Saturday 17 September 2011

अवमान कानून के प्राचीन मानक

प्रिवी कॉन्सिल ने एड्रूपाल बनाम एट्रोनी जनरल ऑफ ट्रिनीडाड (193638 बीओएमएलआर 681) में कहा है कि जहां तक कि एक न्यायाधीश  की व्यक्तिगत स्थिति तथा प्राधिकृति था न्याय के सम्यक प्रशासन  का प्रश्न  है। किसी न्याय के आसन द्वारा किये गये सार्वजनिक कार्य की जनता के सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत या सार्वजनिक रूप से सद्विश्वास  में आलोचना करने का सामान्य अधिकार का प्रयोग करने पर कुछ भी गलत नहीं है। आलोचना का मार्ग जन रास्ता है, गलत मानस वाले वहां गलती करते हैं परन्तु जनता को न्याय प्रशासन में अनुचित उद्देश्यों  से दूर रहना चाहिए और उन्हें वास्तविक अर्थों में समालोचना के अधिकार का प्रयोग करना चाहिए और किसी दुर्भावना में या न्याय प्रशासन को अवरूद्ध करने के प्रयास में कार्य नहीं करना चाहिए। वे सुरक्षित हैं, न्यायिक कार्य कोई पवित्र वस्तु  नहीं है इसे समीक्षा का सामना करना चाहिए और यहां तक कि आम आदमी के बड़बोली टिप्पणियों को  भी न्यायाधीश  और न्यायालय समान रूप से आलोचना के लिए खुले हैं और यदि कोई तर्कसंगत बहस या प्रक्षेपण किसी न्यायिक कार्य के विरूद्ध प्रस्तुत किया जाता है कि यह विधि या जनहित विरूद्ध है तो कोई भी न्यायालय इसे न्यायालय का अवमान नहीं मान सकेगा।

No comments:

Post a Comment