Saturday 2 July 2011

काले कानूनों में पिसती मानव गरिमा



भारत में मानवधिकारों की रक्षा के लिए औपचारिक तौर पर मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, १९९३ पारित कर मानवाधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय संधियों, जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किये , के लागू करने की भी घोषणा कर दी गयी है. अधिनियम में राज्य आयोगों व राष्ट्रीय आयोग बनाए जाने का प्रावधान किया गया है. किन्तु बड़ी विडम्बना है कि उक्त अधिनियम की धारा ३० में यद्यपि विशेष न्यायालय स्थापित करने का प्रावधान रखा गया है किन्तु किसी भी मानवाधिकार के उल्लंघन को न तो अपराध घोषित किया गया और न ही क्षतिपूर्ति या दण्ड के लिए कोई प्रावधान किया गया है. स्वस्पष्ट है कि अधिनियम में न्यायालय के लिए कोई कार्य ही नहीं जिसे वह करे अर्थात जनता को मानवधिकार संरक्षण के नाम पर गुमराह किया गया है , उसे न्यायालय से न तो कोई मुआवजा मिलनेवाला है और न ही किसी दोषी को कोई दण्ड मिलने वाला है.


दूसरी ओर आस्ट्रेलिया राजधानी क्षेत्र के मानवाधिकार अधिनियम ,२००४ का अवलोकन करें तो हमें ज्ञात होगा कि धारा १० में अमानवीय, क्रूर व्यवहार और यातना से सुरक्षा की व्यवस्था है. धारा ११ में परिवार और बच्चों के संरक्षण का प्रावधान किया गया है .अधिनियम की धारा १२ में आगे कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि उसकी निजता, परिवार, घर या पत्राचार में कोई अवैध या मनमाना हस्तक्षेप नहीं हो और उसकी प्रतिष्ठा पर अवैध आक्रमण न हो. हमारे यहाँ एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर पुलिस बड़े गर्व के साथ प्रेस विज्ञप्ति एवं फोटो प्रकाशित करती है जिससे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को अनावश्यक आघात पहुंचाता है .
धारा १३ के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह आस्ट्रेलिया राजधानी क्षेत्र में स्वतंत्र विचरण करे, प्रवेश करे, प्रस्थान करे और आस्ट्रेलिया राजधानी क्षेत्र में अपने निवास का चयन करे .आगे धारा १४ में धर्म , विचार और अंतःकरण की स्वतंत्रता बताई गयी है .धारा १५ में शांतिपूर्वक सम्मेलन और संगठन बनाना अधिकार बताया गया है जबकि हमारे यहाँ सरकार के विरोध में होने वाली गतिविधियों को पुलिस द्वारा रोक दिया जाता है अथवा बर्बरतापूर्वक कुचल कर ब्रिटिशकाल की यादों को हमारी अपनी चुनी गयी सरकारें तरोताजा करती रहती हैं .
आस्ट्रेलिया राजधानी क्षेत्र के मानवाधिकार अधिनियम ,२००४ की धारा १६ में बिना किसी हस्तक्षेप के अपने विचार धारित करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है जिसमें मुद्रित ,लिखित या मोखिक रूप में बिना किसी राज्य सीमा के सूचना का आदान प्रदान शामिल है. प्रत्येक को लोक मामलों में प्रत्यक्ष या प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने का अधिकार है. मत देने और समय समय पर चुने जाने का, जो कि मतदाताओं की स्वतंत्र इच्छा की गारंटी है ,अधिकार है तथा लोक पदों पर समानता के आधार पर नियुक्ति का अधिकार है. जबकि भारत में मतदान के अधिकार को कानून में कहीं भी अधिकार के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है. यहाँ तो निर्वाचन अधिकारी मनमाने ढंग से जब चाहे किसी का भी नाम मतदाता सूची से गायब कर देते हैं और मतदाता को नाम हटाने से पूर्व या पश्चात सूचित करने का देश के निर्वाचन कानून में कोई प्रावधान नहीं है .इस प्रकार देश की स्वयं निर्वाचन प्रक्रिया ही बेमानी है.
अधिनियम की धारा १८ में प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक को शरीर की स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार होगा व विशेष रूप से किसी को भी मनमाने ढंग से गिरफ्तार अथवा निरुद्ध नहीं किया जायेगा. जिसे अपराधिक आरोपण में रोका जाता है उसे तुरंत मजिस्ट्रेट के समक्ष लाया जायेगा और तर्कसंगत समय सीमा के भीतर मुक्त किये जाने या अन्वीक्षा किये जाने का अधिकार है. सामान्य नियम के तौर पर जो अन्वीक्षण की प्रतीक्षा कर रहा है उसे अभिरक्षा में नहीं रोका जाना चाहिए. जिस किसी को गिरफ़्तारी या रोककर के स्वतंत्रता से वंचित किया गया है वह रोकने की वैधता न्यायालय से अविलम्ब निर्धारित करवाने और यदि रोकना अवैध पाया जाये तो व्यक्ति की विमुक्ति का आदेश का अधिकारी है. भारत में ऐसे किसी भी कानून का पूर्णतया अभाव है. इसी धारा में आगे यह भी कहा गया है कि जिसे अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया या रोका गया हो को गिरफ़्तारी या रोकने के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकार है. भारत में अवैध गिरफ़्तारी के लिए कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाती है और इस प्रकार विधायिका द्वारा समुचित कानून नहीं बनाने के पाप का दण्ड, संविधान के विरुद्ध, नागरिकों को भुगतना पडता है .


धारा १९ में यह भी कहा गया है कि स्वतंत्रता से वंचित के साथ मानवीय और मानवोचित गरिमा व आदर का व्यवहार किया जायेगा. आपवादिक परिस्थितियों को छोड़कर एक अभियुक्त को दोषसिद्ध लोगों से अलग रखा जायेगा और एक अभियुक्त के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जायेगा जो कि दोषसिद्ध नहीं हुए व्यक्तियों के लिए उपयुक्त हो.
धारा २१ में उचित अन्वीक्षण पर बल देते हुए कहा गया है कि प्रत्येक को अपराधिक आरोपण , विधि द्वारा मान्य अधिकार और दायित्वों को प्राप्त करने और सक्षम, स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायालय द्वारा उचित व सार्वजनिक सुनवाई के पश्चात निर्णय करवाने का अधिकार है. आगे यह भी कहा गया है कि बिना अतर्कसंगत विलम्ब के सुनवाई ,अपने स्वयं के विरुद्ध साक्ष्य नहीं देने या अपराध स्वीकार नहीं करने का अधिकार है. धारा २३ में बल देते हुए कहा गया है कि यदि एक व्यक्ति की दोष सिद्धि होने के पश्चात दण्ड भुगतता है और बाद में दोषसिद्धि उल्ट दी जाती है या क्षमादान दे दिया जाता है या नए तथ्य से न्याय की विफलता प्रकट होती है तो उसे कानून के अनुसार क्षतिपूर्ति का अधिकार होगा. अधिनियम की धारा ४० ख में स्पष्ट किया गया है कि एक लोक प्राधिकारी के लिए मानवाधिकारों के अनुपयुक्त ढंग से कार्य करना या मानवाधिकारों के उपयुक्त विचारण के बिना निर्णय देना अवैध होगा. इस प्रकार वहाँ न्यायालयों के लिए भी मानवाधिकार संरक्षण आवश्यक है जबकि हमारी व्यवस्था में तो न्यायपालिका अपने को सर्वोच्च मानती है, उसमें व्यावहारिकतः मानव तत्व का अभाव होने से मानव गरिमा का कोई मूल्य नहीं है.
इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आस्ट्रेलिया राजधानी क्षेत्र में मानवाधिकारों पर पर्याप्त बल दिया गया है और मानवाधिकार संधियों को लागू करने का निष्ठावान व व्यापक प्रयास किया गया है जबकि हमारे यहाँ मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम एक कोरी औपचारिकता मात्र है व मानवोचित गरिमा की रक्षा को हमारे कानून में कोई स्थान नहीं दिया गया है और पुलिस के तांडव नृत्य असामान्य बात नहीं है. हमारी लोकतान्त्रिक सरकार को चाहिए की वह एक व्यापक कानून बनाये जिसमें आस्ट्रेलिया राजधानी क्षेत्र की भांति समस्त लोक प्राधिकारियों पर मानवाधिकार संरक्षण का दायित्व हो.

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