Wednesday 20 July 2011

व्यक्ति की गरिमा

बम्बई उच्च न्यायालय ने रविकान्त पाटिल बनाम महाराष्ट्र  राज्य (1991 क्रि.ला.ज. 2344 बम्बई) में कहा है कि याची को पूर्णतः अन्यायोचित उत्पीड़न और गरिमा हनन का शिकार बनाया गया जो कि भारत के किसी भी नागरिक को चाहे वह छोटे अपराध का या बडे़ अपराध का अपराधी हो, नहीं किया जा सकता, एक प्रतिबन्ध लगाने का कर्त्तव्य इस प्रकार के अवसर के रूप में नहीं होना चाहिए जिससे उत्पीड़न और सार्वजनिक उपहास हो। जीवन और स्वतन्त्रता अनुच्छेद 21 के संदर्भ में गरिमायुक्त स्वतन्त्रता तथा जीवन से है। स्वतन्त्रता का अर्थ गरिमाहीनता तथा उत्पीड़न से मुक्ति जो कि लोगों की अस्थाई अभिरक्षा प्राधिकारियों के हाथों में सौंपी जाय या देश  के कानून के अन्तर्गत सौंपी जाय है।
बम्बई उच्च न्यायालय ने प्रकाश  सीताराम सेलर बनाम महाराष्ट्र राज्य (1991 क्रि.ला.ज. 1251 बॉम्बे) में कहा है कि इस आरोपण पर भी याची समय का उल्लेख किये हुए जिसके दौरान उक्त गतिविधियां हुई कोई भी व्यक्ति तर्कसंगत बचाव नहीं रख सकता। यदि ये गतिविधियां दस वर्ष पूर्व हुई हो तो वह प्राधिकारियों को आसानी से समझा सकता है कि ये आसानी से शांत हो गई है और किसी भी निष्कासन के आदेश की आवश्यकता नहीं है। हमारा यह विचार है कि लोगों को पीटना और उनकी सम्पति को नुकसान पहुंचाना ये कुछ निराधार आरोप है। इस प्रकार का निष्कासन आदेश अवैध है और अपास्त करने योग्य हैं।
बम्बई उच्च न्यायालय ने अशाक हुसैन अल्लाह देथा उर्फ सिद्दिकी बनाम सहायक कलेक्टर (1999 क्रि.ला.ज. 2201 बम्बई) में स्पष्ट किया है कि अभियुक्त की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाने से गिरफ्तारी प्रारम्भ होती है न कि गिरफ्तारीकर्ता अधिकारी द्वारा दर्ज किये गये समय से। लेकिन पूछताछ या जांच में मदद के लिए कानून द्वारा अभिरक्षा अधिकृत नहीं है ।

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