Friday 2 May 2014

नरेंद्र मोदी से आशाएं और अपेक्षाएं

समय समय पर जन सम्बोधनों में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने सुशासन के दावे व वादे करते रहते हैं किन्तु वास्तविकता का इनको कितना ज्ञान है, लेखक कहने में असमर्थ है| इनके सुशासन व जनप्रिय सरकार के मैं कुच्छेक नमूने उजागर करना चाहता हूँ| गुजरात राज्य में भी अभी भी अंग्रेजों की बनायी गई भारतीय दंड संहिता, 1860 व दंड प्रक्रिया संहिता लागू है| ये कानून अंग्रेजों ने 1857 की प्रथम क्रांति  के बाद उपजी परिस्थितियों को देखते हुए बनाए थे| निश्चित रूप से इन कानूनों में जनता का दमनकर राजसता में बने रहने की पुख्ता व्यवस्था की गयी थी, जो स्वतंत्र भारत के लिए किसी भी प्रकार से उपयुक्त नहीं हो सकती| यदि यही अंग्रेजी कानून और न्याय-व्यवस्था हमारे लिए उपयुक्त थी तो फिर हमें स्वतंत्रता की क्या आवश्यकता थी| भारतीय संविधान के अनुसार न्याय-व्यवस्था राज्यों का विषय है, जिस पर कानून बनाने के लिए स्वयं राज्य सक्षम हैं|
भ्रान्तिवश मोदी सरकार को विकासोन्मुखी समझते हुए उक्त कानूनों में आमूलचूल परिवर्तन करने के लिए लेखक ने दिनांक 18.02.12 को स्पीड पोस्ट से मोदी सरकार को एक पत्र लिखा था जो इनके कार्यालय को दिनांक 21.02.12 को प्राप्त हो गया| दिनांक 14.03.12 को सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक आवेदन कर लेखक के उक्त पत्र पर मोदी सरकार द्वारा की गयी कार्यवाही की जानकारी चाही, किन्तु उसे कोई जानकारी आज तक नहीं मिली है| लेखक को यह कहते हुए अफ़सोस है कि उक्त पत्र का मुख्यमंत्री कार्यालय में कोई अता-पता तक नहीं चला और उलटे मुख्यमंत्री कार्यालय जैसे जागरूक और जिम्मेदार कार्यालय से लेखक के पास फोन आये कि यह पत्र किसे व कब भेजा था?
पुन: दिनांक 16.06.13 को लेखक ने भारतीय दंड संहिता, 1860 व दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन हेतु गुजरात के राज्यपाल महोदय को निवेदन किया जिन्होंने पत्रांक जी.एस.13.26/61/6340/2013 दिनांक 11.10.13 द्वारा यह पत्र गृह विभाग को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेज दिया| लेखक ने दिनांक 29.10.13 को सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक आवेदन कर पूर्व पत्र दिनांक 18.02.12 व उक्त पत्र दिनांक 16.06.13 पर की गयी कार्यवाही तथा गुजरात सरकार के अधिकारियों के उपलब्ध ईमेल पतों की जानकारी चाही, किन्तु गृह विभाग ने पुन: अपने पत्रांक वीएसऍफ़ /102013/आरटीआई-161/डी  दिनांक 05.12.13 से यही लिखा कि उक्त पत्र उनके यहाँ उपलब्ध नहीं| अत: लेखक अपने पत्र की प्रति भेजे| लेखक ने गृह विभाग की इस अनुचित अपेक्षा की भी पूर्ति की|
भारतीय दंड संहिता, 1860 व दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन करना गृह विभाग के क्षेत्राधिकार में है, किन्तु गृह विभाग द्वारा पत्रांक वीएसऍफ़ /102013/आरटीआई-161/डी दिनांक 02.01.14 से उक्त पत्र दिनांक 16.06.13 को आश्चर्यजनक रूप से पुलिस महानिदेशक कार्यालय को भेज दिया गया, जिससे यह परिलक्षित होता है कि गुजरात सरकार को पुलिस चला रही है, इसमें जन प्रतिनिधियों की कोई भूमिका नहीं है अथवा गुजरात में जनतंत्र नहीं अपितु पुलिसराज कायम है|
क्या गुजरात राज्य में भारतीय दंड संहिता, 1860 व दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन करने का अधिकार पुलिस महानिदेशक में निहित है? पाठकों को स्मरण होगा कि नडियाद (गुजरात)  में मजिस्ट्रेट को ज़बरदस्ती शराब पिलाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने लगभग 23 वर्ष पहले टिप्पणी की थी कि गुजरात में सरकार पर पुलिस हावी है, आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है, और पुलिस की सहमति के बिना सरकार कोई भी कानून बनाने में समर्थ नहीं है| ठीक इसी प्रकार अहमदाबाद के ही मजिस्ट्रेट पर 10 वर्ष पूर्व आरोप लगे थी 40000 रुपये के बदले भारत के मुख्य न्यायाधीश व राष्ट्रपति 4 प्रमुख व्यक्तियों के विरुद्ध फर्जी मामले में वारंट जारी किये|
मोदी सरकार के अधिकारियों के ई-मेल पते इन्टरनेट पर उपलब्ध नहीं हैं और लेखक के उक्त आवेदन दिनांक 29.10.13 के बिंदु 3(3) में मांगने पर भी अवर सचिव, गृह विभाग ने ये उपलब्ध नहीं करवाए हैं| इससे यह प्रमाणित है कि गुजरात सरकार में नौकरशाही ने राजतंत्र की एक मोटी अभेद्य दीवार बना रखी, जिसमें से लोकतंत्र की कोई हवा भी नहीं आ सकती है| मोदी सरकार पूरी तरह से अपारदर्शी ढंग से संचालित है और गुजरात का जो आर्थिक विकास हुआ है उसमें उसकी भौगोलिक परिस्थितियाँ और नागरिकों की कर्मठता का ही योगदान है मोदी सरकार की वास्तव में कोई सक्रिय भूमिका नहीं है|
पाठक अनुमान लगा सकते हैं कि मोदी के ज़रिए किए जाने वाले सुशासन के दावे और वादे कितने खोखले हैं| उनके कार्यपालक जनता से प्राप्त पत्रों को फ़ुटबाल के दक्ष खिलाड़ी की भांति ठोकरें मारकर इधर-उधर भेजते रहते हैं, समय व्यतीत करते हैं  और उन पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं करते हैं| चाहें तो इन्हें ऊँचे वेतन पर रखे हुए डाकिये कह सकते हैं जो डाक को अनावश्यक इधर-उधर करते रहते हैं|
लेखक ने हाल ही दिनांक 04.01.14 को  मोदी को एक और व्यक्तिगत पत्र लिखकर रजिस्टर्ड डाक से भेजते हुए न्यायव्यस्था में सुधार करने का परामर्श दिया है -शायद मोदी जी को पढ़ने को भी नहीं मिला होगा और यदि मिल गया हो तो भी उस पर कोई ठोस कार्यवाही होना संदिग्ध है, क्योंकि उसे भी पुलिस महानिदेशक या उच्च न्यायालय को भेजकर अब तक उनके अधिकारियों ने अपने पुनीत कर्तव्य की इतिश्री कर ली होगी|

सत्ता हथियाने के लिए देश में विभिन्न राजनैतिक दल समय-समय पर अपनी चाल-चरित्र भिन्न होने का दावा करते रहते हैं| किन्तु ऐसा नहीं है यह हाल सिर्फ मोदी सरकार के ही हैं| लेखक ने ऐसे ही पत्र और सूचनार्थ आवेदन विभिन्न दलों की विभिन्न राज्य सरकारों को भेजे हैं किन्तु सभी के परिणाम एक जैसे ही हैं| जनता को सतर्क और सावधान रहना चाहिए कि भारत में सभी राजनैतिक दल किसी दलदल से कम नहीं हैं| 



6 comments:

  1. (१) अहमदाबाद में २४ घण्टे पानी मिलना अपनी आँखों से देखा है। (२) चौडे नये रास्ते देखें हैं। (३) गुजरात राज्य की सडकें जो नगरो नगरों को जोडती है, सुधारी गयी है; इतनी कि, जब राजस्थान में बस प्रवेश कर गयी, तो, बस धीमी चलानी पडने लगी। (४) सौर ऊर्जा की छतें नर्मदा की नहर पर लगी है। ऊर्जा से बिजली उत्पादित की जाती है। (५) नॅनो को ३ दिन में व्यवस्था प्रदान की गयी थीं। ....... आप की बात से लगता है, कि, जो प्रबंध करनेवाले हैं, वे, मोदी जी तक संदेश पहुंचने नहीं देते। (६) २००२ (गोध्रा) के बाद, उनके पीछे केंद्र भी पडा हुआ है। बंदा २० से अधिक घंटे काम करता है। -----कुछ सहानुभूति रखिए, और जानिए, कि, लोकतंत्र सदा धीमा ही होता है।

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    1. सरकार का पहला काम कानून व्यवस्था और लोगों की सुरक्षा होता है जिसका जिक्र भारत में न तो कोई सरकार करती है और न ही किसी राजनैतिक एजेंडे में देखा गया है |आर्थिक विकास तो जनता से कर के रूप में वसूले गए पैसे को लगाना है | यह आजकल इसलिए किया जाता है कि कानून व्यवस्था को तो कोई भारतीय सरकार सुधार नहीं सकती अत: इस अव्यवस्था से ध्यान हटाने के लिए ही किया जाता है|आपने भी मेरी बात से हटकर कानून व्यवस्था पर कोई आपति नहीं की है| पानी ,बिजली और कृषि पंजाब में भी अछि है किन्तु उसमें उनका क्या योगदान है यह तो प्रकृति प्रदत्त है | गुजरात में शराब की एक भी फक्ट्री नहीं है किन्तु पंजाब हरियाणा से राजस्थान के रास्ते गुजरात में शराब तस्करी होती है | मेरे विचार से मोदीजी भारत के विफलतम प्रधान मंत्री साबित होंगे और बी जे पी पूर्व की भाँती शायद ही अपना कार्यकाल पूर्ण कर पाए | जो व्यक्ति नौकरशाही पर एक राज्य में नियंत्रण नहीं कर पाए उसे किस प्रकार तारणहार या मसीहा माना जा सकता है | यदि कोई ऐसा कर रहा है तो वह अपरिपक्व है | जापान में भी लोकतंत्र ही है और वह भी 46 में तहस नहस हो गया था और भारत भी 47 में कहने को स्वतंत्र हो गया | फिर इतना अंतर क्यों ?

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    2. १४ मई को खास देर नहीं है। बाट देखते हैं।

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    3. अब तो 14 सितम्बर भी बीत गया है | क्या हुआ तेरा वादा .वो कसम वो इरादा ?/

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