प्रतिष्ठा में,
श्री
राधा
कृष्ण
माथुर
मुख्य सूचना आयुक्त
केन्द्रीय सूचना
आयोग
नई दिल्ली
मान्यवर,
विषय
: परिवाद
संख्या CIC/RM/C/2014/900226–
मनीराम
शर्मा बनाम
राष्ट्रपति सचिवालय व इसी प्रकार
निर्णित अन्य
प्रकरण
उक्त
प्रकरण में
आपके निर्णय
दिनांक 02.06.2016
के लिए
मैं आपको
धन्यवाद देता
हूँ| आपके
उक्त निर्णय
के प्रकाशन
से मुझे
माननीय आयोग
के
उक्त निर्णय
का ज्ञान
हुआ किन्तु
इस प्रसंग
में मेरा
विचार
किंचित
भिन्न
है|
हमारे
पवित्र संविधान
के
अनुच्छेद 51क
(एच )में
नागरिकों का
यह
मूल
कर्तव्य
बताया
गया
है कि
वे
वैज्ञानिक
दृष्टिकोण,
मानव वाद
और ज्ञानार्जन
तथा सुधार
की
भावना
का विकास
करे| इसी
प्रकार अनुच्छेद
51 क (जे
) में कहा
गया है
कि नागरिक
व्यक्तिगत
और
सामूहिक
गतिविधियों
के
सभी क्षेत्रों
में उत्कर्ष
की ओर
बढ़ने का
सतत प्रयास
करें जिससे
राष्ट्र निरंतर
बढ़ते हुए
प्रयत्न और
उपलब्धि
की
नई
ऊंचाइयों
को
छू
ले|
उक्त प्रावधानों
ने
मुझे आपको
यह
पत्र
लिखने
को
प्रेरित
किया है|
आप द्वारा
यह
पत्र
पढने
के
लिए
अपने
अमूल्य समय
में
से
समय निकालने
के
लिये
अग्रिम धन्यवाद
|
माननीय आयोग
के
उक्त निर्णय
का सम्मान
करते हुए
मेरे विचार
इस प्रकार
हैं:
1. यह
है
कि आपने
अपने निर्णय
के बिंदु
5 में मुझ
पर
यह आरोप
लगाया
है
कि मैंने
विभिन्न प्राधिकारियों
के
समक्ष
कई याचिकाएं
दायर
की हैं
और
मैं कभी
भी
सुनवाई
में उपस्थित
नहीं हुआ हूँ
| आगे आपने
यह भी लिखा
है
कि
मेरा
प्रकरण
दर्ज किये
जाने
से पूर्व परिचय प्रमाण मांगा
जाए |
2. यह
है
कि
सूचना
का अधिकार मेरा मौलिक अधिकार है
और
आपको
यह स्मरण रखना चाहिए कि इसमें आप सहित किसी भी प्राधिकारी को कोई प्रतिबन्ध लगाने
की
कोई
शक्ति
प्राप्त नहीं है
|
3. यह
है
कि
नियमों
में
कहीं
भी आयोग
के
समक्ष सुनवाई
में
उपस्थित
होना
बाध्यकारी नहीं है और एक
आयुक्त के
लिए उचित
यही है कि
वह
पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के
अनुसार
निर्णय
करे और अनुपस्थित
पक्षकार
पर
कोई प्रतिकूल टिपण्णी करने
में
अनावश्यक समय
व
ऊर्जा बर्बाद नहीं
करे | एक आयुक्त की शक्तियां अधिनियम में
परिभाषित हैं
और
उसको
भावावेश में
आकर
याची
की
अनुपस्थिति में उस पर प्रतिकूल टिप्पणियाँ करने का अधिनियम में
कोई
प्रावधान नहीं है
|
4. यह है कि मैं प्रकरण CIC/RM/C/2014/900153 में दिनांक 25.02.2016 को
उपस्थित
होने के
अतिरिक्त कई प्रकरणों में
आपके समक्ष
ही उपस्थित होकर अपना पक्ष रख
चुका
हूँ
तदनुसार
आपका आरोप बेबुनियाद
, मिथ्या
व
निराधार
है |
5. यह
है
कि जब
लिखित
में
प्रमाणित
दस्तावेज के
रूप में
प्रमाणिक
साक्ष्य
उपलब्ध हो
और उसकी
भी
यदि
उपेक्षा की
जाए
तो
फिर
मौखिक
साक्ष्य,
जिसका कोई
प्रमाण
नहीं
हो
, से क्या
लाभ
संभव
था
और
तदनुसार
मेरे उपस्थित
होने या
न होने
से भी
कोई
अंतर
नहीं
होता
– ऐसी मेरी
मान्यता है|
कदाचित उसे
आप जैसे
सुनवाई
करने
वाले
अधिकारियों का
पूर्वानुमान
होने
पर
निराशा
अवश्य हो
सकती
है
|
6.
यह है
कि आयोग
को अधिनियम
में कहीं
भी कोई
विवेकाधिकार प्राप्त
नहीं है
और न
ही कोई
कानून बनाने
का अधिकार
है | याचिका दायर करने
व उसके
पंजीकरण
के सम्बन्ध में
सरकार
ने नियम बना रखे
हैं
और
इन नियमों के
अनुसार
कोई
भी याचिका दायर कर सकता है व आयोग को इन नियमों के
अतिरिक्त किसी भी
अन्य
औपचारिकता की पूर्ति की अपेक्षा करने
का
कोई अधिकार नहीं है
| इस प्रकार आपने
अपने पद के
मद
में लक्ष्मण रेखा लांघ
दी है और एक स्वयम्भू तानाशाह होने
का
परिचय
दिया
है |
7.
यह
है
कि आपसे
मात्र परिवाद
के
परीक्षण की
अपेक्षा की
गयी थी
न
कि परिवादी
या
उसके चरित्र
की | स्मरण रहे
आपकी
नियुक्ति भी
याचिकाओं के
परीक्षण
के लिए
की
गयी है| परिवादी
ने
आपसे चरित्र
प्रमाण
पत्र
की
भी
अपेक्षा नहीं
की थी|
कानून भी
आपको मात्र
परिवाद
परीक्षा की
अनुमति देता
है और
उसमें परिवादी
के
चरित्र सत्यापन
के
लिए
अधिकृत नहीं
किया
गया
है | इस
प्रकार आपने
अपनी
अधिकारिता को पार
कर दिया
है
और पद
के
दुरूपयोग
की
पराकाष्ठा
पार
कर
दी
है |
8.
यह है
कि आपकी
पृष्ठभूमि
को देखते
हुए आपसे
एक अच्छे
विधि सम्मत
निर्णय की
अपेक्षा की
जा
सकती
है किन्तु
आपका उक्त
निर्णय
स्पष्टतया
पद
के
मद में
दिया हुआ
है और
उसमें अनियंत्रित
राजतंत्र की
बू आती
है| इन
परिस्थितियों
में
आपके मानसिक
स्वास्थ्य
पर
संदेह
होना
भी
स्वाभाविक
है |
9.
यह है
कि आपके
विधिक ज्ञान
को देखते
हुए आप
दया के
पात्र लगते
हैं |
न्यायिक
अपेक्षा है
कि अनुपस्थित
पक्षकार के
हित का
ध्यान
रखे और
न्यायिक अनुशासन
के अनुसार
अनुपस्थित पक्षकार
के विषय
में कोई
प्रतिकूल टिप्पणियाँ
नहीं
की
जानी
चाहिए
क्योंकि
वह
उनका
समुचित
जवाब
देने
के
लिए
उपस्थित
नहीं
है
| किन्तु आपने
तो इन
मौलिक
बातों
की
भी
अनुपालना नहीं
की
है
जिनकी
अपेक्षा
एक
सामान्य
बुद्धिवाले व्यक्ति
से
की
जा
सके | निश्चित
रूप से
आपने इस
गरिमामयी पद
के लिए
योग्यता खो
दी
है और
आपको
अविलम्ब त्यागपत्र
दे
देना
चाहिए|
आपने अपना
पद
ग्रहण करते
समय
ली
गयी
– भय, लालच
, राग- द्वेष के
बिना निर्णय
करने की
– शपथ का
भी
जानबूझकर
उल्लंघन
किया
है|
10. यह
है
कि मैं
सरकार से
अपेक्षा करूंगा
कि आपको
किसी
अच्छे लोकतांत्रिक
देश
में
प्रशिक्षण
के
लिए
भेजा
जाए
और पुन:
मानसिक परीक्षण करवाया
जावे कि
क्या
आप अभी
भी
नागरिकों
के
लिए
कोई
उपयोगिता
रखते
हैं| साथ
ही इस
पत्र की
एक प्रति
संचार माध्यमों
को
प्रसारित
की
जा
रही
है
ताकि देश
के लोग
आयोग
की वास्तविकता
को
जान
सकें
और आपको
भी
उचित
सम्मान
मिले
जिसके
आप हक़दार
हैं |
उपरोक्त
परिस्थितियों
और तथ्यों
के सन्दर्भ
में माननीय
आयोग का
उक्त निर्णय
मेरी
विनम्र
राय
में
संविधान और
जनतांत्रिक मूल्यों
के
अनुकूल नहीं
है| मैं
यहाँ पर
यह
भी
निवेदन
करना
प्रासंगिक
समझता
हूँ कि
प्रत्येक
शक्ति के
प्रयोग का
आधार जनहित
प्रोन्नति
होना चाहिए
विशेषतः जब
यह अहम
प्रश्न
सूचना
के
मौलिक
अधिकार
के
संरक्षक के
सामने हो|
माननीय आयोग
के
उक्त निर्णय
के विरुद्ध
रिट
भी
दायर की
जा
सकती
है किन्तु
वह भी
एक
अंतहीन, खर्चीली
और जटिल
व
थकाने
वाली प्रक्रिया
होगी| माननीय
आयोग उदार
हृदय से
आत्मावलोकन कर
इस
प्रकरण
में
स्वप्रेरणा से
चूक
सुधार कर
पूर्ण
और वास्तविक
न्याय
देने
के
लिए सशक्त
है| भारतीय
गणतंत्र को
मज़बूत बनाने
की ईश्वर
आपको सदैव
सद्प्रेरणा
देते
रहें| इसी
आशा
और
विश्वास
के
साथ ,
आपका
सदैव
शुभेच्छु
मनीराम
शर्मा
अध्यक्ष,
इंडियन नेशनल
बार एसोसिएशन
, चुरू प्रसंग
रोडवेज
डिपो के
पीछे
सरदारशहर 331403 दिनांक:19.07
.2016