Monday 23 May 2011

असमानता भागनी चाहिए


सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय षोशित कर्मचारी संघ (रेल्वे) बनाम भारत संघ (1981 एआईआर 298) में कहा है कि एक संवेदनषील हृदय और तेज दिमाग जिसमें लोगों के आंसुओं की आवाज हो देष की विकास सम्बन्धी आवष्यकताओं को तेजी से आगे बढ़ाएगा जिसमें कि ग्रामीण विस्तार और मलीन बस्तियां षामिल हो। निश्ठापूर्वक समर्पण और निश्ठायुक्त बुद्धिमता जो कि गुणों और उपयुक्तता के बड़े घटक हैं न कि ऑक्सफॉर्ड या कैम्ब्रिज, हार्वर्ड या स्टेनफॉर्ड जैसी संस्थाओं से डिग्रियां । असमानता चाहे हैसियत की हो चाहे सुविधा की चाहे अवसर की हो समाप्त होनी चाहिए। विषेशाधिकार समाप्त होना चाहिए और षोशण भागना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम कन्ज्यूमर एज्यूकेषन एण्ड रिसर्च सेण्टर (एआईआर 1995 सु.को. 1811) में कहा है कि नीति निर्देषक तत्वों के अध्याय में अनुच्छेद 38 राज्य पर लोगों के कल्याण को बढाने का दायित्व डालता है जिसमें कि राश्ट्रीय जीवन की प्रत्येक संस्था सामाजिक आर्थिक न्याय करने के लिए सामाजिक व्यवस्था को संरक्षित और सुरक्षित करेगी। यह हैसियत, सुविधाओं तथा अवसर देने में देष के विभिन्न भागों तथा व्यवसायों में संलग्न व्यक्तियों के बीच तथा व्यक्तियों के समूहों में असमानता को दूर करने का दायित्व डालता है । यदि जीविकोपार्जन के अधिकार संवैधानिक जीवन के अधिकार का भाग नहीं माना जाता तो व्यक्ति को उसके जीवन के अधिकार से वंचित करने के लिए इस प्रकार आजीविका के अधिकार से वंचित करना का कार्य पर्याप्त रहेगा। इस प्रकार जीवन के प्रभावी और अर्थपूर्ण तत्व के बिना वंचित करना जीवन को असंभव बनाना होगा किन्तु जैसा कि उपर कहा है कि क्या एक बीमाकर्ता ऐसी असंवैधानिक षर्त लगा सकता है चूंकि एक पॉलिसी विषेश के सम्बन्ध में प्रवेष करने का अधिकार कुछ लोगों तक ही सीमित कर दे। हम यहां यह स्पश्ट करना चाहते है कि एक बीमाकर्ता व्यवसायिक सिद्धान्तों के अनुसार सामान्य जनता के लिए पॉलिसी जारी करते समय षर्तें लगा सकता है किन्तु जैसा कि हम पाते हैं कि बीमा एक सामाजिक सुरक्षा का एक साधन है इसलिए यह संविधान की भावना और संविधान में उल्लेखित सामाजिक आर्थिक न्याय से सुसंगत होना चाहिए। इन न्यायालय ने धारित किया है कि न ही तो याची और न ही प्रत्यर्थी को अनुबन्ध में षामिल होने का अधिकार है किन्तु किसी भी सेवा या वस्तु के प्रस्ताव में उन्हें समान व्यवहार का अधिकार है। यह विषेशाधिकार इसलिए उत्पन्न होता है कि चूंकि सरकार लोगों के साथ व्यापार कर रही है और लोकतान्त्रिक प्रकृति की सरकार से अपेक्षा है कि वह अपने लेन देन में समानता और मनमानेपन का अभाव तथा भेदभाव का अभाव बरते। विषेशाधिकार कर्त्तव्य के विपरीत स्वतन्त्रता का रूप है। जब सरकारी गतिविधियों में सार्वजनिक तत्व विद्यमान हो तो औचित्य एवं समानता होनी चाहिए। यदि राज्य अनुबन्ध में षामिल होते तो ऐसा बिना भेदभाव और उचित प्रक्रिया से होना चाहिए।एक नागरिक को व्यवहार से अलग करना वैध अनुबंधिक सम्बन्धों से अलग करता है और अन्य लोगों की तुलना में भेदभाव करता है। यद्यपि राज्य को तर्कसंगत षर्तें लगाने का अधिकार है किन्तु स्वेच्छाकारी षर्तें लगाने से राज्य के साथ-साथ आनुशंगिक सम्बन्धों में षामिल होने से रोकता है। सरकार एक निजी व्यक्ति के समान भूमिका अदा नहीं नहीं कर सकती। सरकार की प्रत्येक गतिविधि में लोकतत्च विद्यमान है इसलिए इसे लोकहित के द्वारा निर्देषित होना चाहिए। कानून को समाज की तेजी से बदलती आवष्यकताओं को संतुश्ट करने के लिए विकास करना चाहिए और देष में हो रहे आर्थिक विकास से निकटता रखनी चाहिए। इसलिए जब नयी चुनौतियां सामने आये तो उनका सामना करने के लिए सामाजिक इंजीनियरिंग की तरह कानून का विकास होना चाहिए और सामाजिक आर्थिक चुनौतियां की समसामयिक की पूर्तियांे से निपटने के लिए विधि के षासन के तहत हर संभव प्रयास किये जाने चाहिये और या तो पुराने और अनुपयुक्त कानूनों को अमान्य करके या नये परिवर्तित सामाजिक आर्थिक दृष्य के अनुरूप कानूनों का समायोजन करके प्रत्येक प्रषासनिक निर्णय करणों पर आधारित होना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बलराज मिश्रा बनाम मुख्य न्यायाधिपति (2000 (1) ए. डब्ल्यू.सी. 296) में कहा है कि इस रिट याचिका में दूरगामी महत्व का प्रष्न उठा है कि क्या विभागीय पदौन्नति परीक्षाओं में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कर्मचारीगणों को अपने उत्तर हिन्दी में लिखने से रोका जा सकता है। यह बड़ा अजीब लगता है कि भारतीय संविधान के प्रारम्भ होने पर आधी षताब्दी बाद भी उच्च न्यायालय के कर्मचारी जो कि हिन्दी भाशी क्षेत्र में स्थित है उन्हें मात्र अंग्रेजी भाशा में उत्तर देने के लिए विवष किया जाये। उच्च न्यायालय ने हिन्दी भाशा में उत्तर देने की अनुमति प्रदान कर दी।
भारत संघ बनाम मुरासोली मारन (1977 ए.आई.आर. 225 सु.को.) में कहा है कि हिन्दी भाशा की प्रगति को इस प्रकार नहीं रोका जाना है। अंग्रेजी भाशा के प्रयोग में समय की वृद्धि का अभिप्राय यह नहीं है कि संघ की राजभाशा की प्रगति को छोड़ दिया जावे। अनुच्छेद 351 में अंतिम लक्ष्य दिया गया है कि जो कि भारत की मिश्रित संस्कृति को समृद्ध करने के लिए तथा हिन्दी भाशा के विकास और प्रसार के उद्देष्य को पूरा करता है।

1 comment:

  1. ASANTA is created in ancient times as per work divisions BRAHMAN,VAISYA,SHATRIYA,SUDRA and it has formed in new AVTAR is as reaserved quota 70% at what the basis of equality?

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