Friday 22 July 2011

गलती और हानि के लिए कानून में इलाज होना ही चाहिए

सुप्रीम कोर्ट द्वारा एम.पी. द्विवेदी के अवमान प्रकरण (1996 क्रि.ला.ज. 1670) में यह बल दिया गया है कि हम घोषित कर निर्देश देते तथा नियम बनाते है कि कैदी के, जब उसे किसी कारागार में देश में कहीं रखा जाये या ले जाया जावे या एक जेल से दूसरे जेल या न्यायालय से जेल या वापिस ले जाया जाये, हथकड़ियां तथा बेड़ियां नहीं लगाई जायेगी चाहे वह दोष सिद्ध हो अथवा अन्वीक्षणाधीन । पुलिस और जेल अधिकारियों को देश में जेल में या परिवहन में अपने आप में हथकड़ी लगाने का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं होगा। हमारे द्वारा जारी इन निर्देशों का किसी भी पुलिस या जेल के किसी भी पदधारी द्वारा उल्लंघन सारांशिक रूप में न्यायालय अवमान अधिनियम के अन्तर्गत दाण्डिक कानून के अतिरिक्त दण्डनीय होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने डी.के. बासु बनाम प0 बंगाल राज्य (1997 एससीसी 426) में पुनः कहा है कि गिरफ्तार व्यक्ति को पूछताछ के दौरान, यद्यपि सम्पूर्ण के दौरान नहीं, अपने वकील से मिलने दिया जाये अन्यथा उसे न्यायालय के अवमान के लिए दोषी ठहराया जावेगा और अवमान की कार्यवाही स्थानीय क्षेत्राधिकार वाले किसी भी उच्च न्यायालय में संस्थित की जा सकेगी। एक कानूनी न्यायालय अपनी चेतना एवं जीवन्तता को वास्तविकता से बन्द नहीं कर सकता। मात्र अपराधी को दण्ड पीड़ित परिवार को कोई ज्यादा सांत्वना नहीं दे सकता। कोई भी गलती बिना इलाज नहीं है। क्षतिपूर्ति के लिए सिविल कार्यवाही एक लम्बी एवं जटिल न्यायिक प्रक्रिया है। ऐसे परिवार जिसका कि रोजी रोटी कमाने वाले परिवार का सदस्य मृत्यु को प्राप्त हो गया हो तो मौद्रिक क्षतिपूर्ति द्वारा न्यायालय द्वारा नागरिक के जीवन के अविच्छिन्न अधिकार के हनन के लिए प्रदानगी उसके घावों पर मरहम लगाने के समान है । कानून चाहता है कि प्रत्येक मामले में जहां एक व्यक्ति ने गलती की है और हानि पहुंचाई है वहां इलाज हो। एक व्यक्ति जिसके जीवन का मूल अधिकार किसी कार्यवाही या अभिरक्षकीय हिंसा या लॉकअप में मृत्यु से कोई अर्थपूर्ण उपचार नहीं देती है किन्तु काफी कुछ करने की आवश्यकता है ।प्रत्येक अपराध की दशा में अपराधी का अभियोजन राज्य का कर्तव्य है लेकिन अपराध के शिकार को मौद्रिक प्रतिपूर्ति करना भी आवश्यक है। जहां मूल अधिकारों का हनन हुआ हो वहां न्यायालय मात्र घोषणा करके नहीं रूक सकता। गलत किये हुए की मरम्मत व कानूनी क्षति के न्यायिक उपचार दोनों न्यायिक अन्तरात्मा की विवशता है ।

1 comment:

  1. आप ने तीसरा खंबा की पोस्ट कब्जा सच्चा दावा झूठा पर अपनी टिप्पणी छोड़ी है। आप का ई-मेल पता न होने से उस का उत्तर यहाँ छोड़ा जा रहा है। कृपया संपर्क बनाए रखें। विधि के क्षेत्र में सामाजिक कार्य करने की बहुत आवश्यकता है।

    आप की बात सही है। लेकिन स्वामित्व का प्राथमिक साक्ष्य तो वस्तु का आधिपत्य ही है। आप बाजार से सब्जी ले कर घर आ रहे हैं। थैला आप के पास है तो प्राथमिक रूप से आप को ही उस का स्वामी माना जाएगा। यदि कोई कहता है कि थैला और सब्जी उस के स्वामित्व की है तो उसे यह साबित करना पड़ेगा कि ऐसा है। आप उस के स्वामित्व को झुठला सकते हैं और सब्जीवाले की साक्ष्य तथा थैला आप की होने की साक्ष्य के आधार पर उसे अपना साबित कर सकते हैं। ठीक ऐसा ही अचल संपत्ति के बारे में है।

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