Saturday 30 July 2011

दोषपूर्ण अनुसन्धान

सुप्रीम कोर्ट ने नवीनचन्द्र मजीठिया बनाम मेघालय राज्य (2001 क्रि.ला.रि. सु0को0 43) में कहा है कि संहिता निजी अनुसंधान एजेन्सी को मान्यता नहीं देती है। यदि कोई व्यक्ति ऐसी निजी एजेन्सी को किराये पर लेना चाहे तो वह अपनी निजी जोखिम व खर्चे पर कर सकता है किन्तु ऐसे अनुसंधान को कानून के अन्तर्गत अनुसंधान के रूप में मान्यता नहीं दी जायेगी। फिर भी बचाव द्वारा इस प्रकार का साक्ष्य प्रस्तुत किया जा सकता है। पुलिस अनुसंधान आवश्यक रूप से राज्य द्वारा उपलब्ध कराये गये धन से सम्पन्न होने चाहिए। एक धनवान शिकायतकर्ता द्वारा अपनी शिकायत में पुलिस को धन देकर अनुसंधान करवाया जाना संभव है। लेकिन एक गरीब व्यक्ति पुलिस को वितीय सहायता उपलब्ध नहीं करवा सकता। यह स्वीकृत वास्तविकता है कि जो बांसुरी के लिए चुकाता है वही आवाज निकालता है। इसके समान ही अर्थ यह है कि जो कोई खर्चे चुकाता है सामान्यतया इसका नियंत्रण भी रखेगा। हमारी संवैधानिक योजना में पुलिस और अन्य सांविधिक अनुसंधान एजेन्सियों को ऐसे व्यक्ति का भाड़े का टट्टू बनाना अनुमत नहीं है जो इसे वहन कर सकता हो। समस्त शिकायतें शिकायतकर्ता की वितीय स्थिति पर बिना ध्यान दिये समान रूप से सप्रसन्नता तथा समान सफाई से अनुसंधान की जायेगी। {अक्सर पुलिस अनुसन्धान के लिए वहाँ आदि साधनों की मान करती है उसी परिपेक्ष्य में यह निर्णय है }
सुप्रीम कोर्ट ने करनेल सिंह बनाम मध्यप्रदेश राज्य (एआईआर 1995 एस सी 2472) में कहा है कि हमें स्वीकार करना चाहिए कि दोषपूर्ण अनुसंधान हमें चिन्तित क्षण दिये तथा यह सोचने पर कि अभियुक्त को पूर्वाग्रसित किया गया है हम लाल पीले हो गये । किन्तु नजदीक से संवीक्षा करने पर हम यह सोचने के लिए कारण पाते हैं कि अनुसंधान में बेचारे श्रमिक की कीमत  पर अभियोजन ने अभियुक्त को बचाने के लिए छिद्र छोड़ दिये। मात्र इसी आधार पर दोषमुक्त करना पीड़ित की पीड़ा में और वृद्धि करना होगा।

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