Wednesday 13 July 2011

स्टाम्प मूल्यांकन व क्षतिपूर्ति

सुप्रीम कोर्ट ने चतुर्भुज मोदी बनाम उड़ीसा राज्य के निर्णय दिनांक 12.08.10 में कहा है कि पंजीकृत विक्रय विलेख की प्रति मात्र प्रमाण समझी जा सकती और उस पर निर्भर हुआ जा सकता है। यद्यपि विक्रय विलेख कोई उत्कृष्ट तुलना नहीं है ,क्षेत्र एवं जमीन जिसका विक्रय विलेख प्रमाणित करता है कि विक्रय संव्यवहार लगभग भूमि अधिग्रहित करने के समय और लगभग उसी के समीप भौगोलिक स्थिति में हुआ। इसलिए क्षतिपूर्ति बढाई नहीं जा सकती। कुछ फेरफार और घटाने के साथ उच्च न्यायालय ने प्रति एकड़ दर रूपये 300000 तय किया है यह न्यायोचित एवं उचित लगता है।
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट जामा मस्जिद वक्फ बनाम लक्ष्मी टाकिज के निर्णय दिनांक 16.8.10 में कहा है कि स्टाम्प नियमों के अन्तर्गत निर्धारित दरें एक क्षेत्र विशेष की सामान्य दर है तथा एक संकेत दे सकती है लेकिन सम्बन्धित क्षेत्र में मौजूदा दर की निर्णायक नहीं हो सकती। किराये पर दी गई भूमि का बाजार मूल्य तय करने के लिए आसपास की भूमि का विक्रय उदाहरण हो सकता है किन्तु यहां ऐसा कोई उदाहरण नहीं है। मूल्यांकनकर्ता की रिपोर्ट दर्शाती है कि किराया भूमि होली गेट से कलेक्ट्रेट तथा रोडवेज बस स्टेण्ड तथा मथुरा केन्ट के पास सिविल लाईन्स के पास मुख्य सड़क पर स्थित है। उच्च न्यायालय ने मूल्यांकन कर्ता की रिपोर्ट तथा मकानमालिक द्वारा दी गई साक्ष्य को ध्यान नहीं रखा है। इस प्रकार हम संतुष्ट है कि उच्च न्यायालय कथित भूमि का किराया रूपये 2500 मात्र स्टाम्प नियमों के अन्तर्गत क्षेत्र के लिए निर्धारित दर पर आधारित के आधार पर निर्धारण में न्यायोचित नहीं है। उच्च न्यायालय का मामले का विचारण कानूनी कमी से ग्रसित है और टिक नहीं सकता।
माणकलाल बनाम महेन्द्रसिंह (एआईआर 1987 राज 14) में राजस्थान उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मात्र उपधारा 1 का पठन पर्याप्त स्पष्ट करता है कि अपील या पुनरीक्षण में खर्चे नहीं लगाये जा सकते। दूसरे शब्दों में अपील तथा पुनरीक्षण को क्षतिपूर्ति स्वरूप दिये जाने वाले खर्चों के दायरे से बाहर रखा गया है।
कलकता उच्च न्यायालय ने बोनस वाच कं. प्रा. लि. बनाम मैट्रो मेरिनस के निर्णय दिनांक 15.06.09 में कहा है कि इन कारणों से मैं दावा मुकाबले तथा खर्चे सहित अनुमत करता हूं। वाद पत्र के मद सं0 7 से 10 तक उल्लिखित राषि के लिए प्रार्थना सं (क) (ख) (घ) (च) तथा (ज) के अनुसार डिक्री किया जाता है। अंतरिम ब्याज सहित और निर्णय पर 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज अंतःकालीन लाभ, भूतकाल तथा भविष्य के लिए रूपये 2000 प्रतिदिन बोनस, रूपये 15000 प्रतिमाह शान्ति के लिए तथा रूपये 10000 प्रतिमाह नवरतन समस्त राशियों पर 10प्रतिशत वार्षिक ब्याज डिक्री एक पखवाड़े के भीतर बनाई, तैयार और पूर्ण की जावेगी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हरपालसिंह सांगवान बनाम दिल्ली विष्वविद्यालय के निर्णय दिनांक 15.07.08 में कहा है कि याचिका की सुनवाई प्रत्यर्थी के आचरण के कारण विलम्बित हुई यह भी इस मामले के रिकॉर्ड से प्रमाणित है दिनांक 12.12.07 को जबाबी शपथपत्र नहीं फाईल करने पर प्रत्यर्थी पर रूपये 3000 खर्चा लगाया गया था। तथ्यों तथा परिस्थितियों के संदर्भ में मेरे दृष्टिकोण से प्रतिपक्ष द्वारा धारित विलम्ब तथा याचिका के निर्धारण में लगे समय का भुगतभोगी याची नहीं होना चाहिए। जैसा कि याची का लगभग एक अकादमी वर्ष खराब हो चुका है। इन परिस्थितियों को देखते हुए विपक्षी को निर्देश देना उचित समझता हूं कि वर्ष 2008-09 के लिए 2007-08 में परीक्षा को चालू वर्ष के साक्षात्कार के लिए विचार करें। याची को लिखित में संदेश भेजकर दस दिन की सूचना पर इस निर्णय की प्राप्ति से साक्षात्कार के लिए बुलाया जायेगा। याची को पूर्णतः मनमानी और अवैध कृत्यों का लक्ष्य बनाया गया है जिससे वह विश्वविद्यालय में एक वर्ष तक अध्ययन करने के अधिकार से वंचित रहा है। मेरे इस दृष्टिकोण से यह उदाहरणात्मक क्षतिपूर्ति का पहला मामला है। विपक्षी पर पहले ही तीस हजार रूपये खर्चा लगाया जा चुका है तथ्य को देखते हुए मैं तीस हजार रूपये और खर्चा लगाता हूं जो कि विपक्षी द्वारा याची को दिये जायेंगे।

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