Saturday 23 July 2011

चुप रहने का अधिकार एवं स्वतंत्रता

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य बनाम बलबीर सिंह (1994 एआईआर 1872) में कहा है कि जंगसिंह बनाम हरियाणा राज्य (1988 (1 क्रि0 446 पंजाब) में कहा गया है कि तलाशी लेने वाले अधिकारी पर यह दायित्व है कि तलाश किये जाने वाले व्यक्ति को उसके इस अधिकार के विषय में जताये कि उसकी तलाशी राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में ली जाये तथा ऐसा करने में विफलता उसकी दोषमुक्ति को उचित ठहराती है। कानून तोड़ने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। इसी अवधि में कानून लागू करने वाले लोगों द्वारा शक्ति का दुरूपयोग करने के प्रति जागरूकता, न्यायिक एवं विधायन में ऐसे अधिकारियों पर प्रतिबन्धों को कड़ा करने, अभियुक्त प्रजाजन और साक्षीगण के अधिकारों की रक्षार्थ प्रबल इच्छाशक्ति बढ़ी है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि अनुसंधान एजेन्सी को अधिनियम की धारा 15 की उपधारा (1) तथा (2) में समाहित प्रावधानों की पूर्ण अनदेखी नहीं करनी चाहिए। किन्तु यदि इन प्रावधानों की अनुपालना न की जाय तो सम्पूर्ण कार्यवाही एवं अन्वीक्षण दूषित या अवैध नहीं हो जाती। अपराध काफी समय पूर्व हुए बताये गये हैं और नोटिस के चरण पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद इतने समय बाद जबकि अधिकांश साक्ष्य गायब हो गये हैं हम इसे समीचीन नहीं समझते कि प्रकरणों में पुनः अन्वीक्षण की जाय। यदि अभिरक्षा में एक व्यक्ति से पूछताछ की जाती है तो उसे सर्वप्रथम स्पष्ट एवं असंदिग्ध शब्दों में बताया जाना चाहिए उसे चुप रहने का अधिकार है। जो इस विशेषाधिकार से अनभिज्ञ हो उन्हें यह चेतावनी प्रारम्भिक स्तर पर ही बुद्धिमतापूर्वक दी जानी चाहिए। ऐसी चेतावनी की अन्तर्निहित आवश्यकता पूछताछ के दबावयुक्त वातावरण पर काबू पाने के लिए है। प्रत्येक कानून को खोलने की चाबी कारण और कानून की भावना है। कानून निर्माताओं का आशय कुल मिलाकर ध्यान देने योग्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने खड़कसिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1963 एआईआर 1295) में कहा है कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में परिस्थितियां बदलने के लिए घूमने फिरने की शक्ति एक व्यक्ति को जहां वह जाये वहां स्वतन्त्र रूप से बिना बाधा या कारागार के अनाजाना यदि विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा न हो तो।
ए.के. गोपालन के मामले में कहा गया है कि स्वतन्त्रता का अर्थ भौतिक प्रतिबन्ध या बिना उत्पीड़न के शारीरिक स्वतन्त्रता से है। यह अभिव्यक्ति उसके बिना प्रतिबन्ध के रात्रि में विचरण से भी है। वैज्ञानिक तरीके से एक मनुष्य के दिमाग के वास्तविक प्रतिबन्ध जो कि उसके शारीरिक खतरे के भय को संभावित या प्रत्यासित करते हैं, शामिल है। इसलिए ऐसी दशायें उत्पन्न करना जो कि निवास को आवश्यक रूप से खतरा पहुंचाते हो और भय उत्पन्न करते हैं भौतिक प्रतिबन्ध कहे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार मात्र उसके विचरण पर प्रतिबन्ध से मुक्ति ही नहीं है अपितु उसके व्यक्तिगत जीवन में अतिक्रमण से मुक्त है। यह सही है कि हमारा संविधान निजता को स्पष्ट रूप से मूल अधिकार घोषित नहीं करता है। किन्तु यह अधिकार वैयक्तिक स्वतन्त्रता का आवश्यक अंग है। प्रत्येक लोकतांत्रिक देश घरेलू जीवन को मान्यता देता है जिससे अपेक्षा है कि उसे आराम, शारीरिक प्रसन्नता, मानसिक शांति और सुरक्षा दे। अंतिम, एक व्यक्ति का घर जहां वह अपने परिवार के साथ रहता है उसमें अतिक्रमण उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में दखल है।
लेखकीय टिपण्णी : इंग्लॅण्ड में चुप रहने का अधिकार व उसके परिणाम संसदीय कानून में सुपरिभाषित हैं |

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