Wednesday 18 May 2011

प्रत्यायोजित विधायन


सुप्रीम कोर्ट ने ए.के. रॉय बनाम पंजाब राज्य (एआईआर 1986 सु.को.2160) में कहा है कि जहंा कहीं कोई षक्ति कुछ करने के लिए निष्चित तरीके से सौंपी जाती है तो वह उसी तरीके से किया जाना चाहिए अन्यथा बिल्कुल नहीं। निश्पादन के अन्य तरीकों की निष्चित रूप से मनाही है। धारा 20 (1) अधिनियमित करने का विधायिका का उद्देष्य अधिकारियों द्वारा निर्धारित तरीके से षक्ति प्रयुक्त करने के लिए था और अन्यथा नहीं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वी.डी. भास्कर बनाम महाप्रबन्धक उत्तर रेल्वे (1998 (3) ए.डब्ल्यू.सी. 2035) में कहा है कि परिणामस्वरूप ट्राईब्यूनल को अधिनस्थ विधायन एवं नियमों की वैधता जांचने की षक्ति होगी। फिर भी ट्राईब्यूनल की यह षक्ति एक महत्वपूर्ण अपवाद के अधीन होगी। ट्राईब्यूनल मूल कानून की वैधता का प्रष्न व्यवहृत नहीं करेगी इस सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए कि जिस कानून के अन्तर्गत ट्राईब्यूनल का गठन हुआ है उस कानून को ही असंवैधानिक नहीं ठहरा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान राज्य बनाम बसंत नाहटा प्रकरण के निर्णय दिनांक 07.09.05 में कहा है कि जब संविधान संसद या राज्य विधायिका को विधायन का कर्त्तव्य सौंपता है तो स्वगर्भित है कि यह दायित्व अन्य के कन्धे पर डालने से मना करता है। नागरिकों के अधिकारों से संव्यवहार करने वाला कानून स्पश्ट और साफ होना चाहिए। जहां कहीं भी जननीति की अवधारणा की व्याख्या करनी हो तो यह न्यायपालिका को करना है तथा इसकी भी न्यायपालिका की षक्ति अत्यन्त सीमित है। विधायिका के आवष्कीय कार्य आगे नहीं सौंपे जा सकते और संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 246 की स्पृषता में विनिष्चय किया जाना है। इस प्रकार केवल अनुशंगी और प्रक्रियागत षक्तियां ही सौंपी जा सकती है और आवष्कीय विधायी बिन्दु नहीं। यह तर्क भी गुणहीन है कि नीतिगत निर्णय में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करेगा। विधायी नीति संवैधानिक समादेष के प्रावधानों से मेल खानी चाहिए। अन्यथा नीतिगत निर्णय भी न्यायिक पुनर्विलोकन के अधीन हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने एषोसियेटेड सीमेन्ट क.लि. बनाम पी.एन. षर्मा (1965 एआईआर 1595) में कहा है कि विषेश मामले और प्रष्न (ट्राईब्यूनल) उनको उन्हें निर्णयार्थ सौंपे जाते हैं और इस अर्थ में उनकी एक विषेशता न्यायालयों से मिलती है। न्यायालय और ट्राईब्यूनल सरकार द्वारा स्थापित किये जाते हैं और विषुद्धरूप से प्रषासनिक या कार्यपालकीय कार्यों से अलग न्यायिक कार्य से विनियोजित होते हैं। एक ट्राईब्यूनल होने के लिए आवष्यक है कि निर्णयन षक्ति कानून या कानूनी नियम से ली जानी चाहिए।

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