आयुक्त के पद पर कार्य करते हुए पटे जारी करने की षिकायतों की जांच में दोशी पाये गये गोविन्द मेनन (अपीलार्थी ) के विरूद्ध अनुषासनिक कार्यवाही के प्रकरण में केरल उच्च न्यायालय ने कार्यवाही पर रोक लगाने से मना कर दिया था । आगे सुप्रीम कोर्ट में अपील में गोविन्द मेनन (अपीलार्थी ) बनाम भारत संघ (ए.आई.आर 1967 स.न्या. 1274) के प्रकरण में निर्णय में कहा है कि इस आषय का आरोप है कि आयुक्त के रूप में षक्तियों का प्रयोग करते हुए अपीलार्थी ने षक्तियों का दुरूपयोग किया और ऐसे दुराचरण के सम्बन्ध में उसके विरूद्ध कार्यवाही की गयी। इस प्रकार स्पश्ट है कि पट्टे की स्वीकृति का औचित्य एवं वैधता यद्यपि अधिनियम के अन्तर्गत अपील या पुनरीक्षण में उठाई जा सकती है और यदि इस बात के प्रमाण हैं कि आयुक्त ने अपने कर्Ÿाव्यों के निवर्हन में अविचारित ढंग से कार्य किया या ईमानदारी या सद्विष्वास से कार्य करने में विफल रहा या वैधानिक षक्तियों के प्रयोजन में निर्धारित षर्तों की अनुपालना नहीं की है तो सरकार अनुषासनिक कार्यवाही अलग से कर सकती है । अपील निरस्त कर दी गयी । अभिप्रायः यह है कि दुराचरणयुक्त अवैध कृत्य के विरूद्ध अपील या पुनरीक्षण के साथ- साथ दाण्डिक कार्यवाही भी की जा सकती है। ( फॉण्ट परिवर्तन से हुई वर्तनी समबन्धित अशुद्धियों के लिए खाद है )
वास्तविक लोकतंत्र की चिंगारी सुलगाने का एक अभियान - (स्थान एवं समय की सीमितता को देखते हुए कानूनी जानकारी संक्षिप्त में दी जा रही है | आवश्यक होने पर पाठकगण दिए गए सन्दर्भ से इंटरनेट से भी विस्तृत जानकारी ले सकते हैं|पाठकों के विशेष अनुरोध पर ईमेल से भी विस्तृत मूल पाठ उपलब्ध करवाया जा सकता है| इस ब्लॉग में प्रकाशित सामग्री का गैर वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए पाठकों द्वारा साभार पुनः प्रकाशन किया जा सकता है| तार्किक असहमति वाली टिप्पणियों का स्वागत है| )
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Sir, unable read above two labels because being garbled. may i request to rewrite it.
ReplyDeleteअब समायोजित कर दिया गया है |
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