Sunday 8 May 2011

लोक सेवक और जनता -1

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार राज्य बनाम सुभाश सिंह के प्रमुख प्रकरण के निर्णय दिनांक 03.02.1997 में स्पश्ट किया है कि निर्णय का वरिश्ठताक्रम में उतरोतर दायित्व अन्तर्निहित अनुषासन है। किन्तु विभागाध्यक्ष/पदाभिहित अधिकारी अपने द्वारा की गयी कार्यवाही/निर्णय के लिए न्यायालय के प्रति अंततोगत्वा जवाबदेह और उत्तरदायी है। यदि इसके अतिरिक्त कोई अन्य विषेश परिस्थितियां विद्यमान हों जिनसे किसी अन्य को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है या वह दायित्व से मुक्त हो सकता है तो उसे न्यायलय के ध्यान में लाये जाने की आवष्यकता है ताकि उपयुक्त प्रक्रिया अपनाकर समुचित कार्यवाही की जा सके। नियंत्रण अधिकारी उन्हें प्रत्येक को अनुषासनिक कार्यवाही द्वारा जिम्मेवार ठहराता है। इसका उद्देष्य विधि के षासन की स्थापना करना है। संवैधानिक न्यायालय न्यायिक पुनरीक्षण की षक्तियों के प्रयोग द्वारा सुनिष्चित करते हैं कि अधिकारी जिन्हें विष्वास या विधि के षासन के अन्तर्गत षक्तियां जिन सारभूत कार्यों/परिणामों के लिए  सौंपी गयी है वे उन कार्यों को सच्चाई से, उद्देष्यपूर्ण और तत्परता से पूरा करते हैं ।यह सुपरिचित है कि सरकारी लेनदेन में कोई भी व्यक्तिगत दायित्व नहीं लेता और विभिन्न स्तरों पर निर्णय आराम से लिए जाते है। यह बड़ी सामान्य सी बात है कि विपक्षी पक्षकार को लाभ पहुंचाने के लिए जानबूझकर देरी की जाती है। विषेशकर तब जबकि दांव बड़ा हो और व्यक्ति का सम्बन्ध या प्रभाव हो या स्पश्ट कारण हो। इसलिए न्यायालय प्रत्येक दिन के विलम्ब के लिए कड़े मानक वाले प्रमाण पर बल नहीं देते। अपील फाईल करने वाले अधिकारियों पर खर्चे लगाना सार्वजनिक अन्याय कर सकता है और तोड़ मरोड़ करने वालों को अच्छा अवसर प्रदान करता है। दूसरा, अधिकारी पर व्यक्तिगत खर्चे लगाने से जनहित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि अधिकारीगण वास्तविक जन हेतुक से परहेज करना प्रारम्भ कर देंगे। अतः न्यायालयों को अधिकारियों पर खर्चे अधिरोपित करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए और प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का ध्यान रखना चाहिए अन्यथा लोक न्याय की लाइलाज हानि होगी। दुर्भाग्य से इस मामले में एक वर्श और पांच माह का विलम्ब हुआ जिसका अधिकारी ने कोई स्पश्टीकरण नहीं दिया। उच्च न्यायालय अधिकारी पर व्यक्तिगत खर्चा लगाने के लिए विवष रहा है।
कलकता उच्च न्यायालय ने सतपाल बनाम पष्चिम बंगाल राज्य के निर्णय दिनांक 31.03.06 में सुसंगत पूर्व निर्णयों का उद्धरण करते हुए कहा है कि षिवराज सिंह मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि भा.द. सं. की धारा 161 व भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत लोक सेवक आरोपित है और आरोप है कि उसने सरकारी काम करने या करवाने के लिए अवैध पारिश्रमिक ग्रहण किया तो न्यायालय के लिए यह विचारण करना आवष्यक नहीं है कि क्या ऐसा लोक सेवक उक्त कार्य करने के लिए सक्षम था। सुल्तान अहमद के प्रकरण में अपीलार्थी ने बाद में तर्क लिया कि उसने षिकायतकर्ता से 5 रूपये का नोट 1-1 रूपये के पंाच नोट को बदले में देने के लिए लिया था। पुलिस अधिकारी द्वारा नोटों की बरामदगी के समय उसने ऐसा कोई तर्क नहीं लिया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा धारित किया गया कि इन परिस्थितियां में अपीलार्थी का यह तर्क बाद में सोचा गया विचार है। इन परिस्थितियों में स्पश्ट है कि अपनी खाल बचाने के लिए अपीलार्थी ने यह नई कहानी गढ़ी है  जो पष्च विचार के अतिरिक्त कुछ नहीं है और ऐसा तर्क विष्वसनीय नहीं है।

1 comment:

  1. क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

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