Monday 12 September 2011

आपराधिक अन्वीक्षा

सुप्रीम कोर्ट ने ओम प्रकाश  जायसवाल बनाम डी.के. मितल (एआईआर 2000 एस सी 1136) में कहा है कि न्यायालय द्वारा जारी रिट की अनुपालना होनी चाहिए। अवमान के प्रकरण में प्रार्थना पत्र या याचिका प्रस्तुत करने वाला पक्षकार परिवादी या याची नहीं बनता।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने धर्मवीर खटड़ बनाम केन्द्रीय अन्वेशण ब्यूरो के निर्णय दिनांक 05.05.09 में कहा है कि रिकॉर्ड पर पर्याप्त विषय वस्तु है जिससे इस बात का गंभीर संदेह होता हे कि जिस अपराध का उन पर आरोप है उन्होंने वह किया हो।
सुप्रीम कोर्ट ने पंकज कुमार बनाम महाराष्ट्र राज्य के निर्णय दिनांक 11.07.08 में कहा है कि यह सही है कि अनुसंधान एवं अन्वीक्षण में असामान्य विलम्ब हुई है यद्यपि यह तर्क हमारे समक्ष प्रथम बार उठाया गया है किन्तु हम महसूस करते है कि इतने विलम्ब के बाद प्रकरण को पुनः उच्च न्यायालय परीक्षण हेतु भेजना अपीलार्थी के लिए ठीक नहीं होगा। इस प्रकार के मामले का चार वर्ष तक प्रसारित ढीला-ढाला अनुसंधान और आठ वर्ष का असामान्य विलम्ब (जब रिकॉर्ड उच्च न्यायालय में रहा हो को छोड़ते हुए) अपने आप में स्पष्ट है।

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