राजस्थान सूचना आयोग ने अपील संख्या: 3035/2009 श्री मधुसुदन पालीवाल, बनाम भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में कहा है कि प्रत्यर्थी पक्ष का यह भी तर्क था कि अभी तक अभियोजन की प्रक्रिया बाकी है और धारा 8(1) यह भी अपेक्षा करता है कि ऐसी सूचना जो अभियोजन की प्रक्रिया में किसी प्रकार से बाधक है, को भी प्रकटन नहीं करना चाहिए। उनके तर्क में एक प्रकार से बल है। परन्तु वे यह भी स्पष्ट नहीं कर सके कि यदि वांछित सूचना का प्रकटीकरण किया जाता है तो अभियोजन में किसी प्रकार व्यवधान आऐगा। फिर यह भी अपेक्षित नहीं है कि किसी भी प्रकार से प्रत्यर्थी पक्ष अनावश्यक रूप से प्रकरण लटका कर विचाराधीन रखे और कोई भी आवेदक इस कारण से ही सूचना को वंचित रहे। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 नागरिक को सूचना से वंचित रखने की किस भी प्रक्रिया को उचित नहीं मानता। यह अधिनियम नागरिक के अधिकारों को सर्वोपरि रूप से रक्षित करता है और यह अपेक्षा करता है कि लोक प्राधिकारी के नियंत्रण के अधीन सूचना नागरिक की पहुंच में हो और इसके लिए लोक प्राधिकारी को व्यवहारिक व्यवस्था करने की भी अपेक्षा करता है। वर्तमान प्रकरण में प्राथमिकी वर्ष 2007 की है, अनुसंधान पूर्ण हुए भी डेढ वर्ष का समय हो चुका है। ऐसी स्थिति में एक लम्बे अन्तराल तक मेरी दृष्टि से अपीलार्थी को सूचना से वंचित नहीं रखा जा सकता। विशेषतया इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए कि प्रत्यर्थी पक्ष यह सिद्ध नहीं कर सके कि वांछित सूचना के प्रकटीकरण से अनुसंधान/अभियोजन की प्रक्रिया में किस प्रकार से बाधा होगी। इस दृष्टि से वर्तमान अपीले स्वीकार योग्य हैं|
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