Monday 25 July 2011

जमानत एवं तलाशी के अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने खिलाड़ी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के निर्णय दिनांक 23.01.2009 में कहा है कि जमानत प्रार्थना पत्र व्यहरित करते समय विवेकाधिकार का प्रयोग न्यायिक तरीके से करना चाहिये न कि एक सामान्य बात के तौर पर।
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात राज्य बनाम लालसिंह किशन सिंह (1981 एआईआर एससी 368) में कहा है कि पुलिस कमीशनर या पुलिस अधिकारी जो कि उसकी तलाशी, गिरफ्तार करने और अनुसंधान करने के लिए अधिकृत है वह धारा 496 के प्रावधानों के अन्तर्गत अभियुक्त को जमानत पर छोड़ने के कानूनी दायित्वाधीन है। इस प्रकार वारंट के निष्पादन में गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने का अधिकार कानून में है और परिणाम स्वरूप कोई भी कार्यपालक निर्देश कानूनी प्रावधान के विपरीत नहीं चल सकता।

पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने गुरूबक्ष सिंह सीबिया बनाम पंजाब राज्य (एआईआर 1978 पंजाब 1) में कहा है कि कोई भी दो मामले के तथ्य समान नहीं हो सकते इसलिए न्यायालयों को थोड़ी सी आजादी दी गई है ताकि विवेकाधिकार देना अर्थपूर्ण हो सके। सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय को अग्रिम जमानत देने में पर्याप्त विवेकाधिकार देना जोखिमपूर्ण नहीं है क्योंकि प्रथमतः यह अनुभवी व्यक्तियों वाले बड़े न्यायालय हैं और दूसरा इनके आदेश अंतिम न होकर अपील या पुनरीक्षा की संवीक्षा के अधीन है। सर्वोपरि यह है कि विवेकाधिकार का प्रयोग न्यायालयों द्वारा न्यायिकतः करना होता है और किसी उन्माद या कल्पना पर आधारित नहीं दूसरी ओर अग्रिम जमानत दी जा सकती है क्योंकि जीवन में अप्रत्याशित संभावनायें और नई चुनौतियां होती हैं। न्यायिक विवेकाधिकार को इतना मुक्त होना चाहिये कि इन संभावनाओं के विस्तार को समा सके और इन चुनौतियों का मुकाबला कर सके।

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