Wednesday 25 January 2012

गैरजमानती वारंट जारी करते समय अत्यधिक सावधान रहना चाहिये

सुप्रीम कोर्ट ने इन्दरमोहन  गोस्वामी बनाम उत्तराँचल राज्य के निर्णय दिनांक 09.10.07 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गैर जमानती वारंट जारी करना व्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है| गिरफ्तारी एवं बंदीकरण एक व्यक्ति को सर्वाधिक महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित करते हैं| इसलिए न्यायालयों को गैरजमानती वारंट जारी करते समय अत्यधिक सावधान रहना चाहिये| जहां तक संभव हो यदि न्यायालय का मत है कि  अभियुक्त की न्यायालय में उपस्थिति के लिए समन पर्याप्त रहेगा तो समन या जमानती वारंट को ही वरीयता दी जानी चाहिए| जमानती या गैरजमानती वारंट, गंभीर परिणामों और प्रभावों के कारण जो वारंट जारी करने के हो सकते हैं, तथ्यों की पूर्ण अन्वीक्षा किये बिना व पूर्ण विचारण के बिना कभी भी जारी नहीं किये जाने चाहिए| न्यायालय को अत्यधिक ध्यानपूर्वक परीक्षण करना चाहिये  कि आपराधिक शिकायत या एफ आई आर किसी छिपे उद्देश्य के लिए तो दर्ज नहीं करवाई गयी| परिवाद के मामलों में प्रथम चरण पर परिवाद की प्रति के साथ समन तामिल के निर्देश देने चाहिए | यदि अभियुक्त समन टाल रहा प्रतीत हो तो न्यायालय को दूसरे चरण में जमानती वारंट जारी करने चाहिए | तृतीय चरण में जब न्यायालय पूरी तरह संतुष्ट हो कि यदि अभियुक्त आदेशिका की तामिल जानबूझकर टाल रहा हो तो  गैरजमानती वारंट जारी करने की प्रक्रिया का सहारा लिया जाना चाहिए| व्यक्तिगत स्वतंत्रता सर्वोपरि है इसलिए हम न्यायालयों को सावचेत करते हैं कि पहले और दूसरे चरण पर गैरजमानती वारंट जारी करने से परहेज करना चाहिए |

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