Friday 15 July 2011

क्षतिपूर्ति

सुप्रीम कोर्ट ने हरदेव मोटर ट्रांसपोर्ट बनाम मध्यप्रदेश राज्य के निर्णय दिनांक 19.10.06 में कहा है कि ड्यूटी की दर तय करते समय कार्यपालक विधायी शक्ति को धारण करना अनुमत नहीं किया जा सकता और मूलभूत संविधि के प्रावधान से असंगत कोई प्रावधान नहीं कर सकते। अभिव्यक्ति तर्कसंगत क्षतिपूर्ति सुविधाजनक है किन्तु डावांडोल है। तर्कसंगतता का मानक अलगावमय ही हो सकता है। विचरण की स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक है कि कोई भी आर्थिक भार राज्य में एक सीमा तक जाने के वास्तविक प्रयोग से सड़क के रूप में भौतिक सुविधायें के प्रारूप पर नहीं डाला जायेगा। यह महत्वपूर्ण है कि जहां कहीं भी निर्धारित हो तर्क संगतता की जांच प्रत्येक विच्छेपित कानून के हिसाब से होगा और कोई भी मामलों के लिए सामान्य सही तरीका नहीं बनाया जा सकता।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दाण्डिक रिविजन संख्या 340/2008 धर्मवीर खट्टर बनाम केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरों में कहा है कि लिफ्ट मामले की चारों दाण्डिक पुनरीक्षण याचिकायें प्रत्येक याची द्वारा केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को चार सप्ताह के भीतर रूपये 25000 खर्चा देने के आदेश सहित निरस्त की जाती है।
पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने दाण्डिक अपील सं0 332 डीबी /1998 नछत्रसिंह बनाम पंजाब राज्य में निर्धारित किया है कि हमारे गंभीर विचार हैं कि अपीलार्थी नछत्रसिंह, सिरा, अमरजीतसिंह, विकास सिंह, सुरजीत सिंह को क्षतिपूर्ति देने का पूर्णतः दायित्व पंजाब सरकार के कन्धों पर जाता है। इस सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अर्थात् पांच साल के कठोर कारावास जो कि अपीलार्थियों ने भुगता है, मानसिक संताप और उत्पीड़न और उनकी इज्जत की हानि जो उन्होंने अन्वीक्षण से लेकर आज तक तेरह वर्ष में भुगती है एक अपूर्तनीय क्षति हुई है जिससे उनको मानसिक, शारीरिक किसी भी मौद्रिक कीमत से पूर्ति नहीं की जा सकती। उन्होंने प्रत्येक ने बीस लाख रूपये क्षतिपूर्ति मांगी है जो कि वर्तमान परिस्थितियों में उचित है। हम प्रत्येक अपीलार्थी को बीस लाख रूपये देते हैं जो कि पंजाब राज्य द्वारा इस आदेश के पारण के तीस दिन के भीतर भुगतान की जायेगी। मुख्य सचिव तथा गृहसचिव पंजाब को इस उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार के पास एक करोड़ रूपया जमा कराने का निर्देश दिया जाता है। अन्वीक्षण न्यायालय को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 340 के अन्तर्गत अमरसिंह, गुरूदेव सिंह, मुख्तारसिंह, करनैल सिंह, सुखदेव सिंह, सुरजीत कौर, बीकरसिंह, पुलिस निरीक्षक दर्शनसिंह, सर्वजीत राय, जीतसिंह, जगसिर सिंह के विरूद्ध कार्यवाही के निर्देश दिये जाते हैं।
ज्ञातव्य हो कि इस प्रकरण में पुलिस तथा परिवादियों की षडयन्त्रपूर्वक मिलीभगत से ऐसे व्यक्ति की हत्या के आक्षेप में अभियुक्तगण को मिथ्या रूप से दोष सिद्ध कर दिया गया था जो वास्तव में जीवित था।
अध्यक्ष रेल्वे मण्डल बनाम चंद्रिमा दास 2002 एस.सी.सी 465 में सुप्रीम कोर्ट ने धारित किया है कि एक गरीब औरत का रेल्वे यात्री निवास में रेल्वे कर्मचारियों द्वारा ले जाया गया तथा बलात्कार किया गया। भारत संघ को प्रतिनिधिक रूप में जिम्मेदार ठहराते हुये रेल्वे अधिकारियों के कर्त्तव्य के लिए पीड़ित को क्षतिपूर्ति के निर्देश दिये और तद्नुसार क्षतिपूर्ति दी गई। यदि ऐसा कोई कर्मचारी दुष्कृतिपूर्ण कार्य करता है तो भारत संघ जिसके वे कर्मचारी है अन्य कानूनी आवश्यकताओं के संतुष्ट होने पर प्रतिनिधिक रूप में उसके कर्मचारियों द्वारा किये गये गलत काम के लिए प्रतिनिधिक रूप में जिम्मेदार है।
गोहाटी उच्च न्यायालय ने मणीपुर मानवाधिकार आयोग बनाम मणीपुर राज्य के निर्णय दिनांक 23.01.07 में कहा है कि इस न्यायालय ने विभिन्न मामलों में संविधान के अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत याचिकाऐं स्वीकार की हैं और सरकारी अधिकारियों के हाथो पीड़ित होने वाले याचियों को क्षतिपूर्ति प्रदान की है। रूदलशाह बनाम बिहार राज्य से लेकर इस न्यायालय द्वारा क्षतिकारित करने जो कि दुष्कृतिपूर्ण कार्य था के लिए क्षतिपूर्ति दिलवायी है। यदि कोई निजी निकाय भी लोक कृत्यों का निर्वहन करता है और वह लोक कृत्यों द्वारा डाले गये किसी अधिकार से मना करता है तो सार्वजनिक कानून या इस प्रकार की शक्ति का स्रोत महत्वहीन है ।फिर भी सार्वजनिक कानून और व्यक्तिगत कानून में उपचार होने चाहिए।

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