्धि होगी| यद्यपि आज तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ये भय न्यायोचित हैं अथवा निर्मूल हैं| वर्तमान में कजाखस्तानी न्यायाधीश मौखिक साक्ष्यों की रिकार्डिंग की ओर बदलाव कर रहे  हैं| मौखिक साक्ष्यों की रिकार्डिंग की स्वीकार्यता में उनके मानसिक परिवर्तन और शुद्धता, पारदर्शिता, और अन्ततः सुरक्षा जो मौखिक रिकार्ड से न्यायाधीश एवं पक्षकार दोनों को उपलब्ध हो रही है| दक्षिण अफ्रीका में भी साक्ष्यों की ऑडियो रिकार्डिंग पर्याप्त समय से प्रचलन में है और इस उद्देश्य के लिए वहाँ अलग से स्टाफ की नियुक्ति की जाती है जो ऐसी प्रतिलिपि को सुरक्षित रखता है| न्यायालयों में प्रयोज्य उपकरणों के दक्ष उपयोग के लिए प्रारंभिक और लगातार प्रशिक्षण आवश्यक है| प्रत्येक प्रशिक्षण का वातावरण भिन्न होता है और समयांतराल से परिपक्व होता है| कई अफ्रीकी देशों यथा लाइबेरिया में सीमित न्यायिक सुविधाएँ हैं और न्यायालय जीर्णशीर्ण और टूटी फूटी इमारतों में संचालित हैं| इसलिए कानूनी कार्यवाहियाँ प्रायः न्यायाधीशों के कार्यालयों में ही संपन्न होती हैं |

जिन राष्ट्रों में न्यायालयों में काफी ज्यादा स्टाफ है उनमें मशीनीकरण से बेरोजगारी उत्पन्न होने का भय विकसित राष्ट्रों के बजाय ज्यादा है| न्यायालय स्टाफ को नवीन प्रक्रिया के योग्य बनाकर, स्वेच्छिक सेवा निवृति, अन्य विभागों में स्थानांतरण करके अथवा सेवा निवृतियों को ध्यान में रखकर चरणबद्ध मशीनीकरण कर इसका समाधान किया जा सकता है| स्वतंत्रता से पूर्व देशी राज्यों  के मध्य आयात पर जगात (आयात कर) लगता था | स्वंत्रता के उपरांत जगात  समाप्त कर स्टाफ का राज्यों द्वारा विलय कर लिया गया था| इसी प्रकार हाल ही में चुंगी समाप्त कर स्टाफ का समायोजन किया जाना एक अन्य उदाहरण है|  न्यायालयों में सारांशिक कार्यवाही के योग्य सिविल एवं आपरधिक मामलों का दायरा बढाकर भी त्वरित न्याय दिया जा सकता है| वैश्वीकरण के बहाव में कुछ वर्ष पूर्व कम्प्यूटरीकरण, दक्षता एवं लाभप्रदता में वृद्धि के लिए बैंकों और अन्य सार्वजानिक उपक्रमों में स्वेच्छिक सेवा निवृति और निष्कासन योजना को प्रोत्साहन दिया गया था| यद्यपि इस योजना का श्रम संघों द्वारा विरोध किया गया था किन्तु न्यायालयों एवं विधायिका दोनों द्वारा इसे उचित ठहराया गया था| अतः इसे अब न्यायालयों में लागू करने में भी कोई बाधा प्रतीत नहीं होती है|

कजाखिस्तान, बुल्गारिया, बोस्निया, हेर्ज़ेगोविना और अन्य बहुत से राज्यों में मशीनीकरण और आधुनिकीकरण के सकरात्मक परिणाम मिले हैं| इनमें समय की बचत ,पारदर्शिता एवं शुद्धता में वृद्धि, न्याय सदन की उन्नत प्रक्रियाएं, न्यायपालिका में विश्वास में वृद्धि ,अपील प्रक्रिया का अधिक दक्ष उपयोग  आदि प्रमुख हैं| दृश्य श्रव्य (ऑडियो-वीडियो) और उच्च तकनीकि न्यायालय रिकार्डिंग मशीनों से उच्च पारदर्शिता आती है क्योंकि वे सुनवाई का अच्छी तरह से सही और सम्पूर्ण रिकार्ड प्रस्तुत करती हैं| इससे से भी आगे कि परीक्षण न्यायालय का रिकार्ड अपीलीय न्यायालय द्वारा आसानी से अवलोकन किया जा सकता है| अधिकांश मामलों में रिकार्डिंग मशीनों द्वारा तैयार रिकार्ड असंपादित होता है, शब्दशः रिकार्ड जिसकी अपेक्षा करने पर मूल रूप में न्यायाधीश और पक्षकार दोनों द्वारा समीक्षा की जा सके| सही एवं शुद्ध रिकार्ड न्यायालय की प्रक्रिया में सुधार लाते हैं क्योंकि दावे के समस्त पक्षकार और न्यायाधीश सभी जानते हैं कि उनका व्यवहार रिकार्ड पर है |


दृश्य श्रव्य रिकार्डिंग से न्यायिक प्रक्रिया का संरक्षण होता है क्योंकि इससे सभी पक्षकारों  को वास्तविक कार्यवाही के प्रति जिम्मेदार ठहराये जाने के लिए इसे मोनिटरिंग उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है| न्यायिक प्रक्रिया और प्रोटोकोल का सही सही एवं संकलित और पूर्ण चित्र प्रदान करने से यह प्रणाली नागरिकों को अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति शिक्षित करती है जिससे  अंततोगत्वा न्यायसदन में न्यायाधीश और पक्षकार दोनों के निष्पादन में सुधार आता है| यह ज्ञात होने पर कि इसे न्यायाधीश द्वारा विस्तार से देखा जा सकता है पक्षकार अधिक स्पष्ट और सही बयान देंगे| न्यायिक आचरण भी इससे मोनिटर किया जा सकता है और इससे अपील के आधारों की स्पष्टता और प्रमाणिकता बढती है |परिणामतः इससे निर्णय देने और मामला प्रस्तुत करने सम्बंधित प्रोटोकोल और व्यावसायिकता का निर्णयन में सही उपयोग करने को प्रोत्साहन मिलता है| न्यायाधीशों की  समयनिष्ठा एवं अनुशासनबद्धाता के साथ-साथ न्यायिक प्रक्रिया में  दुरभिसंधियों पर भी इससे अंकुश लगता है|

2 comments:

  1. आप का निष्कर्ष सही है। नयी तकनीक का प्रयोग होना चाहिेए।
    एक महत्वपूर्ण आलेख।

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  2. Sharma ji. thanks. the live/video/audio recording of Supreme court court proceeding must be live for all to see the justice being done, since it is said justice should seen as done. if International court of justice at The Hague proceedings can be seen live then why not our supreme court proceeding, when lots of money is spent on new technology. does the IT facilities are for court official personal use or for the public. what is there for honourable SC judges to hide, for which they obeject for live broad cast/recordings. till live broad cast happen they must allow the video/audio recording of the proceeding immediately. i know at least one case, being standing in the court, where the ASG was not present in the court but when the order came later it stated that ASG made the statement in the court, when he was not even present there. the order affect hundereds of persons, but after that illegal order nothing can be done, since it was a SC order(final). had there been live/video/audio recording the judges would not have dared to write what was not discussed/argued in the court to base their collusive judgement/order. if a lower court give defective illigal order it can be correct by the next higher court but if illegality is done by the supreme court then the citizens has no place to go except to suffer whole life due to the dishonest SC judges.

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