Thursday 26 January 2012

पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में उन्हें मृत्यु दण्ड ही दिया जाना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश कदम बनाम रामप्रसाद विश्वनाथ गुप्ता (मनु/सुको/0610/2011) के निर्णय में कहा है कि यह कोई निरपेक्ष नियम नहीं है कि एक बार अभियुक्त को जमानत दे दी जाय तो मात्र जमानत का दुरूपयोग होने की सम्भावना पर ही निरस्त की जा सकती है| बहुत से दूसरे कारण भी हैं जब उन पर भी जमानत निरस्त करते समय विचार किया जा सकता है| यह बड़ा ही गंभीर मामला है जिसमें प्रथम दृष्टया कुछ पुलिस अधिकारी और स्टाफ को निजी व्यक्तियों ने अपने विरोधियों को मारने के लिए नियुक्त किया गया| यदि कुछ पुलिस अधिकारी और स्टाफ का निजी व्यक्तियों द्वारा अपने विरोधियों को मारने के लिए ठेके पर उपयोग किया जाये तो गवाहों के दिमाग में भी अपनी सुरक्षा के प्रति पर्याप्त भय हो सकता है| यदि पुलिस अधिकारी और स्टाफ तीसरे पक्षकार के कहने पर मार सकते हैं तो इस बात की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अपने आप को बचाने के लिए वे महत्वपूर्ण गवाह या उसके रिश्तेदार को भी मार सकता हैं  या अन्वीक्षण के समय उसे धमकी दे सकते हैं|

जमानत देते समय सत्र न्यायाधीश ने इस पहलू की पूर्णतः उपेक्षा कर दी है| उच्च न्यायालय ने अभियुक्त अपीलार्थी की जमानत निरस्त करने में पूर्णतः ठीक है| आगे परीक्षण में पुलिसवाले द्वारा फर्जी मुठभेड़ साबित होने पर इसे दुर्लभतम मामला समझकर उन्हें  मृत्यु दण्ड ही दिया जाना चाहिए| फर्जी मुठभेड़, जिस व्यक्ति से कानून को बनाये रखने की जिम्मेदारी हो उसके द्वारा, एक शीत रंजित नृशंस संहार है|अपीलें निरस्त की जाती हैं|

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