Thursday 21 July 2011

पुलिस आचरण एवं गिरफ़्तारी

राजस्थान पुलिस नियम १९६५ के नियम ६.१२ में उल्लेख है कि प्रत्येक मामले में सभी आदेश लिखित रूप में जारी किये जायेंगे जैसे गिरफ़्तारी का आदेश , तलाशी का आदेश, समन करके बुलाने का आदेश इत्यादि व उनको केस डायरी के साथ नत्थी किया जायेगा या उसकी अनुपस्थिति के कारणों का संतोषजनक रिकार्ड रखा जाएगा , किन्तु व्यवहार में पुलिस ये सभी कार्य बिना रिकार्ड के ही करती है और जनतांत्रिक कानूनों का न्यायालयों  के सामने खुला उपहास करती रहती है जिससे यह आभास मिलता है मानो न्यायालय पुलिस से ऊपर नहीं है अपितु पुलिस न्यायालय से ऊपर है, पुलिस के इन दुराचरणों का न्यायालय यह कहकर बचाव करते रहते हैं कि ये प्रक्रियागत नियम निदेशात्मक हैं आदेशात्मक प्रकृति के नहीं हैं जिनकी अनुपालना अनिवार्य नहीं है|
सुप्रीम कोर्ट ने जोगिन्दर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1994 एआईआर एस सी 1349) में कहा है कि कोई भी गिरफ्तारी महज इसलिए नहीं की जा सकती कि ऐसा करना पुलिस अधिकारी के लिए विधिपूर्ण है। एक व्यक्ति की गिरफ्तारी एवं पुलिस लॉक अप में निरूद्धीकरण उसकी ख्याति एवं आत्मसम्मान को अगणित हानि पहुंचाती है। किसी व्यक्ति के विरूद्ध अपराध करने के आरोप मात्र के कारण कोई गिरफ्तारी दैनन्दिक रूप में नहीं की जा सकती। एक पुलिस अधिकारी के लिए यह बुद्धिमतापूर्ण एवं उसके स्वयं के हित तथा नागरिक के संवैधानिक हित संरक्षण में होगा कि एक शिकायत की सद्भाविकता एवं सत्यता की जांच के पश्चात स्वयं तर्कसंगत संतुष्टि  और गिरफ्तारी की आवश्यकता और व्यक्ति की संलिप्तता के विषय में एक तर्क संगत विश्वास के बिना कोई गिरफ्तारी न करे । गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के तर्कसंगत विचार में ऐसी गिरफ्तारी आवश्यक एवं न्यायोचित होनी चाहिए। यदि पुलिस का एक अधिकारी एक व्यक्ति को पुलिस थाने उपस्थित होने तथा उसकी अनुमति के बिना स्थान नहीं छोड़ने का नोटिस देता है तो चलेगा, जधन्य अपराध को छोड़कर गिरफ्तारी टाली जानी चाहिए। डायरी में इस बात की प्रविष्टि की जावेगी कि गिरफ्तारी के विषय में किसे सूचित किया गया। ये सुरक्षार्थ शक्तियां  अनुच्छेद 21 तथा 22 (1) से उपलब्ध होगी तथा कड़ाई से अनुपालना की जावेगी। यह मजिस्ट्रेट का कर्त्तव्य होगा जिसके समक्ष गिरफ्तार व्यक्ति को प्रस्तुत किया जावे कि वह संतुष्ट हो कि इन आवश्यकताओं की अनुपालना की गई है।
बम्बई उच्च न्यायालय ने क्रिश्चीयन कम्यूनिटी वेलफेयर काऊंसिल बनाम महाराष्ट्र सरकार (1995 क्रि.ला.ज. 4223 बम्बई) में आगे स्पष्ट  किया है कि प्रत्येक तीसरे दिन निरूद्ध व्यक्ति की डाक्टरी जांच करवायी जानी चाहिए तथा ऐसी जांच रिपोर्ट पुलिस थाने की डायरी में दर्ज होनी चाहिए। यदि बन्दी व्यक्ति शिकायत लिखने के लिए कागज पेन मांगता है तो पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराये जाने चाहिए। पुलिस थाने के प्रभारी को इस प्रकार शिकायतकर्ता बन्दी को मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत सहित प्रस्तुत करना चाहिए और सम्बन्धित मजिस्ट्रेट की गई शिकायत के मद्देनजर डॉक्टरी जांच, इलाज, सहायता जैसी न्यायोचित हो के लिए समुचित आदेश पारित करेगा। किसी भी महिला को महिला पुलिस की उपस्थिति बिना गिरफ्तार नहीं किया जावेगा और किसी भी स्थिति में सूर्यास्त के बाद व सूर्यास्त से पूर्व नहीं।

1 comment:

  1. सराहनीय प्रयास

    क्यों नहीं इस ब्लॉग को ब्लॉग गर्व में शामिल करवाते?

    देखिएगा http://bloggarv.com/

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