Tuesday 12 July 2011

किराया

सुप्रीम कोर्ट ने इन्दर मोहन लाल बनाम रमेश खन्ना (1987 4 एसएससी (1 में कहा है कि समय बीत जाने से वाणिज्यिक भवनों में किराये पर लेकर व्यवसाय करने वाले अधिकांsशs किरायेदार जिन भवनों में वे व्यापार कर रहे हैं के मकान मालिको से आर्थिक रूप से अधिक सम्पन्न हैं।
केरल उच्च न्यायालय ने ईसाख निनाण बनाम केरल राज्य (1996 एआईएचसी 857) में कहा है कि किराया नियंत्रण अधिनियम जैसा कानून बनाने का उद्देश्य भवनों के पट्टो को विनियमित करना तथा किराये का नियंत्रण करना है न कि किराये को स्थिर बनाना।
सुप्रीम कोर्ट ने श्रीमती बसावा कोम दायमो गोडा पाटिल बनाम मैसूर राज्य (एआईआर 1977 एस सी 1749) में कहा है कि जब कोई सम्पति नष्ट हो जाती है या गुम हो जाती है और इस बात के प्रथम दृष्टया प्रमाण नहीं है कि राज्य या इसके अधिकारियों ने सम्पति की रक्षा करने में उचित सावधानी तथा ध्यान रखा तो उचित मामले में यदि न्याय के लक्ष्यों के अनुसार आवश्यक हो तो मजिस्ट्रेट सम्पति की कीमती अदायगी का आदेश दे सकता है। हम हाईकोर्ट के इस दृष्टिकोण से असहमत हैं कि एक बार यदि वह वस्तु न्यायालय में उपलब्ध नहीं है तो न्यायालय को उस मामले में कुछ भी करने का अधिकार नहीं है और पूरी तरह से असहाय है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर बनाम (न्यायाधिपति) भगवती प्रसाद शर्मा के निर्णय दिनांक 11.12.04 में कहा है कि निचले न्यायालयों ने वार्षिक के स्थान पर प्रतिवर्ग फुट के हिसाब से प्रत्येक पांच वर्ष बाद किराये की राशि में वृद्धि की अनुमति दी है, वह तरीका जो कि बैंको द्वारा भवन किराये पर लेने में काम में लिया जाता है जैसा कि गैर पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य से प्रकट होता है। निचले न्यायालयों ने पाया कि प्रत्यर्थी बैंक के साथ-साथ अन्य बैंको ने भवनो के लिए अधिक किराया प्रस्तावित किया जो कि केवल इसी स्थान विशेष में नहीं बल्कि जो भवन इस प्रश्नगत गत भवन के ठीक आसपास थे। एक भवन इलाहाबाद बैंक को वर्ष 1995 में 7 रूपये प्रति वर्ग फुट पर दिया गया। अन्वीक्षण न्यायालय के साथ-साथ अपील न्यायालय ने भी प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य पर विचारण किया - भवन के तत्समय मूल्यांकन के विषय में और समस्त साक्ष्यों पर विचारण के पश्चात उपरोक्त किराया निर्धारित किया गया। स्मरणीय है कि प्रकरण में प्रारम्भ में तय किये गए किराये रूपये 500 प्रतिमाह को रूपये 15000 प्रतिमाह तक बढाना न्यायोचित पाया गया था।

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