Monday 23 January 2012

न्यायालय को वारंट जारी करने से पूर्व व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक हितों के मध्य संतुलन स्थापित करना चाहिए

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मनी शांडिल्य बनाम राज्य के निर्णय दिनांक 11.04.08 में कहा है कि आत्मसंयम न्यायिक प्राधिकार की कसौटी है | न्यायिक प्राधिकार का प्रयोग कोई शक्तिप्रदर्शन नहीं है अपितु नम्रता के साथ दृढता युक्त कर्त्तव्य है| विवेकाधिकारी शक्ति होने के नाते यह अत्यधिक ध्यान व सावधानी के साथ न्यायिकतः प्रयोग की जानी चाहिए| न्यायालय को वारंट जारी करने से पूर्व व्यक्तिगत  स्वतंत्रता और सामाजिक हितों के मध्य संतुलन स्थापित करना चाहिए| वारंट जारी करने का कोई सीधा व सटीक सूत्र नहीं हो सकता किन्तु सामान्य नियम के तौर पर यदि एक अभियुक्त पर जघन्य अपराध करने  का आरोप न हो तो और इस बात का  अंदेशा न हो कि वह साक्ष्यों से छेड़छाड करेगा या नष्ट कर देगा  या विधिक प्रक्रिया को टालना संभाव्य है तब तक जमानती वारंट जारी करना टाला जाना चाहिए|
( लेखकीय टिपण्णी : न्यायालय का यह मत सही प्रतीत नहीं होता क्योंकि राज पुलिस नियम (यथा संभव अधिकांश पुलिस नियमों में) यह प्रावधान है कि पुलिस अपराध की घटना की सूचना मिलते ही घटना स्थल के लिए रवाना होगी ताकि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सके अतः साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ तो पुलिस से मिलकर अथवा उसकी लापरवाही से ही हो सकती और इस आधार पर वारंट जारी करना उचित नहीं है क्योंकि पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह साक्ष्यों का शीघ्र संग्रहण करे |)

सुनवाई की किसी भी तिथि या पहली बार को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट के आवेदन को निरस्त करना या  समन की तामिल के बावजूद  या समन की अनुपालना न करना या फरार होना अनुपस्थिति नहीं बन जाता और न्यायालय ऐसी स्थिति में  गिरफ़्तारी वारंट जारी नहीं करेगा और या तो अभियुक्त को उपस्थित होने का निर्देश दे सकता है या समन की आदेशिका जारी कर सकता है| जमानतीय अपराध में अभियुक्त के उपस्थित होने पर न्यायालय उसे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 436 के आज्ञापक प्रावधान के अनुसार जमानती सहित या रहित व्यक्तिगत मुचलके पर छोड़ देगा| उक्त प्रार्थना की कभी भी अनदेखी नहीं होनी चाहिए और विनम्रता  एक गुण है जिस  पर अहम और घमंड को कभी हावी नहीं होने देना चाहिए| पुलिस अधिकारियों के एक समूह को न्यायालय में उपस्थित देख आपराधिक न्यायप्रशासन के आसान पर बैठ कर उसे शक्ति के प्रति एक अनुचित सन्देश नहीं देना चाहिए जिससे न्यायाधीश अपराधिक न्याय प्रशासन , संवैधानिक अधिकारों  और औचित्य के सिद्धांतों की अनदेखी कर अनुपालना की अपेक्षा करे| मैं अधीनस्थ न्यायालयों से अपेक्षा करता हूँ कि इस प्रकार क्षेत्राधिकार के प्रयोग में वे सावधानी बरतेंगे|

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