Sunday 22 January 2012

पक्षकार से विश्वास घात करने पर वकील दुराचरण का दोषी है

सुप्रीम कोर्ट ने जयपुर विकास प्राधिकरण बनाम अशोक कुमार चौधरी (मनु/सूको /1082/2011) के निर्णय में कहा है कि प्रत्यर्थी संख्या 1 से 3 पर दुराचरण, अनुचित भावभंगिमा और दुष्कृत्यों के कई आरोप थे| प्रकरण में साक्ष्य भी दिए गए| अभियुक्तों पर यह आरोप था कि प्रत्यर्थीगण अपीलार्थी की पैरवी से पूर्व दावेदार की पैरवी कर रहे थे| अन्य आरोप यह था कि असाइनमेंट लेख प्रत्यर्थी संख्या 1  की बहिन के पक्ष में था अतः प्रत्यर्थी संख्या 1 को पैरवी से हट जाना चाहिए  था|

इस प्रकार प्रत्यर्थी संख्या 1 ने परिवादी द्वारा व्यक्त विश्वास में विश्वासघात किया है| उसने वकील के लिए अशोभनीय व्यवहार किया है जोकि नैतिक आचरण से आबद्ध है और अपने मुवक्किल का हित सुरक्षित करने में विफल रहा है |प्रत्यर्थी संख्या 1 मात्र एक रेफेरंस मामले में अपनी पत्नी का प्रतिनिधित्व कर रहा था और प्रत्यर्थी संख्या 1 का चैम्बर साथी रहा है| यद्यपि उसकी पत्नी एक दावेदार थीं उसका प्रत्यर्थी संख्या 1 के साथ अपवित्र गठबंधन हो सकता है किन्तु इस बात का कोई साक्ष्य रिकार्ड पर नहीं है कि प्रत्यर्थी संख्या 3 ने दुराचरण किया हो|
अतः अनुशासनिक अधिकारी का  प्रत्यर्थी संख्या 23 को दोषी नहीं ठहराने का आदेश पुष्ट किया जाता है किन्तु प्रत्यर्थी संख्या 1 के सम्बन्ध में आदेश संशोधित किया जाता है और प्रत्यर्थी संख्या 1 की प्रैक्टिस  6 माह के लिए निलंबित की जाती है| इस प्रकार अपील निरस्त की जाती  है|

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