एक मामले में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट मानना है कि व्यक्ति की असावधानी, जानबूझकर की गयी दुता या दुराशय से किये गये अपराध से ी अधिक हानिकारक और दुष्परिणामदायक हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एक सतंरी असावधानी बरतता है और चौकी पर ड्यूटी पर रहते सो जाता है तो यह शत्रु को चौकी के अन्दर आने अनुमति प्रदान करने के समान है। इसी प्रकार से रेलवे केबिन मेन द्वारा असावधानी बरतते हुए ट्रेेक (पटरी) पर खड़ी ट्रेनको नजरअन्दाज करके दूसरी ट्रेन को उसी ट्रेक पर आने का संकेत देने से दो ट्रेनों में आमने-सामने की िड़न्त का होना। नर्स द्वारा मांसपेशियों के मध्य दिए जाने वाले इजेंक्शन का नसों में दिया जाना, जिससे तुरन्त मृत्यु हो जाना। पायलॉट द्वारा हवाई जहाज में खराबी इंगित करने वाले उपकरण की अनदेखी करना और वायुयान दुर्घटना से जीवन की भारी क्षति होना आदि असावधानी की सुपरिचित घटनाएं हैं जो अक्षम्य हैं। ( भारत संघ बनाम जे. अहम्मद ए. आई. आर. 1979 सु. को. 1022)
कानून अपराधियों को अपराधों के अन्वेशण तथा अभियोजन सहित उनके जीवन स्तर के अनुसार विभेदक व्यवहार हेतु वर्गीकृत नहीं करता है। एक समान अपराध के करने पर प्रत्येक व्यक्ति कानून के अनुसार समान रूप से व्यवहृत किया जाना है जो कि प्रत्येक के लिए समान रूप से लागू है। लोक-पदधारी अपने निर्णयों एवं कृत्यों के लिए जनता के प्रति जवाबदेह हैं और उन्हें उनके पद की जो छानबीन उचित हो उसके लिए प्रस्तुत रहना चाहिए। लोक-पदधारियों को जो भी वे निर्णय लेते हैं और कार्यवाही करते हैं, के प्रति यथासम्भव खुला होना चाहिए। उन्हें अपने निर्णयों हेतु कारण देने चाहिए और मात्र वे सूचनाएं प्रतिबन्धित करनी चाहिए जिनके लिए व्यापक लोक हित स्पश्ट मांग करता हो। यह सर्वविदित है कि लोक-पदधारियों को मात्र लोक हित में प्रयोजन हेतु कतिपय षक्तियां न्यासित की जाती हैं और इसलिए उनके द्वारा यह पद जनता के न्यासी के रूप में धारित किया जाता है। उनमें से किसी द्वारा इस सदाचार के पथ से कोई भी भटकाव न्यास भंग बन जाता है और दरी के नीचे दबाये जाने की बजाय इस पर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए।
(विनीत नारायण नामोपरि भारत संघ ए.आई.आर. 1998 स. न्या 889)
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