Monday 5 September 2011

पारदर्शी और जिम्मेदार न्यायपालिका

उच्च तकनीकि प्रणाली से समय का अधिक दक्षता पूर्वक उपयोग, पारदर्शिता में वृद्धि  और सुधरी हुई न्यायसदन की कार्यवाहियां सुलभ  होती हैं| साथ साथ इन लाभों से न्यायिक निकाय में जन विश्वास में भी वृद्धि होती है| उदाहारण के लिए इस रिकार्डिंग प्रणाली से न्यायपालिका द्वारा लोगों को रिकार्ड की गयी कार्यवाही की प्रतियाँ शीघ्र और सस्ती दर पर उपलब्ध करावाई  जा सकती हैं| इससे भी बढ़कर यह है कि ये गुणवता में सामान्य नकलों से अधिक सही और अच्छी होती हैं| सार रूप में उन्नत ग्राहक सेवा न्यायपालिका को अधिक सकारात्मक और विश्वसनीय बनाती है| जब न्यायालय द्वारा स्वचालित रिकार्ड वाले निर्णित मामले की अपील सुनवाई के लिए आती है तो अपील प्रक्रिया अधिक दक्ष होती है क्योंकि न्यायालय आसानी से परीक्षण न्यायालय के रिकार्ड तक पहुँच सकता है और परीक्षण न्यायालय के पूर्ण रूप से  सही रिकार्ड पर विश्वास कर सकता है| स्वचालित मशीनी रिकार्ड के संचयी सकारात्मक प्रभाव से अपील प्रक्रिया अधिक दक्ष बनती है| अंतिम किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि पारदर्शिता एवं जिम्मेदारी  से कार्य करने पर कम ही मामलों में अपील की आवश्यकता पड़ती है| कजाखिस्तान परियोजना  पर एक रिपोर्ट के अनुसार मशीन से रिकार्ड किये गए मामलों की तुलना में न रिकार्ड किये गए मामलों में अपील की संख्या लगभग तीन गुणा अधिक  है|

इस  वचनबद्धता के लिए सावधानीपूर्वक आयोजन और लक्ष्य निर्धारण के साथ साथ विस्तृत रूप में लागू करने और प्रशिक्षण के दिशा निर्देश में परिवर्तित किये जाने की आवश्यकता है| भारत इन देशों के अनुभव से लाभान्वित हो सकता है| इन उपायों की दक्षता पर लगातार ध्यान रखने और मूल्यांकन करने की आवश्यकता की अनदेखी नहीं की जा सकती है| परिवर्तन प्रबंधन की नींव विशेष रूप से सशक्त राजनैतिक और वितीय  इछाशक्ति है| एक बार जब न्यायालय में स्वचालित रिकार्डिंग प्रणाली अपना ली जाय तो परियोजना में अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना करना पड सकता है और कई लोगों को तदनुसार  दिशा बदलनी पड सकती है| दिशा में यह परिवर्तन खर्चीला, समय लेने वाला और हतोत्साही हो सकता है इसलिए परियोजना की सफलता परिवर्तन के प्रति ठोस राजनैतिक प्रतिबद्धता और सशक्त आर्थिक आधार पर निर्भर है| बहुत से मामलों में इस प्रकार के परिवर्तन के लिए न्यायिक मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यकता चाहता है |

पुरानी  और नई प्रणाली के मध्य एक सहज एवं सामंजस्यपूर्ण परिवर्तन के लिए लक्ष्य सहित स्पष्ट योजना की आवश्यकता है| न्याय प्रबंधन संस्थान (अमेरिका) के अनुसार इस नवीन परिवर्तन के लिए निम्नांकित आठ क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है :-

परिवर्तन के अधीन न्यायालय के लिए सशक्त नेतृत्व और परामर्श की आवश्यकता है| विभिन्न न्यायालयों के लिए लक्ष्य उनकी आवश्यकताओं और साधनों के अनुरूप होने चाहिए| न्यायालयों में रिकार्डिंग प्रणाली के लिए शुद्धता के मानदंड ,समयबद्धता,लागत  और रिकार्ड की उपयोगिता के स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिए| उदाहरण के लिए कई बार वीडियो रिकार्डिंग हाथ से लिखने से अधिक उपयोगी हो सकती है किन्तु कई बार यह विपरीत भी हो सकता है| परिवर्तन योजना में विद्यमान आधारभूत तकनीकि ढांचे का मूल्यांकन किया जाना चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि क्या यह नवीन प्रणाली के लिए सहायक हो सकता है| रिकार्ड का उत्पादन न्यायालय का मुख्य कार्य है और इसका अच्छा पर्यवेक्षण किया जाना चाहिए| कंप्यूटर आधारित लेखन प्रणाली में चुम्बकीय रिकार्डिंग प्रणाली कार्य करती है जोकि बोले गए शब्दों को आलेख में परिवर्तित कर देती है |


बेहतरीन परिवर्तनों के लिए समस्त ग्राहकों से सुझाव लेना महत्वपूर्ण है| एक अच्छा रिकार्ड अपील प्रक्रिया को आसान बना सकता है किन्तु बुरे रिकार्ड से मात्र समय नष्ट, कुंठा और न्याय प्रणाली में अविश्वास उत्पन्न  होता है| मेरीलैंड प्रान्त में न्यायालयों के पुराने स्टाफ को पहले प्रशिक्षित किया गया| न्यायालय कुशल स्टाफ को आकर्षक वेतन भत्ते प्रस्तावित कर सकता है| परिवर्तन हेतु विस्तृत योजना और ठोस लक्ष्य निर्धारण  के बाद प्राधिकारियों को चाहिए कि वे न्यायाधीशों, और अन्य समस्त जो रिकार्डिंग, संग्रहण, और रिकार्ड प्रदनागी  से जुड़े हैं के उपयोग के लिए विस्तृत परिचालन प्रक्रिया मनुएल तैयार करें जिसमें रोजमर्रा के सभी कार्यों एवं समस्याओं और उनके समाधानों का वर्णन हो| प्राधिकारियों को चाहिए कि नवीन  प्रणाली के निष्पादन पर निगरानी रखे और उसका मूल्यांकन करता रहे| इस प्रणाली की समय समय पर जांच की जानी चाहिए और यदि आवश्यक समझा जाय तो कुछ समय के लिए समानांतर प्रक्रिया भी अपनाई जा सकती है | स्वचालित रिकार्डिंग प्रणाली विश्व स्तर पर विकाशील एवं संघर्षरत राष्ट्रों सहित में लागू की जा रही है |

इंग्लैंड में भी संसद ने जनता और सांसदों को अपनी बात कहने के  सुगम, प्रभावी और पारदर्शी तरीके के लिए ई-पिटीशन प्रणाली की अनुशंसा की है| अमेरिका में भी  कागजी कार्यवाही कटौती अधिनियम पारित कर सूचना तक पहुँच का रास्ता सुगम बना दिया गया है|वहाँ न्यायालय का समस्त रिकार्ड इन्टरनेट पर उपलब्ध है| अमरीकी सरकार का मानना है कि समस्त रिकार्ड का कम्प्यूटरीकरण करने से सूचना के प्रकटन, संग्रहण, निर्माण, संधारण, विकेन्द्रीकरण, प्रसारण आदि के व्यय में भी कमी आयेगी| इससे निर्णय की गुणवता में सुधार और जिम्मेदारी आयेगी व सरकार और समाज में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा| प्रणाली को जनोन्मुखी बनाने के लिए जनता की भागीदारी ली जायेगी तथा सूचना तंत्र के विकास के लिए नीतियों, योजनाओं, नियमों, विनियमों, प्रक्रियाओं, और मार्गदर्शनों, और सरकार सूचनाओं के संग्रहण के पुनरीक्षणों के लिए जनता और इच्छुक एजेंसियों को टिपण्णी के लिए अर्थपूर्ण अवसर देगी| न्यायालयों द्वारा जनता  के लिए नागरिक चार्टर जारी करने की आवश्यकता की अनदेखी नहीं की जा सकती |

भारत में भी आडियो/वीडियो रिकार्डिंग प्रणाली के अभाव में काफी समय पूर्व से न्यायाधीशों  पर मनमानेपन के  आरोप लगते रहे हैं| सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश श्री जे सी शाह पर आरोप लगाते हुए सी के दफ्तरी बनाम ओ पी गुप्ता (1971 ए आई आर 1132) में कहा गया कि यद्यपि दोनों न्यायाधीश जिन्होंने निर्णय दिया इसके लिए जिम्मेदार हैं किन्तु श्री जे सी शाह का दायित्व अधिक गंभीर है क्योंकि वे वरिष्ठ न्यायधीश हैं और प्रकरण के प्रभारी हैं| अन्य न्यायाधीश ने तो मात्र उनकी पंक्तियों का अनुसरण किया है| अपने कनिष्ठ के माध्यम से निर्णय सुनाने की उनकी चतुराई भी किसी को धोखा नहीं दे सकती| जहाँ लोक सभा में बोला गया प्रत्येक शब्द लिखा जाता है वहीँ सुप्रीम कोर्ट में पक्षकारों के तर्कों या न्यायाधीश के सम्प्रेक्षणों को न्यायाधीशों द्वारा नोट नहीं किया जाता है| यही कारण है कि न्यायाधीश शाह ने न्यायालय में इस विश्वास में इस प्रकार अवैध और बेईमानी पूर्वक मौखिक टिप्पणियां की कि ये टिप्पणियां रिकार्ड में दर्ज नहीं होंगी और कोई भी उसे तोड़ नहीं सकेगा|
हमारे माननीय विधि एवं न्यायमंत्री ने मार्च 2012 तक न्यायालयों के पूर्ण कम्प्यूटरीकरण का आश्वसन दिया था किन्तु कम्प्यूटरीकरण की मंथर गति एवं न्यायपालिका व उससे जुड़े लोगों की अनिच्छा व अरुचि, और प्रबल इछाशक्ति के अभाव में यह लक्ष्य दिवा स्वप्न ही दिखाई देता है| ई-कोर्टस परियोजना के बजट का भी पूरा उपयोग नहीं हो रहा है| भारत के सुप्रीम कोर्ट में 01.10.06 से यद्यपि ई-फाईलिंग प्रणाली प्राम्भ कर दी गयी है किन्तु इसका उपयोग अभी नगण्य है| कुल फाइल होने वाले मामलों का मात्र 00.10% ही ई-फाईलिंग के जरिये दाखिल किया  जाता है| इसमें से भी अधिकांश भाग बाहर दूर बैठे व्यक्तिशः याचियों द्वारा फाइल किया जाता है और उसमें न्यायालय के रजिस्ट्रारों द्वारा बिना नियमों के सन्दर्भ के अनुचित कमियां निकालकर उन्हें प्रारंभिक स्तर पर ही निरस्त कर दिया जाता है| व्यक्तिशः याचियों द्वारा दायर शेष  याचिकाओं में से अधिकांश को न्यायालय द्वारा याची को सुना गया/मामले में सार नहीं है/निरस्त किया जाता है जैसे परंपरागत संक्षिप्त आदेश पारित कर पटाक्षेप कर दिया जाता है जबकि स्वयं न्यायालय ने कई बार कहा है कि कारण के बिना निर्णय प्राण हीन हैं और न्यायालय को निरस्त कीजैसा एक शब्द लिखकर सारांश रूप में याचिका निरस्त नहीं करनी चाहिए| यद्यपि मामला चाहे सारहीन हो किन्तु उसका सम्यक निपटान भी उठाये गए बिन्दुओं का जवाब देकर किया जा सकता है| सारहीन अपने आप में अस्पष्ट और कूटनीतिक शब्द है जिसका कोई निश्चित अभिप्राय नहीं  निकाला जा सकता| न ही सारहीन शब्द से यह ज्ञात हो पाता है कि सारपूर्ण होने के लिए और किन तत्वों या तथ्यों की आवश्यकता है|ऐसे शब्दों से युक्त आदेश न्यायिक आदेश कम और कूटनीतिक शब्दजाल की बाजीगरी अधिक परिलक्षित होते हैं| व्यक्तिशः फ़ाइल किये जाने वाले मामलों के नमूना सर्वेक्षण से भी इसी बात की पुष्टि होती है कि उन्हें सुनवाई का अर्थपूर्ण अवसर नहीं दिया जाता है बल्कि मात्र रस्म या औपचारिकता की ही पूर्ति की जाती है| यदि हमारी न्यायपालिका वास्तव में निष्ठावान है तो उसे रिकार्डिंग प्रणाली को शीघ्र ही लागू करने में पहल कर स्वयं को संदेह के दायरे से बाहर रखना चाहिए| भारत में वकीलों एवं न्यायालय स्टाफ के मध्य एक गुप्त समझाईस है जिसके चलते वे ई-फाईलिंग व व्यक्तिशः पैरवी को नापसंद और हतोत्साहित करते हैं इसी का परिणाम है कि ई-फाईलिंग प्रणाली लोकप्रिय नहीं हुई है तथा इसका उपयोग पांच वर्ष बाद भी एक प्रतिशत से ही नीचा है| वैसे भी जहाँ  व्यक्तिगत लेनदेन होना हो वहाँ ई-फाईलिंग प्रणाली से उद्देश्य पूर्ति नहीं होता है| जबकि आयकर एवं वाणिज्यिक कर आदि की ई-रिटर्नों व विवरणियों के मामलें में परिणाम सुखद है| इससे आंकड़ों का संकलन एवं बजटिंग और आयोजन में एक ओर सहायता मिलती है वहीँ विभाग के स्टाफ को दी जाने वाली भेंट की राशियों में भी कटौती हुई है | जिस प्रकार ट्रेफिक नियमों एवं संकेतों का अनुपालन न करने वालों के लिए स्पीड ब्रेकर आवश्यक हैं ठीक उसी प्रकार अनुशासनहीन और नियंत्रणहीन न्यायपलिका के लिए रिकार्डिंग  प्रणाली अत्यंत आवश्यक है| 

मेरे महान भारत से अपेक्षा है कि वह विदेशों के खट्टे-मीठे अनुभवों के आधार पर न्यायालयों के मशीनीकरण की व्यावहारिक योजनाओं का शीघ्र निर्माण करे और उन्हें लागू करने में तत्परता और प्रतिबद्धता दिखाकर अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करे|

1 comment:

  1. धीरे धीरे रे मना। इतनी जल्दी क्या है?
    हम न्याय के बारे में सिर्फ सोचते हैं।

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