Tuesday 10 May 2011

लोक सेवक और हम


सुप्रीम कोर्ट ने जय लक्ष्मी साल्ट वर्क्स बनाम गुजरात राज्य (1994 एस.सी.सी (4) 1 ) में कहा है कि दुश्कृति के घटक नाम्ना क्षति और हानि कर्त्तव्य पालन के अभाव से उत्पन्न होना स्थापित है। परम्परागत अभिप्राय में यह उपेक्षा है। एक  सामान्य औसत नागरिक विकासषील राश्ट्र में भारी न्यायालय फीस देना वहन नहीं सकता उसको मात्र वाजिब दावे से इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता कि वह सतर्कतापूर्वक उपचार हेतु कल्याणकारी राज्य की सरकार के साथ दावा उठा रहा है। जब षासकीय कमेटी ने दावा वाजिब पाया हो तो ऐसे दावे को अस्वीकार करना कर्त्तव्यों का अनुचित निश्पादन या स्वेच्छाचारी कृत्य है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने चांद प्रकाष बनाम बेगाराम (1998 क्रि.ला.रि. (राज.) 593) में कहा है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 166 में लोक सेवक को स्वयं कानून में समाहित निर्देष तथा कानून के अन्तर्गत सक्षम प्राधिकारी द्वारा कार्य करने के लिए दिये गये या कोई कार्य न करने के लिए दिये गये निर्देष - दोनों षामिल है। चंूकि कृशक ने सिंचाई के पानी की पर्ची बाबत बार-बार कहा किन्तु फिर भी अधिषाशी अभियन्ता के निर्देष के बावजूद उसकी कोई सहायता नहीं की गई और आदेष नहीं माना गया। मौखिक व दस्तावेजी साक्ष्य से यह सुस्थापित है कि पर्ची जानबूझकर जारी नहीं की गयी जिससे धारा 166 के अपराध का गठन होता है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने केसर देव बनाम राजस्थान राज्य (1976 क्रि.ला.रि. (राज.) 115) में स्पश्ट किया है कि कर्त्तव्य निर्वहन का त्याग सम्बन्धित लोक सेवक द्वारा कार्य निश्पादन के दौरान होना चाहिए। एक लोक सेवक के विरूद्ध इस धारा (217 भा.द.सं.) के अन्तर्गत कार्यवाही करने के लिए आवष्यक है कि कुछ न कुछ ऐसी विशयवस्तु अवष्य हो जिससे यह प्रकट होता हो कि लोक सेवक के रूप में कार्य करते हुए उसने किसी व्यक्ति को वैध दण्ड से बचाने, कम दण्ड दिलवाने या सम्पति की जब्ती आदि से बचाने के लिए कानून के निर्देषों का जानबूझकर कर्त्तव्य भंग किया जिसके लिए वह दायित्वधीन था। यह भी देखा जाना चाहिए कि जिस कर्त्तव्य को लोक सेवक ने भंग किया वह किसी सकारात्मक कानून, नियम या विनियम जो कानून का बल रखता हो में होना चाहिए और जानबूझकर अवहेलना की जानी चाहिए। केसरदेव अभियोजन निरीक्षक था जिसका कर्त्तव्य अभियोजन का संचालन करना था। चाहा गया रोजनामचा उसके कब्जे में नहीं था और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उसने अतिरिक्त मुंसिफ मजिस्ट्रेट द्वारा दिये गये निर्देषों का जानबूझकर उल्लंघन किया । अतिरिक्त मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने केसरदेव के विरूद्ध षिकायत दर्ज करवाने में गलती की है।

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