Tuesday 31 May 2011

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमा


सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेष राज्य बनाम विषन कुमार षिवचरण लाल के मामले में निर्णय दिनांक 05.12.08 में कहा है कि उच्च न्यायालय पर्यवेक्षण क्षेत्राधिकार के प्रयोग में मात्र निर्णय या आदेष या विच्छेपित कार्यवाही को निरस्त हीं नहीं कर सकता अपितु मामले के तथ्य और परिस्थितियां जो वाजिब ठहराये ऐसे निर्देष जारी कर सकता है कि निचला न्यायालय या ट्राईब्यूनल आगे इस प्रकार या नये सिरे से या जैसा उच्च न्यायालय निर्देष दे कार्यवाही करे । उपयुक्त मामलों में उच्च न्यायालय पर्यवेक्षण क्षेत्राधिकार के प्रयोग में इस प्रकार के विक्षेपित आदेष के स्थान पर अपना ऐसा निर्णय प्रतिस्थापित कर सकता है मानो कि निचले न्यायालय या ट्रायब्यूनल ने दिया हो। अन्तिम अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत क्षेत्राधिकार का प्रयोग व्यथित पक्षकार या उसकी ओर से प्रार्थना पर प्रयोग किया जा सकता है जबकि पर्यवेक्षिक क्षेत्राधिकार स्वप्रेरणा से प्रयोग किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने भावेष जयन्ती लखाणी बनाम महाराश्ट्र राज्य के निर्णय दिनांक 07.08.09 में कहा है कि एक नागरिक का मौलिक अधिकार का जहां कहीं हनन होता है उच्च न्यायालय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत असाधारण षक्ति का ये ध्यान में रखते हुए कि न्याय तक पहुंच मानवाधिकार है, उसे दूर नहीं फेंकेगे। महज इसलिए कि एक रेड कॉर्नर नोटिस जारी हुआ है।
आन्ध्र प्रदेष उच्च न्यायालय ने जी.सुभाश रेड्डी बनाम आन्ध्र राज्य के मामले में कहा है कि लोक व्यवस्था लोक सुरक्षा तथा षान्ति के समानार्थी हैं। यह क्रान्ति, नागरिक युद्ध जैसी राज्य सुरक्षा को प्रभावित करने वाली अव्यवस्था का अभाव है।
भाशण और लोकव्यवस्था के बीच में तर्क संगत और नजदीक का सम्बन्ध होना चाहिए। राज्य का कर्त्तव्य है वह षांति बनाये रखना सुनिष्चित करने के लिए लोक व्यवस्था को खतरा न हो और उसके क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों के जीवन और स्वतन्त्रता की रक्षा करे। इसी प्रकार इस प्रकार के उपाय लागू करे कि राज्य और किसी व्यक्ति की अवैध गतिविधियांें को रोका जा सके। जिन लोगों को षांति और उनके जीवन को खतरे का अन्देषा हो। वे प्रथमतः जिला स्तर पर सक्षम अधिकारी तक पहुंच सकते हैं और षांति और सुरक्षा के लिए विषेश बल लगाने हेतु आवेदन कर सकते हैं। इस प्रकार के आवेदन पर सक्षम अधिकारी बिना देरी किये तुरन्त ही उपयुक्त आदेष करने के लिए कर्त्तव्यबद्ध है। कोई व्यक्ति जिसे अपने जीवन या सम्पति का सरकार या इसके नौकरों से भय है तो वह आपवादिक परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट न्यायालय में पहुंच सकता है जो कि उपयुक्त बॉण्ड के लिए आवष्यक निर्देष जारी कर सकेगा। यदि उसका आवेदन पत्र मना कर दिया जाता है तो वह ऐसे आदेष की पुनरीक्षा के लिए इस न्यायालय पहुंच सकता है।

No comments:

Post a Comment