न्यायिक शक्तियों के प्रयोग पर प्रश्न चिन्ह ...
समय समय पर भारत की न्यायपालिका द्वारा शक्तियों के प्रयोग पर प्रश्न चिन्ह
उठते रहे हैं | यद्यपि समय समय पर देश की न्यायपालिका और उसके पैरोकार न्यायिक
गरिमा का दम भरते हैं किन्तु हाल ही में जयललिता को जमानत देने और निर्णय पर रोक
लगाने का मामला एक ताज़ा और ज्वलंत उदाहरण है| सोनी सोरी के मामले में न्यायपालिका
की रक्षक भूमिका को भी जनता भूली नहीं है| एक
साध्वी को हिरासत में दी गयी यातनाएं के जख्म और जमानत से इंकारी भी ज्यादा पुराने नहीं हैं | अहमदाबाद के मजिस्ट्रेट द्वारा मुख्य न्यायाधीश
के वारंट जारी करने का मामला भी 7 दिन के भीतर रिपोर्ट प्राप्त होने के बावजूद 10
वर्ष से विचाराधीन है| गंभीर बीमारियों से पीड़ित संसारचन्द्र को जमानत से इन्कारी और तत्पश्चात उसकी मृत्यु भी
एक बड़ा प्रश्न चिन्ह उपस्थित करते हैं जबकि संजय दत्त को उसकी बहन की प्रसव काल
में मदद के लिए जमानत स्वीकार करना गले नहीं उतरता| तरुण तेजपाल के विरुद्ध बिना
शिकायत के मामला दर्ज करना और जमानत से तब तक इंकार करना जब तक उसकी माँ की मृत्यु
नहीं हो जाती और दूसरी ओर आम नागरिक की फ़रियाद पर भी रिपोर्ट दर्ज न होना किस
प्रकार न्यायानुकूल कहा जा सकता है | विकसित देशों को छोड़ भी दिया जाए तो भी भारत की
न्यायपालिका उसके पडौसी पाकिस्तान और श्रीलंका के समकक्ष भी नहीं मानी जा सकती |
एक टी वी द्वारा जयललिता मामले में बहस का प्रसारण भी वकील समुदाय द्वारा
प्रतिकूल मानकर अवमान कार्यवाही की मांग दुर्भाग्यपूर्ण और लोकतंत्र व विचार अभिव्यक्ति के अधिकार पर गंभीर कुठाराघात
है| जबकि अमेरिकी न्यायालयों की बहस
ऑनलाइन इन्टरनेट पर सार्वजनिक रूप से भी उपलब्ध है| इंग्लॅण्ड का एक रोचक मामला इस
प्रकार है कि एक भूतपूर्व जासूस पीटर राइट ने अपने अनुभवों पर आधारित पुस्तक लिखी| ब्रिटिश सरकार ने इसके प्रकाशन को प्रतिबंधित करने के लिए याचिका
दायर की कि पुस्तक गोपनीय है और इसका प्रकाशन
राष्ट्र हित के प्रतिकूल है| हॉउस ऑफ लोर्ड्स ने 3-2 के बहुमत से पुस्तक के प्रकाशन पर
रोक लगा दी| प्रेस इससे क्रुद्ध हुई और डेली मिरर ने न्यायाधीशों
के उलटे चित्र प्रकाशित करते हुए “ये मूर्ख” शीर्षक दिया| किन्तु इंग्लॅण्ड में न्यायाधीश व्यक्तिगत
अपमान पर ध्यान नहीं देते हैं| न्यायाधीशों का विचार था कि उन्हें
विश्वास है वे मूर्ख नहीं हैं किन्तु अन्य लोगों को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार
है| ठीक इसी प्रकार यदि न्यायाधीश वास्तव में ईमानदार हैं तो
उनकी ईमानदारी पर लांछन मात्र से तथ्य मिट नहीं जायेगा और यदि ऐसा प्रकाशन तथ्यों से
परे हो तो एक आम नागरिक की भांति न्यायालय या न्यायाधीश भी समाचारपत्र या टीवी से ऐसी
सामग्री का खंडन प्रकाशित करने की अपेक्षा कर सकता है| न्यायपालिका
का गठन नागरिकों के अधिकारों और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए किया जाता है न कि स्वयं
न्यायपालिका की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए| न्यायपालिका की संस्थागत
छवि तो निश्चित रूप से एक लेख मात्र से धूमिल नहीं हो सकती और यदि छवि ही इतनी नाज़ुक
या क्षणभंगुर हो तो स्थिति अलग हो सकती है| जहां तक न्यायाधीश
की व्यक्तिगत बदनामी का प्रश्न है उसके लिए वे स्वयम व्यक्तिगत कार्यवाही करने को स्वतंत्र
हैं| इस प्रकार अनुदार भारतीय न्यायपालिका द्वारा अवमान कानून
का अनावश्यक प्रयोग समय समय पर जन चर्चा का विषय रहा है जो मजबूत लोकतंत्र की स्थापना
के मार्ग में अपने आप में एक गंभीर चुनौती है|
न्यायालयों में सुनवाई के सार का सही एवं
विश्वसनीय रिकार्ड, फाइलिंग एवं सक्रिय सहभागिता एक सशक्त , पारदर्शी और विश्वसनीय न्यायपालिका की कुंजी है |
1960 के दशक से ही पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका के विकसित देशों
में आंतरिक रिकोर्ड रखरखाव की प्रक्रिया की प्रभावशीलता में सुधार के लिए मांग उठी|
सामान्यतया अधिक लागत वाली श्रम प्रधान (हाथ से संपन्न होने वाली) प्रक्रिया
की तुलना में स्वचालित रिकार्ड करने और स्टेनोग्राफी के उपकरणों की ओर परिवर्तन को
उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के बाहर एक चुनौती के रूप में देखा जाता है|
विकसित राष्ट्रों में न्यायालयों
को सशक्त सूचना संचार तकनीक ढांचे और कुशलता का लाभ मिलता है जिससे रोजमर्रा की कार्यवाहियों
का ऑडियो वीडियो रिकार्ड, स्टेनो मशीन और बहुत से अन्य कार्य
कंप्यूटर प्रणालियाँ के माध्यम से करना अनुमत है |
विकासशील और संघर्षरत राष्ट्रों में तकनीकि ढांचे का सामान्यतया अभाव है| इसलिए स्वस्थ न्यायिक तंत्र के निर्माण या पुनर्निर्माण
में अन्तर्वलित महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों के अतिरिक्त विकासशील और संघर्षरत राष्ट्रों
को न्यायसदन में रिकार्डिंग प्रणाली में सुधारों को प्रभावी बनाने हेतु तकनीकि ढांचे
में भी सुधार करने चाहिए| आज अमेरिकी राज्यों सहित नाइजीरिया,
बुल्गारिया, कजाखस्तान और थाईलैंड में मशीनीकरण
पर भूतकालीन और चालू अनुभव के आधार पर अध्ययन
करने वाले निकाय हैं| मशीनीकृत रिकार्डिंग प्रणाली वाले न्यायसदन
स्थापित करने और विकसित करने का ज्ञान रखने
वाले निकाय दिनों दिन बढ़ रहे हैं|
इन अध्ययनों में पश्चिमी विकसित
और विकासशील -दोनों- देशों में कुशल न्यायसदन रिकार्डिंग प्रणालियाँ स्थापित
करने में चुनौतियाँ उभरकर सामने आई हैं | इन अध्ययनों में विकासशील
राष्ट्रों की न्यायसदन में हाथ से रिकार्डिंग
की प्रणाली से अधिक दक्ष स्वचालित रिकार्डिंग प्रणाली की ओर परिवर्तन में सहायता करने
के महत्त्व की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है और इससे होने वाले लाभों की सूची भी दी
गयी है|
विकसित, विकासशील और संघर्षरत राष्ट्रों
में इस उच्च तकनीकि परिवर्तन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जैसे –
लागत में वृद्धि, सामान्य कानून एवं सिविल कानून
में साक्ष्य रिकार्डिंग के भिन्न –भिन्न मानक, उपकरणों के उपयोग के लिए प्रारंभिक एवं उतरवर्ती प्रशिक्षण, सुविधाओं का अभाव और मशीनीकरण के कारण बेरोजगारी| उच्च
तकनीकि रिकार्डिंग प्रणालियाँ स्थापित करने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ साथ
पर्याप्त वितीय संसाधनों की आवश्यकता है| दूसरे राष्ट्र ऊँची लगत वाली उन्नत रिकार्डिंग मशीनों की लागत
वसूली के लिए संघर्ष करते रहते हैं| अमेरिका में मेरीलैंड राज्य
में और कजाखिस्तान गणतंत्र में राजनैतिक इच्छाशक्ति
और वितीय संसाधन दोनों ही विद्यमान थे तथा
वहाँ परंपरागत रिकार्डिंग प्रणाली से नई उन्नत तकनीक की ओर परिवर्तन सफल रहा |
मेरीलैंड के अध्ययन से प्रदर्शित होता है कि नई रिकार्डिंग मशीन प्रणाली लगाने
की एकमुश्त लागत प्रतिपूर्ति करने वाले दीर्घकालीन लाभों- वेतन भत्तों में कमी आदि - को देखते हुए न्यायोचित है| अन्यथा एकमुश्त लागत एक चुनौती ही रहती है|
कजाखिस्तान जैसे कई राष्ट्रों ने वितीय चुनौतियों पर विजय पाने के लिए
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से साझेदारी भी की गयी है| दीर्घकालीन
लाभों को देखते हुए मुख्य न्यायालयों में उच्च तकनीक वाली रिकार्डिंग प्रणाली लगाया
जाना तुलनात्मक रूप में वहनीय हो सकता है| किसी भी सूरत में समस्त विकासशील या संघर्षरत देशों में राजनैतिक
इछाशक्ति, आधारभूत ढांचा और या साझी संस्थाओं के साथ नवीन प्रणाली
स्थापित करने के संबंधों का अभाव है| वर्तमान में युद्ध–जर्जरित लाइबेरिया में न्यायाधीश सुनवाई हेतु बैठने के लिए स्थान पाना मुश्किल पा रहे हैं|
ढांचे –विद्युत शक्ति सहित- को स्थिर करना भी एक
समस्या है|
वितीय पहलू के अतिरिक्त न्यायालय अपने ऐतिहासिक परम्पराओं के कारण भी एक चुनौती
का सामना कर सकते हैं| परंपरागत आपराधिक कानून मौखिक साक्ष्य
और मौखिक रिकार्ड को उच्च प्राथमिकता देता है जबकि सिविल न्याय मौखिक रिकार्ड को कम
महत्त्व देता है| गवाह न्यायाधीश के सामने साक्ष्य देते हैं
(भारत में व्यवहार में न्यायाधीश की अनुपस्थिति में भी साक्ष्य चलता रहता है),
और न्यायाधीश इसका सार रजिस्ट्रार
को देता है जोकि इसे टाइप करता है| पक्षकार/साक्षी को समय-समय
पर इसे पुष्ट करने के लिए कहा जाता है कि क्या
यह सही है और पक्षकार को जहाँ कहीं वह उचित समझे दुरुस्त कराने के लिए प्रेरित
किया जाता है| आडियो वीडियो प्रणाली से अवयस्कों और उन लोगों
का भी परीक्षण संभव है जो मुख्य न्यायालय में सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सकते हैं|
फ़्रांस में न्यायालय क्लर्क न्यायाधीश और पक्षकारों के मध्य विनिमय किये गए समस्त
रिकार्ड का लेखाजोखा रखने के दयित्वधीन है|
वहाँ कोई मौखिक रिकार्ड नहीं रखा जाता है |इस प्रकार
फ़्रांसिसी सिविल मामलों में मौखिक परीक्षण का रिकार्ड रखने के बजाय परीक्षण कार्यवाही
के सार पर बल दिया जाता है | आपराधिक मामलों में फ़्रांस में दृष्टिकोण
थोडा भिन्न है| इन मामलों में न्यायाधीश ऑडियो वीडियो रिकार्ड
की अपेक्षा कर सकता है | फ़्रांस में आपराधिक मामलों में ऑडियो
वीडियो रिकार्डिंग स्वतः नहीं है अपितु न्यायाधीश के विवेक पर है| ऐसी रिकार्डिंग जो स्पष्टतया अनुमोदित नहीं हो मुख्य न्यायाधीश द्वारा 18000 यूरो से अन्यून दंडनीय है| ऐतिहासिक मामलों में ऑडियो
वीडियो रिकार्डिंग संग्रहालय में भी संधारित की जाती हैं| उदाहराणार्थ उक्रेन में मामले के दोनों अथवा एक पक्षकार द्वारा आवेदन करने या
न्यायाधीश द्वारा पहल करने के अतिरिक्त कार्यवाही की रिकार्डिंग नहीं की जाती है|
परिणामस्वरूप अधिकांश कार्यवाही पुराने परंपरागत ढंग से स्टेनो,
टाइप आदि द्वारा जारी रहती है| सामान्यतया न्यायाधीशों
द्वारा भी इस नवीन प्रणाली का प्रतिरोध किया जाता है| जहाँ कहीं
भी नए कानूनी प्रावधान मौखिक रिकार्डिंग के पक्ष में हैं न्यायाधीश परिवर्तन का विरोध
करते हैं|
भारत में भी सिविल मामलों में यद्यपि गवाह
द्वरा बयान शपथ पत्र द्वारा वर्ष 1999 से ही अनुमत किया जा चुके हैं किन्तु अभी भी गवाहों को बयान के लिए कठघरे
में बुलवाने की परम्परा जारी है| मार्क्स ज़िमर के अनुसार सिविल
न्यायाधीश ऐसी पारदर्शिता से भयभीत हैं जो
मौखिक परीक्षण रिकार्डिंग से उद्भूत होती हो और वे मामले के पक्षकारों को ऐसी
पारदर्शिता से होने वाले सामाजिक लाभों को ही विवादित करते हैं| सिविल
न्यायाधीश मानते हैं कि पारदर्शिता से अपीलों की संख्या और न्यायाधीशों के विरुद्ध
अनाचार के व्यक्तिगत मामले – दोनों में वृद्धि होगी| यद्यपि आज तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ये भय न्यायोचित हैं अथवा निर्मूल
हैं| वर्तमान में कजाखस्तानी न्यायाधीश मौखिक साक्ष्यों की रिकार्डिंग
की ओर बदलाव कर रहे हैं| मौखिक साक्ष्यों की रिकार्डिंग की स्वीकार्यता में उनके मानसिक परिवर्तन और
शुद्धता, पारदर्शिता, और अन्ततः सुरक्षा
जो मौखिक रिकार्ड से न्यायाधीश एवं पक्षकार दोनों को उपलब्ध हो रही है| दक्षिण अफ्रीका में भी साक्ष्यों की ऑडियो रिकार्डिंग पर्याप्त समय से प्रचलन
में है और इस उद्देश्य के लिए वहाँ अलग से स्टाफ की नियुक्ति की जाती है जो ऐसी प्रतिलिपि
को सुरक्षित रखता है| न्यायालयों में प्रयोज्य उपकरणों के दक्ष
उपयोग के लिए प्रारंभिक और लगातार प्रशिक्षण आवश्यक है| प्रत्येक
प्रशिक्षण का वातावरण भिन्न होता है और समयांतराल से परिपक्व होता है|
जिन राष्ट्रों में न्यायालयों में काफी ज्यादा स्टाफ है उनमें मशीनीकरण से बेरोजगारी
उत्पन्न होने का भय विकसित राष्ट्रों के बजाय ज्यादा है| न्यायालय स्टाफ को नवीन प्रक्रिया के योग्य
बनाकर, स्वेच्छिक सेवा निवृति, अन्य विभागों
में स्थानांतरण करके अथवा सेवा निवृतियों को ध्यान में रखकर चरणबद्ध मशीनीकरण कर इसका
समाधान किया जा सकता है| स्वतंत्रता से पूर्व देशी राज्यों के मध्य आयात पर जगात (आयात कर) लगता था |
स्वंत्रता के उपरांत जगात समाप्त
कर स्टाफ का राज्यों द्वारा विलय कर लिया गया था| इसी प्रकार
हाल ही में चुंगी समाप्त कर स्टाफ का समायोजन किया जाना एक अन्य उदाहरण है| न्यायालयों में सारांशिक कार्यवाही
के योग्य सिविल एवं आपराधिक मामलों का दायरा बढाकर भी त्वरित न्याय दिया जा सकता है|
वैश्वीकरण के बहाव में कुछ वर्ष पूर्व कम्प्यूटरीकरण, दक्षता एवं लाभप्रदता में वृद्धि के लिए बैंकों और अन्य सार्वजानिक उपक्रमों
में स्वेच्छिक सेवा निवृति और निष्कासन योजना को प्रोत्साहन दिया गया था| यद्यपि इस योजना का श्रम संघों द्वारा विरोध किया गया था किन्तु न्यायालयों
एवं विधायिका दोनों द्वारा इसे उचित ठहराया गया था| अतः इसे अब
न्यायालयों में लागू करने में भी कोई बाधा प्रतीत नहीं होती है|
कजाखिस्तान, बुल्गारिया, बोस्निया, हेर्ज़ेगोविना और अन्य बहुत से राज्यों में
मशीनीकरण और आधुनिकीकरण के सकरात्मक परिणाम मिले हैं| इनमें समय
की बचत ,पारदर्शिता एवं शुद्धता में वृद्धि, न्याय सदन की उन्नत प्रक्रियाएं, न्यायपालिका में विश्वास
में वृद्धि ,अपील प्रक्रिया का अधिक दक्ष उपयोग आदि प्रमुख हैं| दृश्य श्रव्य
(ऑडियो-वीडियो) और उच्च तकनीकि न्यायालय रिकार्डिंग मशीनों से उच्च पारदर्शिता आती
है क्योंकि वे सुनवाई का अच्छी तरह से सही और सम्पूर्ण रिकार्ड प्रस्तुत करती हैं|
इससे से भी आगे कि परीक्षण न्यायालय का रिकार्ड अपीलीय न्यायालय द्वारा
आसानी से अवलोकन किया जा सकता है| अधिकांश मामलों में रिकार्डिंग
मशीनों द्वारा तैयार रिकार्ड असंपादित होता है, शब्दशः रिकार्ड
जिसकी अपेक्षा करने पर मूल रूप में न्यायाधीश और पक्षकार दोनों द्वारा समीक्षा की जा
सके| सही एवं शुद्ध रिकार्ड न्यायालय की प्रक्रिया में सुधार
लाते हैं क्योंकि दावे के समस्त पक्षकार और न्यायाधीश सभी जानते हैं कि उनका व्यवहार
रिकार्ड पर है |
दृश्य श्रव्य रिकार्डिंग से न्यायिक प्रक्रिया का संरक्षण होता है क्योंकि इससे
सभी पक्षकारों को वास्तविक कार्यवाही के प्रति
जिम्मेदार ठहराये जाने के लिए इसे मोनिटरिंग उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता
है| न्यायिक प्रक्रिया और प्रोटोकोल
का सही सही एवं संकलित और पूर्ण विवरण प्रदान
करने से यह प्रणाली नागरिकों को अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति प्रेरित करती है
जिससे अंततोगत्वा न्यायसदन में न्यायाधीश और
पक्षकार दोनों के निष्पादन में सुधार आता है| यह ज्ञात होने पर
कि इसे न्यायाधीश द्वारा विस्तार से देखा जा सकता है पक्षकार अधिक स्पष्ट और सही बयान
देंगे| न्यायिक आचरण भी इससे मोनिटर किया जा सकता है और इससे
अपील के आधारों की स्पष्टता और प्रमाणिकता बढती है |परिणामतः
इससे निर्णय देने और मामला प्रस्तुत करने सम्बंधित प्रोटोकोल और व्यावसायिकता का निर्णयन
में सही उपयोग करने को प्रोत्साहन मिलता है| न्यायाधीशों की समयनिष्ठा एवं अनुशासनबद्धाता के साथ-साथ न्यायिक
प्रक्रिया में दुरभिसंधियों पर भी इससे अंकुश
लगता है| भारत में यद्यपि एक लाख बैंक शाखाओं के कम्प्यूटरीकरण
का कार्य दस वर्ष में पूर्ण कर लिया गया
किन्तु 1991 में प्रारम्भ की गयी इ-कोर्ट योजना के अंतर्गत अभी तक 20 हाई कोर्ट भी
पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत नहीं हो पाए हैं और उनके आदेश एवं निर्णय तक उपलब्ध नहीं
हैं| मद्रास हाई कोर्ट द्वारा तो आज भी निर्णय की प्रति पुरानी टाइप मशीन से ही टाइप करके दी जाती है| उक्त तथ्य देश की न्यायपालिका से जुड़े लोगों की
निष्ठा और समर्पण पर गंभीर प्रश्न उठाते हैं चाहे वे भाषण में कुछ भी कहते रहे
हैं |
महोदय,
ReplyDeleteलेख तथ्यात्मक एवं विषद है।
पहले पैराग्राफ का ही विवेचन और व्याख्यात्मक वृद्धि होने से ज्यादा रुचिपूर्ण रहता।
जैसे जैसे संदर्भ वैश्विक और प्रणाली विमर्श की ओर जाते गए रुचि कम होती गई।
जयललिता जी की जमानत और उसके किंतु परंतु संभावनाएं परदे के पीछे के खेल ज्यादा अच्छी विषय वस्तु थी..
या तो यह कहिए कि आजकल हम राजनीति ही ज्यादा जीते हैं तथ्यों में रुचि कम होती जा रही है।
और इस निर्णय के पहले से ही यह लग रहा था कि जमानत मिल ही जाएगी...
इस तरह से पहा़ड़ जैसे अपराध जो अंधों को भी दिखते हैं... फिऱ भी उन्हें राहत मिल जाती है.
साधुवाद
सादर
डॉ रावत
लेख काफी अच्छा है मगर शीर्षक(जयललिता को जमानत देने और निर्णय पर रोक लगाने पर प्रश्न चिन्ह ...) के अनुसार कुछ ज्यादा पढने को नहीं मिला. लेकिन लेख में तथ्य व सुझाव काफी अच्छे है मगर हमारे भारत देश में न्याय देने की इच्छा शक्ति के साथ कानून नहीं बनाये जाते हैं.
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