Thursday 5 January 2012

प्रकाशन के लिए स्पष्टतया मनाही, या अवमान होना न होता हो तो उसे प्रकटन से छूट नहीं दी जा सकती

केंद्रीय सूचना आयोग ने प्रकरण सी आई सी/एस जी /ए/2009/001997 :विजय कुमार बनाम जिला एवं सत्र न्यायाधीश दिल्ली के निर्णय में कहा है कि  नियम 7(1) सूचना के प्रकटन से छूट देता है यदि यह धारा 8,9,11 या 24 की परिधि में आती है| जैसा कि ऊपर कहा गया है मात्र धारा 8 और 9 ही सूचना के प्रकटन से छूट का प्रावधान करती हैं| धारा 11 सूचना के प्रकटन से छूट का प्रावधान नहीं करती अपितु तीसरे व्यक्ति के संबंध में सूचना होने पर प्रक्रिया का वर्णन करती है| नियम 7(4) यह प्रावधान करता है कि सूचना अधिकारी वह सूचना नहीं देगा जो न्यायिक गतिविधि से सम्बंधित या अनुषंगी हो| यह प्रावधान धारा 8(1) (बी) से अधिक विस्तृत छूट देता है| धारा 8(1)(बी) के अनुसार यदि प्रकटन के लिए न्यायालय द्वारा प्रकाशन के लिए स्पष्टतया मनाही, या  अवमान होना न होता हो तो   उसे प्रकटन से छूट नहीं दी जा सकती|
नियम 7(13) जन सूचना  अधिकारी को एक खुला विकल्प देता है जिसे वह आवेदक को अन्य किसी कारण से सूचना देने से मना करना न्यायोचित ठहरता हो| अधिनियम ऐसी अवशिष्ट शक्तियां नहीं देता क्योंकि इससे सकल अन्याय होना संभावित है| आयोग इस बात पर बल देना चाहेगा कि सूचना का अधिकार नागिकों का मूल अधिकार है अतः कोई भी कृत्य जो इसको सीमित करता है उसे टाला जाना चाहिए| यहाँ तक कि संसद भी नागरिकों के मूल अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाने में बहुत सावधान है, और सक्षम अधिकारी को यह सुनिश्चित कराने का परामर्श दिया जाता है कि ऐसी छूटें नहीं निर्मित करे जो विधिनिर्माताओं ने प्रावधान नहीं किए हैं|

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