Friday 23 September 2011

न्यायिक नियुक्तियां व न्याय प्रशासन

फ़्रांस में एक स्वशासी निकाय है जो न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखती है| इस निकाय में न्यायिक नियुक्तियां के लिए 12 सदस्य हैं- जिनमें चुने गए न्यायाधीश, लोक अभियोजक, राज्यों के सलाहकार,  व अन्य व्यक्ति जिन्हें क्रमशः सीनेट, राष्ट्रीय सभा व राष्ट्रपति नामजद करते हैं| राष्ट्रपति एवं न्याय मंत्री इस निकाय के पदेन सदस्य होते हैं| इटली  में भी न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर नियंत्रण के लिए स्वशासी निकाय है| इस निकाय में न्यायिक नियुक्तियां के लिए 33 सदस्य हैं| न्यायपालिका द्वारा चुने गए 20 न्यायाधीश, 10 वकील या विश्वविद्यालयों के कानून के प्रोफ़ेसर  संसद नामजद करती हैं| राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश  एवं महा अभियोजक इस निकाय के पदेन सदस्य होते हैं| स्पेन  की स्वशासी निकाय न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखती है | इस निकाय में न्यायिक नियुक्तियां के लिए 21 सदस्य हैं| न्यायपालिका द्वारा चुने गए 12 न्यायाधीश, 8 वकील, जिन्हें 15 वर्ष से अधिक का अनुभव हो को, संसद नामजद करती हैं| सर्वोच्च न्यायलय के  मुख्य न्यायाधीश  निकाय के पदेन सदस्य होते हैं|  पुर्तगाल  में भी  स्वशासी निकाय है जो न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर नियंत्रण रखती है| इस निकाय में न्यायिक नियुक्तियां के लिए 17 सदस्य हैं| न्यायपालिका द्वारा चुने गए 7 न्यायाधीश व 7 गैर न्यायाधीशों को  संसद नामजद करती हैं| 1 गैर न्यायाधीश व 1  न्यायाधीश को  राष्ट्रपति नामजद करते हैं| सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश  निकाय के पदेन सदस्य होते हैं|
  तुर्की गणराज्य में संवैधानिक न्यायालय के स्थानापन्न या नियमित न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने के लिए उच्च संस्थान में अध्यापक, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और वकील का चालीस वर्ष से अधिक उम्र का होना और उच्च शिक्षा पूर्ण करना  या उच्च  शिक्षण संसथान में न्यूनतम अध्यापन का पन्द्रह वर्ष का अनुभव आवश्यक है या न्यूनतम  पन्द्रह वर्ष वकील के रूप में प्रैक्टिस या लोक सेवा में होना आवश्यक है| न्यायाधीशों और  लोक अभियोजकों द्वारा  कानून के अनुसार कर्तव्य निष्पादन के सम्बन्ध में इस बात का अनुसन्धान कि क्या उन्होंने कर्तव्य निर्वहन में कोई अपराध किया है ,या उनका व्यवहार और प्रवृति उनकि हैसियत और कर्तव्यों के अनुरूप है व यदि आवश्यक हो तो उनसे सम्बंधित जाँच  और अनुसन्धान न्याय मंत्रालय की अनुमति से न्यायिक निरीक्षकों द्वारा की जायेगी| न्याय मंत्री किसी न्यायाधीश या लोक अभियोजक, जो जांच किये जाने वाले न्यायधीश या लोक अभियोजक से वरिष्ठ हो, से  जांच  की अपेक्षा कर सकेगा|



इंग्लैंड में न्यायिक नियुक्ति आयोग अलग से कार्यरत है जिसके सदस्यों में सेवारत न्यायधीशों की संख्या को लगातार घटाया जा रहा है| इस आयोग में सदस्यता के लिए सामुदायिक व लिंग अनुपात का ध्यान रखा जाता है | इंग्लैंड में न्यायपालिका पर नियंत्रण के लिए अलग से न्यायिक निरीक्षणालय है| वहाँ सुप्रीम कोर्ट का प्रशासनिक मुखिया लोर्ड चांसलर होता है जोकि मुख्य न्यायाधीश से भिन्न है और न्यायपालिका के सुचारू एवं दक्ष संचालन के लिए जिम्मेदार भी है| लोर्ड चांसलर के लिए विश्वविद्यालय में कानून का  अध्यापक, सांसद, वकील या प्रशासनिक अनुभव होना आवश्यक है| वहीँ अमेरिका में न्यायिक नियुक्तियां राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं और सीनेट  से उनका अनुमोदन करवाया जाता है| इन सब को देखते हुए भारतीय न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया विचित्र है| यहाँ संवैधानिक न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए कोई विज्ञप्ति जारी नहीं की जाती है व न ही कोई लिखित परीक्षा ली जाती है अपितु गुप्त रूप से न्यायाधीशों द्वारा ही सरकार के माध्यम से कुछ नामों की सिफारिश की जाती है| सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अनुशंसा राष्ट्रपति पर बाध्यकारी है| व्यवहार में सत्तासीन राजनैतिक दल और न्यायाधीशों द्वारा मिलबांटकर इन पदों का बंटवारा किया जाता है ताकि एक दूसरे के लिए कोई रोड़ा न अटकाए| भारत में मात्र वकील ही न्यायाधीश हो सकते हैं| अतः भारत में बेंच व बार के बीच एक मजबूत किन्तु जनविरोधी गठबंधन कार्यरत है |
विश्व स्तरीय अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि न्यायिक नियुक्तियों के लिए स्वशासी निकाय बनाने से कार्यपालकों की भूमिका कम होकर यह शक्ति विधायिका या स्वयं न्यायपालिका में अंतरित हो जाति है| यह भी देखा गया कि अमेरिका, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका में  स्वतंत्र न्यायिक नियुक्ति आयोग होने से आयोगों में जन विश्वास सामान्यतया ऊंचा है और उन्हें नियुक्ति के श्रेष्ठ तरीके के रूप में माना जाता है- उदाहरण के लिए वे चुनाव और कार्यपालकीय नियुक्तियों से ज्यादा उचित हैं| यह तथ्य इस बात से भी प्रमाणित होता है कि यद्यपि हाल ही के वर्षों में अमेरिका के कुछ राज्यों ने इस पद्धति को बदलने का प्रयास किया है किन्तु में जहाँ आयोगों द्वारा नियुक्ति का मार्ग अपनाया गया है  किसी अन्य तरीके की ओर परिवर्तित नहीं किया है|

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