Friday 20 May 2011

वैधता पर निर्णय


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ब्रह्म प्रकाष बनाम उत्तर प्रदेष राज्य में निर्णय दिनांक 07.02.06 में स्पश्ट किया है कि यह असंभव है कि सभी सांविधिक कानूनों को जाना जाय और सभी सामान्य नियमों का जानना असंभव है। लॉर्ड आटकिन ने कहा है कि यह कभी भी मान्यता नहीं रही कि प्रत्येक व्यक्ति कानून को जानता है नियम यह है कि कानूनी भूल क्षम्य नहीं है इसका प्रयोग एवं क्षेत्र अलग है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने भंवरलाल बनाम मदनलाल (1988 (1) डब्ल्यू.एल.एन. 725) में स्पश्ट किया है कि संविधान का अनुच्छेद 141 यह उद्घाटित करता है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय भारतीय सीमा क्षेत्र के समस्त न्यायालयों पर बाध्यकारी है। यह ध्यान दिया जाने योग्य है कि मर्यादा कानून की अज्ञानतावष विधिक प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड पर लाने के आवेदन पत्र कृश्ण मोहन बनाम सुरपति बनर्जी एआईआर 1925 कल0 684, रामचन्द्र बनाम सभापति एआईआर 1928 मद्रास 404, मेहरसिंह बनाम सोहनसिंह एआईआर 1936 लाहौर 710 और अब्दुल लतीफ बनाम फजल अली में अनुमत किये गये थे। विधायिका ने भारतीय मर्यादा अधिनियम 1963 की धारा 5 के अन्तर्गत विलम्ब को क्षमा करने का प्रावधान किया है ताकि न्यायालय मामले का गुणावगुण के आधार पर निपटान कर सारभूत न्याय कर सके। विधायिका ने पर्याप्त कारण षब्द स्थापित कर पर्याप्त लोचषीलता दी है ताकि न्यायिक उद्देष्य पूर्ण हो सके व न्यायिक लक्ष्य जीवन्त रूप से पूर्ण करने में न्यायालय समर्थ हो सके। यह सुपरिचित है कि यह न्यायालय इसमें दायर मामले में न्यायोचित उदारता बरत रहा है। लेकिन खेद है कि यह संदेष पद सोपान में निचले स्तर के न्यायालयों तक नहंी पहुंच सका है।
सुप्रीम कोर्ट ने नेपक मिकोन लि. बनाम मैग्मा लिजिंग लि. (ए.आई.आर 1999 सु.को.1952) में कहा है कि इस न्यायालय का कर्त्तव्य है कि वह विधायिका के अभिप्रायः को मूर्तरूप देने के लिए अर्थ निकाले। अतः यदि विषेश रूप से, किसी दण्ड कानून में निर्माताओं द्वारा प्रयुक्त किसी षब्द का षाब्दिक अर्थ निकालने से विधायिका का उद्देष्य विफल होता है जिसे कि किसी दुश्कृत्य को दबाने के लिए रखा गया था तो न्यायालय षब्दकोश या लोकप्रिय अर्थ से हटकर ऐसा अर्थ लगा सकता है जिससे न्याय हेतुक अग्रसर होता है और दुश्कृति को दबाया जा सकता हो। प्रत्येक विधायन एक सामाजिक दस्तावेज है और न्यायिक अभिप्राय कानूनी मिषन का सही अर्थान्वयन करना है, भाशा जिससे हेडन मामले का प्रथम नियम कि बुराई को दबाना और उपचार को आगे बढाना है। न्यायालय ने धारित किया कि कानून का उद्देष्य ही संतुलन को मोड़ता है इसका सषक्त अभिप्राय दृश्कृति को टालकर जिसके लाईसेन्स से लोगों को उपचार और विषुद्ध लक्ष्य प्राप्ति है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि न्यायाधीष का पद ऐसा अभिप्राय निकालने के लिए है कि दुश्कृति दबे और उपचार आगे बढ़े व दुश्कृति के चालू रहने के प्रत्येक मार्ग दब जावे। एक अधिनियम के समस्त उद्देष्यों की प्रभावी पूर्ति के लिए इसे मना करने वाले या टालने वाले अप्रत्यक्ष या लम्बे मार्ग बनाने वाले प्रत्येक प्रयास को दबाने का अर्थान्वयन होना चाहिए। इनमें से एक यह है कि न्यायालयों को ध्यान रखना चाहिए कि वे कानून का अर्थ निकालते समय इतना संकीर्ण दृश्टिकोण नहीं अपनाये कि जो इसके दायरे में आते हैं वे बच निकल जाये। मकड़जाल रूपी वार्निष को साफ करो और लेनदेन को सही प्रकाष में दिखा दो।
सुप्रीम कोर्ट ने आषीर्वाद फिल्म्स बनाम भारत संघ के निर्णय दिनांक 18.05.07 में कहा है कि करारोपण अब सरकार चलाने का खर्चा उगाहने का स्रोत मात्र नहीं है। यह है आर्थिक एवं सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने का स्वीकृत साधन है। एक श्रेणी के होटलों से भिन्न अन्य श्रेणी के होटलों पर भिन्न करारोपण का यह तर्कसंगत आधार है कि दोनों में अलग-अलग आर्थिक स्तर/श्रेश्ठता के लोग उपयोग करते हैं। करारोपण विधान का भी दण्ड विभाग की तरह कड़ाई से अर्थ निकाला जाना चाहिए। एक वर्गीकरण स्वैच्छाचारी, कृत्रिम या टालमटोलपूर्ण न होकर तर्क संगत, प्राकृतिक तथा जिन वर्गों पर लागू होता है उनकी प्रकृति के अनुसार सारभूत अंतर होना चाहिए।

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