Tuesday 24 May 2011

न्यायलय और उनकी सर्वोच्चता


सुप्रीम कोर्ट ने सब कमेटी ऑफ ज्यूडिसियल एकाउन्टेबिलीटी बनाम भारत संघ (एआईआर 1992 सु.को. 320) में कहा है कि यदि सदन की सम्पूर्ण कार्यवाहियों पर अध्यक्ष का नियंत्रण बना रहता है तो यह नहीं माना जा सकता कि न्यायालय के पास सामानान्तर क्षेत्राधिकार है जिसका परिणाम विरोधाभासी निर्देष जारी करना हो सकता है। इसके अतिरिक्त यह न्यायालय इस प्रकार की मदद के लिए कोई ऐसा दिषा निर्देष जारी नहीं कर सकता जिसका अंतिम परिणाम इसके क्षेत्राधिकार से बाहर हो। इस न्यायालय द्वारा पारित कोई आदेष या निर्देष मात्र व्यर्थ का अभ्यास में परिणित होेगा और ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी जिससे देष की सर्वोच्च विधायिका एवं न्यायिक प्राधिकारी दोनों ही हताष होगें। संविधान का ऐसा अभिप्राय कभी नहीं रहा होगा। इसलिए उपरी न्यायालय के न्यायाधीषों को हटाने की कार्यवाही के सम्बन्ध में न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट सहित को कोई आदेष पारित करने का क्षेत्राधिकार नहीं है।
लेखकीय टिप्पणी:ः-
यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने  1992;2द्ध ैब्ब् 428,द्ध  में कहा है कि यहां तक कि राश्ट्रपति एवं राज्यपाल द्वारा नियुक्ति के मामले में भी नियुक्त व्यक्तियों की योग्यता एवं पात्रता पर प्रष्न लगाया जा सकता है एवं उन्हें पद से हटाया जा सकता है किन्तु स्वयं अपनी बिरादरी न्यायाधीषों को हटाने के विशय में भिन्न रूख अपनाकर पक्षपात का स्पश्ट परिचय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने बी.बनर्जी बनाम अनिता पान (एआईआर 1975 सु.को. 1146) में कहा है कि कोई भी कानून मूल अधिकारों पर भूतकालिक प्रभाव से प्रतिबन्ध नहीं लगा सकता। कानून एक समाज षास्त्र है और संवैधानिकता कड़े कानून सिद्धान्त पर आधारित नहीं है क्योंकि विधि का षासन जीवन के सिद्धान्त से निकला है। विलम्बित मुकदमेबाजी का षीघ्र निपटान निसंदेह रूप से न्यायालय के विवेकाधिकार के प्रयोग में है। कोई भी एक व्यक्ति अनुच्छेद के अन्तर्गत दी गई स्वतन्त्रता और अपने अधिकारों के अतिक्रमण की षिकायत कर सकता है।   
दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रसिद्ध बी.एम.डब्ल्यू. प्रकरण में वकीलों के अवमान प्रकरण की अपील आर.के.आनन्द बनाम रजिस्ट्रार, दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 29.07.09 में स्पश्ट किया है कि जो लोग टेलीविजन देखते हैं और अखबार पढ़ते है उनके लिए असफलता में समाप्त होने वाला यह दूसरा मामला है। इस मामले में पुलिस की कटु आलोचना हुई कि जिस मामले में कानून ने उसको पर्याप्त षक्ति एवं अधिकार दिया है मंे किस प्रकार निर्देष मांग रही है। बी.एम.डब्ल्यू मामला अटक-अटक कर अनन्त रूप से आगे बढ़ता है। जो कार्यक्रम एन.डी.टी.वी. पर लोगों को (न्यायालय सहित) दिखाया गया कि बी.एम.डब्ल्यू. की अन्वीक्षा में किस प्रकार शड़यन्त्र हुए ।जो कुछ दिखाया गया सारभूत रूप में सत्य और सही साबित होने वाला था। इस प्रकार कार्यक्रम बी.एम.डब्ल्यू. अन्वीक्षा के दौरान रूकावट या हस्तक्षेप के प्रयास को रोकने के स्पश्ट उद्देष्य से था। मीडिया को बाहर से नियंत्रण और विनयमित करने के किसी भी प्रयास से लाभ के स्थान पर हानि ही होती। वास्तव में बार काउन्सिलों ने न्याय प्रषासन के प्रसंग में कई सकारात्मक मुद्दे लिये हैं। इन्होेंने वकीलों के हित और कल्याण के लिए काफी कार्य किया है। किन्तु इन्होंने जो कार्य पेषेवर मानकों तथा वकीलों में अनुषासन लागू करने के लिए किया है उसका इससे कोई मेल नहीं है। यही विचार अन्य न्यायालयों का भी है। बिहार में अपने अनुभव के आधार पर इन पंक्तियों का लेखक कह सकता है कि अनुसंधान की रिपोर्ट या अन्वीक्षा का प्रभावषाली और षक्तिषाली अभियुक्तों द्वारा अपहरण कर लिया जाता है। या तो गवाहांे को खरीद कर या उन्हें संताप देकर या अन्वीक्षण न्यायालय के लिए अभेद्य व्यवधान उत्पन्न कर और अन्वीक्षा को आगे नहीं बढ़ने देकर किन्तु दुर्भाग्य से मुष्किल से ही न्यायालयों की सामूहिक चेतना द्वारा ध्यान दिया गया है। जो अन्वीक्षा बाहरी कारणों से विफल होती है वह अपराध के षिकार के लिए दुखान्तिका है। विषेश रूप से प्रत्येक विफल अन्वीक्षा विधि के षासन पर आधारित समाज को विफल करती तथा चिढ़ाती है। प्रत्येक नाष हुई अन्वीक्षा आपराधिक न्याय प्रषासन पर धब्बा छोड़ देती है। बार-बार धब्बे लगने से निकाय पहचान योग्य नहीं रहता और तब यह लोगों को विष्वास और आस्था खो देता है। प्रत्येक असफल अन्वीक्षा कहने के लिए इस बात पर नकारात्मक टिप्पणी है कि राज्य उच्च न्यायालय निचले न्यायालयों पर अधीक्षक, पर्यवेक्षण और नियन्त्रण का दायित्व रखता है। उच्च न्यायालय द्वारा समय पर उठाया गया कदम एक मामले को भटकने से रोक सकता है। इस बात पर बल देना कि बकाया अन्वीक्षा या अन्वीक्षा के सम्बन्ध में स्टिंग ऑपरेषन न्यायालय की पूर्व अनुमति तथा सहमति से ही प्रकाषित की जा सकती है ऐसा करना न्यायालय की कार्यवाही रिपोर्ट को पूर्व सेंसर करना होगा और ऐसा करना स्पश्टतया संविधान के अनुच्छेद 19 (1) गारंटी दिये गये मीडिया के भाशण और अभिव्यक्ति के अधिकार का अतिक्रमण होगा। एनडीटीवी द्वारा प्रसारित स्टिंग कार्यक्रम व्यापक जनहित में था और इससे महत्वपूर्ण जन हेतु की पूर्ति हुई है। हम दुख के साथ वकील समुदाय के गिरते हुए पेषेवर स्तर पर हमारी चिन्ता व्यक्त करते हैं कि और हम यह महसूस करते हैं कि यदि इस प्रवृति को रोका और मोड़ा नहीं गया तो देष में न्याय प्रषासन के स्वास्थ्य पर बड़ा घातक प्रभाव होगा। लोकतान्त्रिक समाज में कोई भी न्यायिक निकाय संतोशजनक ढंग से काम नहीं कर सकता जिससे ऐसी बार का समर्थन प्राप्त हो जिसमें लोगों का अटूट विष्वास एवं आस्था हो। जो कि लोगों की आषाओ, प्रेरणाओं और आदर्षों में भागीदार हो और जिसके सदस्य लोगों की आर्थिक पहंुच के भीतर हो। अन्वीक्षा असफल हो जाती है क्योंकि इसकी बाहरी हस्तक्षेप से रक्षा नहीं की गई थी।

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