Monday 18 July 2011

गिरफ़्तारी एवं जब्ती

सुप्रीम कोर्ट ने वी.के. जैन बनाम भारत संघ (2000(1) एससीसी 709) में कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत उपस्थिति से आपराधिक प्रकरण में छूट के लिए निम्नांकित शर्तें लगायी है:-
1.    जब भी मामला न्यायालय में लगेगा एक पैरोकार उसकी ओर से उपस्थित होगा।
2.    वह प्रकरण में अभियुक्त के रूप में पहचान पर विवाद नहीं करेगा।
3.    जब आवsश्यक हो वह न्यायालय में उपस्थित होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र  राज्य बनाम तपस डी नियोगी (1999 (7) एससीसी 685) में कहा है कि अभियुक्त या उसके सम्बन्धी का बैंक खाता या दं.प्र.सं. की धारा 102 के अर्थ में सम्पति, यदि पुलिस अनुसंधान के दौरान ऐसी सम्पति का प्रत्यक्ष सम्बन्ध अपराध कारित करने से पाया जाता है तो पुलिस अधिकारी उसे जब्त कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने आर.डी. उपाध्याय बनाम आन्ध्र प्रदेश  राज्य (1999(1) स्केल 139) में कहा है कि जिन अन्वीक्षणाधीन कैदियों को जमानत पर रिहा नहीं किया गया और 6 माह से अधिक जेल में रहे के अन्वीक्षण में विलम्ब के कारण छोड़ना उचित ठहराया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने गोपालाचारी बनाम केरल राज्य (1981 सु.को.रि. 338) में कहा है कि न्यायालय के पास विशिष्ट तथ्य होने चाहिए और संतुष्ट  होना चाहिए कि यदि विपक्षी को अभिरक्षा में नहीं रखा गया तो वह अपराध करेगा।
उड़ीसा उच्च न्यायालय ने दिवाकर नायक बनाम पुष्पलता पटेल (1997 3 क्राइम्स 107 (उड़ीसा)) में स्पष्ट  किया है कि मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी का कदम उठाने से पूर्व शांतिभंग होंगे के अंदेशे  के लिए समुचित कारण होने चाहिए और उसे यह दिखाई देना चाहिए कि आरोपित व्यक्ति की तुरन्त गिरफ्तारी के अतिरिक्त अपराध को रोका नहीं जा सकता। यह मजिस्ट्रेट का दायित्व है कि वह दं.प्र.संहिता धारा 111 के तहत संतुष्टि  दिखाने वाला आदेश लिखित में दर्ज करे ।

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