Monday 11 July 2011

आओ लोकतंत्र का नाटक खेलें .......

भारत में विगत कुछ समय से भ्रष्टाचार व काले धन के मुद्दे गरमा रहे हैं किन्तु मेरे विचार से जो बुनियादी प्रशासनिक एवं कानूनी ढांचा देश में उपलब्ध है उस ढांचे के भीतर इन समस्याओं के समाधान खोजना स्वयं को भ्रमित करने से अधिक नहीं है |संभवतया इन मुद्दों के लिए आगे आने वाले लोग इस बात को भूल रहे हैं कि देश की आज़ादी के बाद जो हमें सम्राज्यवादी ढांचा विरासत में मिला था हम अभी तक लोकतंत्र का स्वांग करते हुए उसी परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं जिसमें न तो लोक सेवकों पर कोई दायित्व डाला गया है और न ही उनके किसी अधिकार में कटौती कर नागिरकों के किसी अधिकार में कोई वृद्धि की गयी | सूचना के अधिकार जैसे कुछ कागजी अधिकार अवश्य मिले हैं जिसके अंतर्गत वर्ष भर से पहले सुनवाई नहीं होती और उसके बाद भी आपको कोई सूचना मिल जाये व लोक अधिकारी को कोई अर्थदण्ड मिल जाये और वह भुगतले तो आप उसे अपना सौभाग्य समझिए .मेरा निजी अनुभव है कि स्वयं सूचना आयोगों से समय पर व सटीक सूचनाएं और यहाँ तक कि दिए गए निर्णयों की फाइलें नहीं मिल पाती हैं. ऐसे सूचना आयोग अन्य लोक प्राधिकारियों की क्या जाँच कर सकते हैं जो अपना कार्यालय तक ढंग से संचालित नहीं कर पाते हैं .
वास्तव में भारत में तो न्याय की परिभाषा को खोजना ही मुश्किल है. मेरे मतानुसार (पूर्ण) न्याय का अर्थ यह होना चाहिए कि आपके साथ जो अन्यायपूर्ण घटना हुई आपको क्षतिपूर्ति आदि देकर ठीक उस स्थिति में पहुँचाया जाना चाहिए मानो कि आपके साथ वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना नहीं हुई होती तो आप होते और आपके (दीवानी या समाजिक) अधिकारों के हनन करने वाले दोषी को कम से कम इतना दण्ड अवश्य मिलना चाहिए की उसे देखने वाले वैसा कार्य करने को प्रेरित नहीं हों. इसी धारणा से समाज में स्थिरता और टिकाऊ व्यवस्था बनी रह सकती है .मैं इन पंक्तियों को किसी कल्पना के आधार पर नहीं लिख रहा हूँ बल्कि मैंने विदेशी कानूनों एवं वहाँ की न्यायिक व्यवस्था की जानकारी प्राप्त की है जिसके चयनित अंश मेरे ब्लॉग पर उपलब्ध हैं और उसके पश्चात ही उपरोक्त तथ्य उजागर करने का प्रयास कर रहा हूँ और आशा है वांछित शोध के उपरांत आप भी मेरी उक्त धारणा की पुष्टि करेंगे .

आपको ज्ञात होना चाहिए कि देश के आयकर अधिनियम की धारा १४२ में मात्र तीन वर्ष पुरानी आय के विषय में ही विवरण मांगे जा सकते हैं .अर्थात आपको येनकेन प्रकारेण अपने काले धन को तीन वर्ष तक छुपाये रखना है उसके पश्चात यदि उसका पता लग भी जाता है तो उसकी कोई जाँच नहीं हो सकती है. हमारे यहाँ काले धन को सफ़ेद बनाने के लिए समय समय पर बीयरर बोंड , स्वेच्छिक घोषणा जैसी कई योजनाएं निकलती रही हैं जिनमें बिना कोई कर चुकाए अथवा नाम मात्र का कर चुकाकर काले धन को सफ़ेद बनाने की सुविधा प्रदान की गयी .यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसी सरकारी योजनाओं को देश के न्यायालयों ने समर्थन देकर उन्हें वैध बताया है किन्तु नैतिकता के धरातल पर ये योजनायें कितनी खोखली हैं यह सब जानते हैं . समय पर ईमानदारी से कर भुगतान करने वाले नागरिक को यह सन्देश जाता है कि आपने कर नहीं बल्कि समय पर दण्ड का भुगतान किया और कर न भुगतान नहीं करने वाले आपसे ज्यादा मजे में है . इन योजनाओं से समय पर यह स्मरणीय है कि देश के कानूनों को राजनेताओं और धन्ना सेठों के अनुकूल बनाया जाता रहा है . ये लोग न केवल कानून को अपने अनुकूल बनवाने की कला में सिद्ध हस्त हैं बल्कि कानून को तोड़कर भी उससे बच निकलने के सभी गुप्त मार्ग जानते हैं और इन्हें दण्डित करवाने में सरकारी तंत्र कितना निष्ठावान है इस पर मैं टिप्पणी करना आवश्यक नहीं समझता- इतिहास साक्षी है .मात्र कुछ शक्ति संपन्न लोगों को दण्डित तो नाक मात्र बचाने के लिए किया जाता है .


दूसरा ज्वलंत मुद्दा भ्रष्टाचार से सम्बंधित है . इस प्रसंग में भी अहम बात यह है कि देश के कानून में अभी भ्रष्टाचार पद को परिभाषित तक नहीं किया गया है . वैसे शब्दकोष के अनुसार नैतिकता के रास्ते से भटकाव को भ्रष्टाचार कहा गया है .सामान्य जनता रिश्वत को भ्रष्टाचार का समानार्थी मानती है .पोलैंड के कानून में भ्रष्टाचार का दायरा बड़ा व्यापक है और इसमें निम्नांकित शामिल है :



“स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के लिए एक सार्वजनिक कार्य करने या कार्य करने में चूक के लिए बदले में या अपने दायित्व के उल्लंघन में कार्य करना जो सामजिक रूप से भर्त्सनीय हो के बदले में किन्हीं व्यक्तियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी भी अनुचित लाभ देना, वादा करना या प्रस्ताव करना, स्वीकार करना.”

देश में यदि लोकपाल का गठन हो भी गया तो यह कैसे सुनिश्चित होगा कि वह निष्पक्ष और निडर होगा, जाँच निष्पक्ष होगी और अंततोगत्वा दोषी दण्डित हो जायेगा. मेरा भारतवासियों से एक प्रश्न है कि हमें भारतीय क्रिकेट कोच की क्षमता या निष्ठा पर विश्वास नहीं और हम विदेशी कोच रखते हैं तो देश में विश्वसनीय लोकपाल कैसे मिल सकेगा .राजस्थान में एक वर्ष में भ्रष्टाचार निरोधक विभाग को ४१३ शिकायतें प्राप्त हुई जिनमें से मात्र ३ एफ आई आरें दर्ज हुई जिनमें से भी मात्र २ मामलों में आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया और उसमें से भी एक मामले में स्थगन हो गया .भ्रष्टाचार देश के लिए इसलिए समस्या है कि समय पर और उचित जाँच नहीं होती व अपराधियों के अनुकूल, जटिल व विलम्बकारी न्यायिक प्रक्रिया के कारण दोषी दण्ड से बच जाते हैं . मैंने एक जिले के आंकड़ों का अध्ययन किया जिसमें सामने आया कि दोष सिद्ध हुए मामलों का पुलिस द्वारा वर्ष भर में दर्ज एफ आई आरों से मात्र १.५% का अनुपात था .मेरे विचार से शेष भारतवर्ष की औसत स्थिति भी ज्यादा भिन्न नहीं होगी .यह मान भी लिया जाय की लोकपाल निष्ठापूर्वक जाँच करेगा तो भी वर्तमान न्यायिक ढांचे में दोष सिद्धि की संभावनाओं का आकलन पाठक स्वयं कर सकते हैं .विद्यमान भ्रष्टाचार कानून की धारा १९ (३ )में प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही को स्थगित नहीं करेगा और दिसंबर २०१० में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रशासनिक आदेश जारी किया है कि भ्रष्टाचार सम्बंधित मामलों को ( हाई कोर्ट तक )फास्ट ट्रैक मामले समझा जावे . इनकी अनुपालना और अनुपालना न करने वालों पर की गयी कारवाही को आप सभी देख रहे हैं .
अतः मेरा स्पष्ट विचार है कि जब तक लोक सेवकों का दायित्व निर्धारित कर न्यायपालिका में मौलिक सुधार कर उसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों तक नहीं लाया जाता तब तक ये सभी सुधार दिखावटी और सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने वाले बने रहेंगे . मेरा समस्त भारतीयों से यह आह्वान है कि वे जागें, दिग्भ्रमित न हों और इस दिशा में स्वतंत्र चिंतन करें और मेरे चिंतन में कोई दोष प्रकट हो तो उसका सुधार कर भारत को आगे बढ़ाएँ .
जय हिंद

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