Monday 26 September 2011

अमानत में खयानत का व्यापक दायरा

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केदारनाथ बनाम राज्य (एआईआर 1965 इलाहा 233) में कहा है कि या तो प्रार्थी को ईंट भट्टा चलाने का अच्छा अनुभव था। ऐसी स्थिति में उसने अपनी स्थिति के अनुसार बुद्धिमता पूर्वक कार्य नहीं किया। यदि उसके पास विशेष ज्ञान नहीं था तो उसे अत्यधिक सावधानी और सतर्कता से कार्य करना चाहिए था। उसे देखना चाहिए था कि वह दी गई सलाह पर अतिरिक्त ध्यान दे। राम अध्याय शर्मा की बार-बार निरीक्षण टिप्पणियों से उसे चेतावनी गई थी और हुई हानि को टालने के लिए उपयुक्त सुझाव दिये गये थे। इस प्रकार उसे सही राय दी गई। किन्तु उसने उसकी अवमानना की। इस प्रकार प्रार्थी का आचरण सोचा विचार रहा। यह मात्र सद्विश्वास में निर्णयन में चूक नहीं थी अपितु उसकी अपेक्षा दण्डनीय थी। यदि यह  मान भी लिया जाय कि दुर्विनियोग किसी ओर ने किया तो भी प्रार्थी ने जान बूझकर उसे ऐसे करने दिया।

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