Sunday 29 May 2011

उचित प्रक्रिया


राजस्थान उच्च न्यायालय ने निजाम बनाम जयपुर विकास प्राधिकरण (एआईआर 1994 राजस्थान 87) में कहा है कि प्रतिनिधि वाद जैसी विस्तृत अर्थों वाली कानूनी कार्यवाही आम आदमी के न्याय के लिए है और उन लोगों के लिए आवष्यक रूप से प्रति प्रेरणा है जो कि प्रक्रियागत कमियों के आधार पर वास्तविक मुद्दे को विफल करना चाहते हैं। हमारी सामाजिक आर्थिक परिस्थितियांे में मान्य स्थिति के उदारवादी अर्थ से लोकहित पनपता है और उच्च स्तरीय न्यायालयों में वास्तविक और उदारवादी विचारधारा से उपचार का लाभ कई लोगों को मिलता है विषेशतया तब जब कि वे कमजोर हो। उचित प्रक्रिया के सुसंगत कम मुकदमेबाजी यही निर्णायक कानून का लक्ष्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेष प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड बनाम प्रोफेसर ए.सी. नायडू के निर्णय दिनांक 22.12.02 में कहा है कि आज के उभरते हुए न्यायषास्त्र में पर्यावरण सम्बन्धी अधिकार सामूहिक अधिकार है जिन्हें तीसरी पीढ़ी के अधिकार कहा जाता है। पहली पीढी के अधिकार राजनैतिक अधिकार हैं जबकि दूसरी पीढी के अधिकार सामाजिक और आर्थिक है। पेयजल तक पहुंच जीवन की मूलभूत आवष्यकता हो और अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत राज्य का कर्त्तव्य है कि अपने नागरिकों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराये।
सुप्रीम कोर्ट ने मुनिसिपल कांउसिल, रतलाम बनाम वृद्धिचन्द (1980 एआईआर सु.को.1622) में कहा है कि यद्यपि दोनो संहितायें काफी पुरानी है किन्तु उन्हें संविधान से नये सामाजिक न्याय की दिषा देकर गतिमान उपचार का साधन बनाया जा सकता है। लोगों को सामाजिक न्याय देय है इसलिए वे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 में मजिस्ट्रेट जैेसे लोक अधिकारी में समाहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार की षक्तियों के प्रयोग में न्यायपालिका को न्याय तक पहुंच की व्यापकता के सिद्धान्त को समझना चाहिए जो कि संविधान के अनुच्छेद 38 तथा विकासषील देषों की जरूरतों से है।
उड़ीसा उच्च न्यायालय ने जयकृश्ण पाणीग्राही बनाम ऋशिकेष पण्डा (1992क्रि. ला.ज.1056) में कहा है कि पड़ौसी की छत से पेड़ का झूकना या पत्रों आदि का झड़ना यदि पड़ौसी के घर में जीवन को संकट उत्पन्न करता है तो पड़ौसी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के दायरे में मजिस्ट्रेट के सामने कार्यवाही कर सकता है और मजिस्ट्रेट ऐसी कार्यवाही करने में अपने क्षेत्राधिकार के भीतर है और उपयुक्त आदेष पारित कर सकता है यदि वह संतुश्ट है कि धारा 133 की आवष्यकताएं परिस्थितियां तथा तथ्य इस प्रकार पूर्ण होते हैं कि न्यूसेन्स हटाने के लिए सषर्त आदेष पारित किया जा सकता है।

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