Sunday 24 July 2011

जमानत के सिद्धांत

एक तरफ भारतीय कानून के अनुसार एक व्यक्ति तब तक निर्दोष है जब तक कि उसे उचित अन्वीक्षण में दोषी नहीं पा  लिया जाता है तथा दोष सिद्ध व्यक्ति को भी सदाचार के वचन पर परिवीक्षा पर छोड़ा जा  सकता है  व दूसरी ओर एक अन्वीक्षण के  अधीन  अभियुक्त, जिसे दोषी नहीं ठहराया  गया हो, को भी जमानत से इंकार कर दिया जाता है |समान परिस्थितियों में एक न्यायाधीश द्वारा एक अभियुक्त को जमानत देने और दूसरे अभियुक्त को इंकार करने के विवेकाधिकार का प्रयोग करना संविधान के अनुच्छेद १४ का स्पष्ट उल्लंघन व मनमानापन है |

बम्बई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य बनाम तुकाराम शिवा पाटिल (1976 (18 बीओएमएलआर 411) में कहा है कि मद्रास उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने निर्धारित किया है कि गैर जमानती अपराध के विषय में नियम यह है कि विशेष परिस्थितियों को छोड़ते हुए जमानत नहीं ली जानी चाहिए ताकि विरोधी प्रार्थना पत्र पर इस चरण पर न्यायालय यह देख सके कि क्या ये विशेष परिस्थितियां मौजूद है। मेरे विचार से आपराधिक मामले अन्वीक्षण करने वाले प्रत्येक मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश को अन्तर्निहित शक्ति है कि वह देखे कि अन्वीक्षा ठीक चल रही है और न्याय के उद्देश्य विफल नहीं हो रहे हैं और यदि उसके ध्यान में लाये गये तथ्यों से यह संकेत मिलता हो कि अन्वीक्षणाधीन व्यक्ति को गिरफ्तारी में नहीं लिया गया तो न्याय के लक्ष्य विफल हो जायेगे तो न्यायालय को उसकी गिरफ्तारी निर्देशित करने का अन्तर्निहित अधिकार है। वर्तमान मामले में विद्वान मजिस्ट्रेट इस बात से संतुष्ट था कि अभियुक्त अभियोजन साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर रहा था और अपराध की पुनरावृति को रोकने के लिए विद्वान मजिस्ट्रेट अभियुक्त की पुनः गिरफ्तारी के लिए आदेश का अधिकारी था चाहे उसे जमानत के आदेश पर छोड़ा गया तो यह कोई उतर नहीं है कि विद्वान सत्र  न्यायाधीश ने जैसा कि कहा कि इस आशय का आवेदन पत्र सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय में दिया जाना चाहिये था क्योंकि यह न्यायालय तुरन्त आदेश देने के लिए आपात स्थिति में उपलब्ध नहीं होते चूंकि अभियुक्त को छोड़े हुए आठ महीने से अधिक बीत गये हैं इसलिए उसे पुनः अभिरक्षा में लेना वांछनीय नहीं होगा। क्योंकि धारा 167 पुलिस पर रिमाण्ड प्राप्त करने के 60 दिन के भीतर अनुसंधान करने का दायित्व डालती है और धारा 434 मजिस्ट्रेट पर 60 दिन के भीतर अन्वीक्षण पूर्ण करने को आवश्यक बताती है।

1 comment:

  1. देश की न्यायपालिका से मेरा यह यक्ष प्रश्न है कि जिन परिस्थितियों और जिस कानून के अंतर्गत देश का सर्वोच्च न्यायलय जमानत दे सकता है उन्हीं के अंतर्गत निचले न्यायालयों द्वारा जमानत क्यों नहीं दी जाती|

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