राजनीति का अपराधीकरण
या अपराधियों का राजनीतिकरण देश सामने एक बड़ी चुनौती है | ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश में एक अपराधी
राजनेता को जनता के धन से सुरक्षा उपलब्ध करवाने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय के
सामने विचारण हेतु आया | मामले के तथ्य इस प्रकार हैं कि याची डॉ. पंकज त्रिपाठी
के पिता सिविल सर्जन थे और दिनांक 25 मई 1980 को उनकी मिर्जापुर (उ.प्र.) में
हत्या कर दी गयी थी व इस आशय की ऍफ़ आई आर दर्ज हुई और जांच के बाद प्रतिवादी विजय
कुमार मिश्र के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किया गया| यह मामला न्यायालय में परीक्षण
हेतु विगत 34 साल से बकाया है| विजय कुमार मिश्र अब सत्तासीन पार्टी से विधायक
हैं| याची डॉ. पंकज त्रिपाठी के जीवन को ख़तरा समझते हुए राज्य ने उन्हें 28 अप्रेल से 27
अक्टूबर 2011 तक सुरक्षा उपलब्ध करवाई थी जो आदेश दिनांक 6 अप्रेल 2012 से वापिस
ले ली गयी| याची ने तत्पश्चात इलाहाबाद के
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को कई प्रतिवेदन देकर सुरक्षा उपलब्ध करवाने की विनती की जोकि
अभी तक बकाया रहे| दूसरी ओर
आदेश दिनांक 25 अक्टूबर 2013 से विजय कुमार मिश्र की पुत्री सीमा को एक्स श्रेणी
की सुरक्षा मुहैया करवाई गयी और एक अन्य आदेश दिनांक 31 अक्टूबर 2013 से विजय कुमार
मिश्र को वाई श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध करवाई गयी| राज्य सरकार के ऐसे आदेश से व्यथित होकर याची ने
इलाहाबाद उच्च न्यालय में यह रिट याचिका दायर की| याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने पाया कि विजय कुमार मिश्र के विरुद्ध 60 आपराधिक
मुक़दमे चल रहे हैं| न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वह राज्य स्तरीय सुरक्षा समिति की
बैठकों के विवरण उपलब्ध करवाए जिनमें कि जीवन को खतरे की संभावना पर विचार किया गया
हो| किन्तु यह पाया गया कि ऐसा कोई विचारण नहीं किया
गया था| न्यायालय ने यह भी निर्देश प्रदान किये कि प्रतिवादीगणों
को प्रदत्त एक्स व वाई श्रेणी की सुरक्षा तुरंत वापिस ले ली जाए |
राज्य सरकार ने यद्यपि उक्त सुरक्षा वापिस ले ली
किन्तु उसकी एवज में विजय कुमार मिश्र को उनके पद के अनुरूप एक बंदूकची व उनकी पुत्री
को भी एक बंदूकची की सुरक्षा उपलब्ध करवा दी गयी| इस आदेश को याची द्वारा एक अन्य संशोधन आवेदन द्वारा
चुनौती दी गयी|
न्यायालय ने आगे विचारण में पाया कि याची के चाचा प्रतिवादी विजय कुमार मिश्र के पिता की हत्या के
अभियुक्त रहे हैं और दोनों परिवारों के बीच शत्रुता है|
पुलिस रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हुआ कि विजय कुमार
मिश्र के नाम 2 राइफल और 1 पिस्तौल हैं तथा
एक राइफल व एक रिवाल्वर उनकी माँ के नाम व एक डबल बेरल गन उनके भाई के नाम भी हैं|
न्यायालय के आदेश पर मूल रिकार्ड प्रस्तुत किये
जाने पर ज्ञात हुआ कि सरकार के आदेश दिनांक
25 अप्रेल 2001 से एक माह के लिए सुरक्षा उपलब्ध करवाई गयी थी जिसे अधिकतम तीन माह
के लिये आगे बढाया जा सकता था किन्तु इससे
आगे मात्र सुरक्षा समिति की विशेष सिफारिश पर ही आगे बढ़े आजा सकता था|
फिर भी राज्य सरकार के आदेश में खतरे की संभावना
क्या है यह नहीं बताया गया था| राज्य सरकार के उक्त आदेश में यह भी बल दिया गया था कि ऐसे व्यक्ति
को सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई जायेगी जो आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त है और सुविधा
का उनके द्वारा दुरूपयोग किया जा सकता हो|
ऐसे ही एक अन्य मामले –
गयूर हसन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में इसी न्यायालय ने धारित किया था कि यदि कोई
व्यक्ति समाज विरोधी आपराधिक गतिविधियों
में संलिप्त है और इससे उसके जीवन व स्वतन्त्रता को कोई ख़तरा है तो इसके लिए वह स्वयं
जिम्मेदार है तथा वह आम नागरिक के खर्चे पर
सरकार से सुरक्षा की मांग नहीं कर सकता| हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कोई चाहे जो पद
धारण करे उसे कर दाताओं की कीमत पर सुरक्षा उपलब्ध करवाने का कोई औचित्य नहीं है| अन्यथा
ऐसा करना समाज विरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहन देना होगा|
यह पाया गया कि सुरक्षा को खतरे का आकलन किये बिना ऐसे आदेश मुख्यमंत्री स्तर से जारी किये गए|
राज्य सुरक्षा समिति की बैठकों में ऐसी कोई विषय
वस्तु उपलब्ध नहीं थी जिससे यह ज्ञात हो सके कि किस प्रकार का ख़तरा संभव है|
श्रीमती सीमा मिश्र को एक्स श्रेणी की सुरक्षा महज
इस कारण उपलब्ध करवाई गयी कि वह राजनैतिक क्षेत्र में उतर रही है अत: वह ख़तरा महसूस
करती है| इस बारे में कोई जांच नहीं की गयी थी|
विजय कुमार मिश्र को राजनैतिक शत्रुता के कारण वाई
श्रेणी की सुरक्षा की सिफारिश की गयी थी| न्यायालय की लखनऊ पीठ ने पूर्व में भी नूतन ठाकुर
बनाम उत्तरप्रदेश राज्य में भी धारित कर रखा है कि आपराधिक गतिविधियों वाले
लोगों को प्रदत्त समस्त सुरक्षाएँ वापिस ले
ली जाएँ| न्यायालय ने यह भी पाया कि श्रीमती सीमा मिश्र चूँकि
विजय मिश्र की पुत्री है और भावी उम्मीदवार है मात्र इस कारण सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई
जानी चाहिए |
न्यायालय का विचार रहा कि ऐसे आधारों पर सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई जा सकती |
तदनुसार प्रदान की गयी सुरक्षा अवैध है|
मात्र इस कारण कि आदेश उच्च स्तर से जारी हुए हैं कर दाताओं के धन से ऐसा खर्चा नहीं
उठाया जाना चाहिए| जब एक व्यक्ति को शस्त्र लाइसेंस दे दिया गया हो
तो राज्य ने उसके जीवन की रक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध करवा दी है |
राज्य को समाज में कुछ व्यक्तियों की बजाय वृहत स्तर पर समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है|
न्यायालय का विचार रहा कि ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा उपलब्ध करवाने का अर्थ
समाज के हितों के विरुद्ध ऐसे व्यक्तियों की गतिविधियों को बढ़ावा देना होगा|
एक व्यक्ति जो हिंसा का रास्ता चुनता है और जिसके
लिए मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं हो उसे यह
मांग करने का कोई अधिकार नहीं है कि शत्रुओं
से उसके जीवन की रक्षा के लिए सरकार को विशेष
उपाय करने चाहिए| तदनुसार रिट याचिका डॉ. पंकज त्रिपाठी बनाम उत्तर
प्रदेश राज्य अनुमत करते हुए उच्च न्यायालय ने दिनांक 9 अप्रेल 2014 को आदेश दिया
कि विपक्षियों को प्रदत्त समस्त सुरक्षा तुरंत प्रभाव से वापिस ले ली जाए|
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